नई दिल्ली। लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा में 8 लोगों की मौत, भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड में भी नई चुनौती खड़ी कर सकती है। इस बात का पार्टी को भी अहसास हो चला है। जिसकी वजह से पार्टी में शीर्ष स्तर से लेकर जमीनी स्तर तक मंथन चल रहा है। भाजपा की परेशानी यह है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों राज्यों में अगले 4 महीने में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में अगर लखीमपुर खीरी का मामला जल्दी शांत नहीं हुआ तो उसकी आंच यूपी से निकलकर उत्तराखंड तक पहुंच सकती है।
लखीमपुर खीरी का उत्तराखंड तक कनेक्शन
असल में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर, हरदोई, सीतापुर, पीलीभीत, बिजनौर, रामपुर, मुरादाबाद में बड़ी आबादी सिखों की है। इसी तरह उधम सिंह नगर, नैनीताल, हरिद्वार,देहरादून में भी बड़ी संख्या में सिख बसे हुए हैं। उत्तराखंड के काशीपुर, रुद्रपुर,बाजपुर, जसपुर, गदरपुर, सितारगंज, नानकमत्ता में सिखों की बड़ी तादाद है। इन इलाकों में रहने वाले ज्यादा सिख समुदाय के लोग खेती करते हैं और उससे जुड़े हुए बिजनेस में शामिल है। और वहां काफी प्रभावशाली हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में 30-35 सीटें ऐसी हैं, जहां पर सिख मतदाता काफी असर रखते हैं। और पिछले चुनावों में सिख मतदाता मोटे तौर पर भाजपा के साथ खड़ा रहा है।
2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने लखीमपुर खीरी की सभी 8 सीटें जीती थी। इसी तरह लखीमपुर खीरी से सटे शाहजहांपुर, हरदोई, सीतापुर, पीलीभीत, बहराइच को मिलाकर भाजपा को 40-45 सीटों में से 35 से ज्यादा सीटें मिली थीं। ऐसा ही प्रदर्शन उत्तराखंड की तराई बेल्ट की 9 सीटों पर भाजपा का रहा था। यूपी भाजपा के एक नेता कहते हैं "पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन से पहले ही चुनौती खड़ी थी और अब लखीमपुर खीरी हिंसा ने स्थिति और बिगाड़ दी है। हालांकि अच्छी बात यह रही कि 24 घंटे के अंदर मामले को शांत करा दिया गया है। पार्टी के सामने इस समय दोहरी चुनौती है, एक तो किसानों की मौत हो गई, दूसरे भाजपा कार्यकर्ताओं की भी मौत हुई और आरोप भी भाजपा नेता पर ही लग रहा है।"
बंटवारे के बाद यहां बसे सिख
आजादी के बाद, बंटवारे के समय पाकिस्तान से बड़ी संख्या में सिख समुदाय के लोग, भारत आए और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तराई इलाके में बस गए। सिखों ने यहां की जमीनें खरीदकर खेती करनी शुरू कर दी और अपनी मेहनत से संपन्न किसान बन गए। लखीमपुर खीरी निवासी बलजीत सिंह कहते हैं यहां पर, ज्यादातर सिख खेती करते हैं। आम तौर पर 70 फीसदी से ज्यादा लोग खेती में लगे हुए हैं। देश के दूसरे क्षेत्र के इलाकों के तरह, यहां किसानों के पास कम जोत नहीं है। यहां पर 60-70 बीघे जमीन होना आम बात हैं। खेती के अलावा ट्रांसपोर्ट बिजनेस और दूसरे खेती से जुड़े बिजनेस में लोग लगे हुए हैं। यहां पर 2017 में भाजपा को पूरा समर्थन मिला था। लेकिन लखीमीपुर खीरी की घटना ने सबको आश्चर्य में डाल दिया है। पूरा इलाका बहुत शांत है, लेकिन कुछ दिनों से यहां पर बाहरी लोग काफी संख्या में आए, उसके बाद से माहौल बिगड़ गया।
पश्चिमी यूपी की आग तराई में फैलने का डर
पश्चिमी यूपी के एक किसान नेता का कहना है "देखिए पश्चिमी यूपी में पार्टी के खिलाफ पहले से ही नाराजगी है। तीन कृषि कानूनों और किसान आंदोलन को लेकर सरकार के रवैये से जाटों में काफी नाराजगी है। जिसका असर चुनावों में दिख सकता है।" पार्टी को लग रहा है कि अगर पश्चिमी यूपी की नाराजगी, तराई क्षेत्र में फैली तो करीब 170-180 सीटों पर पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। जाहिर है लखीमपुर खीरी की आग फैलती है, तो भाजपा की राह में विपक्ष नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
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