लॉकडाउन से अच्छी हुई धरती की आबोहवा, अब इसे संजोकर रखने की चुनौती

Lockdown reduced pollution level on earth: कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद प्रकृति और पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर देखा गया जहां कई चीजें बिल्कुल बदली हुई और खूबसूरत दिखी।

Lockdown and pollution level
लॉकडाउन में प्रकृति का एक नया रुप देखने को मिल रहा है।   |  तस्वीर साभार: AP
मुख्य बातें
  • कोरोना काल में लॉकडाउन की बदौलत प्रकृति का नया रुप देखने को मिला
  • प्रकृति और पर्यावरण के नए रुप ने पूरी दुनिया को अचंभित किया
  • हवा,पानी,आसमान समेत कई चीजें पहले के मुकाबले स्वच्छ हुई

नई दिल्ली: दुनिया में इस वक्त सबसे ज्यादा जिन दो चीजों को लेकर चर्चा है वो है कोरोना वायरस और इसे नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा लॉकडाउन। दूसरी चीज इस बात की चर्चा पूरे दुनिया में हो रही है कि आखिर कोरोना को हराने के लिए टीका कब बनेगा जो कोविड-19 जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ सकने में सक्षम होगा। इस बीच कोरोना काल में एक बात यह साफ हो गई है कि लॉकडाउन से प्रकृति का रंग खुशनुमा हो गया है। प्रदूषण के हालात तेजी से बदले हैं। पर्यावरण का आवरण पहले के मुकाबले काफी सुंदर हुआ है।

लॉकडाउन से लॉक हुआ पॉल्यूशन 

दुनिया के जिन देशों में कोरोना की तबाही है और जहां यह तेजी से फैल रहा है उनमें से 90 फीसदी देशों ने लॉकडाउन कर दिया है। कोरोना वायरस की महामारी की वजह से पूरी दुनिया में लोग घरों में बंद हैं। इसका सीधा असर जल और वायु के साथ जलवायु पर भी पड़ा। धरती पर इसका सकारात्मक असर पड़ा है कि अस्थायी रूप से ही सही हवा साफ हो गई। देश की राजधानी दिल्ली दुनिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों मे शुमार होती है। दिल्ली वायु प्रदूषण को लेकर हमेशा चर्चा में रहती है। प्रदूषण की वजह से यहां धुंध छाया रहता था लेकिन अब यहां का आसमान नीला और बिल्कुल साफ दिखता है। जब शाम ढलती है तो रात में नीले आसमान में तारे टिमटिमाते दिखते हैं। आसमान इस कदर साफ हो उठा है कि लोग रात में आसमान निराहना पसंद करने लगे हैं। 

दुनिया के कई देशों में साफ हुई आबोहवा 

उत्तर-पूर्वी अमेरिका जहां न्यूयॉर्क, बोस्टन जैसे शहर हैं, वहां भी वातावरण में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के प्रदूषण में 30 फीसदी की कमी आई है। इटली की राजधानी रोम में पिछले साल मध्य मार्च से मध्य अप्रैल के मुकाबले इस साल प्रदूषण के स्तर में 49 फीसदी तक की गिरावट आई है और आसमान में पहले के मुकाबले तारे और साफ दिखाई दे रहे हैं। वायु प्रदूषक जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइट, धुंध और छोटे कणों में कमी आई है। गौर हो कि  इस तरह के प्रदूषकों से दुनिया भर में करीब 70 लाख लोगों की मौत होती है। पहली बार बोस्टन से वाशिंगटन तक की हवा सबसे अधिक साफ है। इसकी बड़ी वजह ईंधन की खपत में कमी आना है क्योंकि ये प्रदूषक कम समय तक रहते हैं और इसलिए हवा साफ भी जल्दी हो गई।

साफ हो गया हवा और पानी
  
यह बात काबिलेगौर है कि भारत और चीन में वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी आई है। तीन अप्रैल को पंजाब में जालंधर के लोग जब उठे तो उन्होंने ऐसा दिन दशकों में नहीं देखा था क्योंकि करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित बर्फ से ढंकी हिमालय की पहाड़ियां साफ दिखाई दे रही थीं। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से सबद्ध चिकित्सा विद्यालय में वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य शोध की निदेशक डॉ. मैरी प्रूनिकी के मुताबिक साफ हवा का मतलब है कि अस्थमा के मरीजों के लिए मजबूत फेफड़े खासतौर पर बच्चों के लिए। इससे पहले उन्होंने रेखांकित किया था कि कोरोना वायरस का उन लोगों के फेफड़ों पर गंभीर असर पड़ता है जो प्रदूषण वाले इलाके में रहते हैं। 

लॉकडाउन खत्म होने के बाद की चुनौती

अब सबसे बड़ी बात यह है कि लॉकडाउन में यह दिखा है कि प्रकृति मनुष्य के और करीब आई है। प्रदूषण का कम होना यकीनन पर्यावरण और प्रकृति के लिए साकारात्मक बात है। अब सबसे बड़ी बात यह भी है कि क्या जब कोरोना खत्म होगा, लॉकडाउन खत्म होगा तो हमें क्या प्रकृति और पर्यावरण की वर्तमान खूबसूरती दिखने को मिलेगी या फिर स्थिति फिर पहले जैसी हो जाएगी। यह चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन सबकी चाहत है कि कोरोना के खात्मे और लॉकडाउन खत्म होने के बाद वर्तमान स्थिति हमेशा बनी रहे।

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