शांति एवं अहिंसा के प्रतीक महात्मा गांधी अपने योगदान के लिए दुनिया भर में याद किए जा रहे हैं। उनके आंदोलनों की शुचिता एवं पवित्रता को देखते हुए दुनिया उनके जन्मदिवस को 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मनाती है। भारत और दक्षिण अफ्रीका में चलाए गए गांधी के आंदोलनों की छाप दुनिया भर में देखने को मिली है। इन आंदोलनों की सबसे बड़ी खूबसूरती इसलिए है कि क्योंकि ये सभी आंदोलन अहिंसक रहे। उन्होंने अपने आंदोलनों में अहिंसा को आधार बनाया। वह चाहे असहयोग आंदोलन हो, सविनय अवज्ञा अथवा चंपारण आंदोलन, इन सभी आंदोलनों में गांधी ने मानवाधिकार पक्ष को हमेशा दृढ़ता के साथ रखा। ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। गांधी के इन आंदोलनों को लोगों का भरपूर सहयोग भी मिला जिसके चलते भारत अपनी आजादी के सपने को पूरा कर सका। आइए यहां एक नजर डालते हैं महात्मा गांधी के आंदोलनों पर-
चंपारण आंदोलन (1917)
चंपारण आंदोलन ने महात्मा गांधी को एक पहचान दी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में यह गांधी का पहला संघर्ष था। गांधी जी 1915 में जब विदेश से लौटे तो उस समय भारत ब्रिटिश राज के अधीन था। बिहार के चंपारण जिले में अंग्रजों ने नील की खेती करने और उसे कम दामों पर उन्हें बेचने के लिए बाध्य किया। मौसम की कठिन दशाओं और उस पर लगने वाले कर की वजह से किसानों को खेती करना काफी मुश्किल हो गया। चंपारण के किसानों की समस्याओं को देखते हुए गांधी ने अप्रैल 2017 में यहां का दौरा किया। यहां वह किसानों के साथ मिलकर अहिंसक तरीके से विरोध प्रदर्शन किया। गांधी और किसानों के विरोध के चलते जमींदार झुक गए। इसके बाद किसानों एवं जमींदारों के बीच नील की खेती के लिए एक करार हुआ। किसानों को खेती के लिए और अधिकार मिले और कर में कटौती की गई। इस किसान आंदोलन की सफलता ने महात्मा गांधी को देश भर में प्रसिद्धि और पहचान दिलाई। यहां से एक तरह से महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हो गई।
खेड़ा आंदोलन (1918)
गुजरात के खेड़ा गांव में किसानों पर जमींदारों के अत्याचार के खिलाफ इस आंदोलन की शुरुआत हुई। साल 1918 में आई बाढ़ एवं अकाल से यह गांव बूरी तरह प्रभावित हुआ था। इस आपदा से किसानों की फसल बर्बाद हो गई। किसानों ने अपनी बदहाली देखते हुए ब्रिटिश सरकार से करों में छूट देने की अपील की लेकिन अंग्रेजी हुकूमत इसके लिए तैयार नहीं हुई। इसके बाद किसानों ने गांधी और वल्लभ भाई पटेल की अगुवाई में अभियान छेड़ते हुए कर अदा करने से मना कर दिया। हुकूमत ने किसानों को उनकी जमीन जब्त कर लेने की धमकी दी लेकिन किसान अपने रुख से डिगे नहीं। मई 1918 में ब्रिटिश सरकार किसानों की मांग के आगे झुक गई और कहा कि बाढ़ की समाप्ति तक वह टैक्स नहीं वसूलेगी। ब्रिटिश सरकार ने किसानों की जब्त संपत्तियां भी लौटा दीं।
खिलाफत आंदोलन (1919)
खिलाफत आंदोलन भारत में मुख्य तौर पर मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आंदोलन था। इस आंदोलन का उद्देश्य (सुन्नी) इस्लाम के मुखिया माने जाने वाले तुर्की के खलीफा के पद की पुन:स्थापना कराने के लिए अंग्रेजों पर दबाव बनाना था। स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिमों का समर्थन हासिल करने के लिए गांधी 1919 में उनके पास गए। गांधी ने कहा कि इसके बदले वह खिलाफत आंदोलन में मुस्लिम समुदाय का समर्थन करेंगे। इसके बाद गांधी ऑल इंडिया मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता बने और दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार की ओर से मिले अपने पदकों को लौटा दिया। इस आंदोलन की सफलता ने महात्मा गांधी की लोकप्रियता एवं प्रतिष्ठा बढ़ा दी और देखते ही देखते वह राष्ट्र के नायक बन गए।
असहयोग आंदोलन (1920)
जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद इस असहयोग आंदोलन की नीव पड़ी। इस घटना के बाद महात्मा गांधी को यह अहसास हुआ कि भारतीयों के सहयोग के चलते अंग्रेज अपने मंसूबों में कामयाब हो रहे हैं। इसे देखते हुए गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। गांधी ने कांग्रेस के सहयोग से लोगों को यह समझाने में सफल हो गए कि अहिंसक तरीके से आंदोलन कर आजादी के सपने को पूरा किया जा सकता है। इसके बाद महात्मा गांधी ने लोगों के समक्ष अपने स्वराज की अवधारणा रखी जो आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक मजबूत आधार बन गई। गांधी के आह्वान पर लोगों ने धीरे-धीरे अंग्रेजी स्कूलो, कॉलेजों एवं सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। इस आंदोलन से अंग्रेजी हुकूमत की नीव हिल गई लेकिन चौरी चौरा की घटना से आहत होकर गांधी ने इस आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। दुनिया के देश इस समय द्वितीय विश्व युद्ध में उलझे थे। इस आंदोलन का लक्ष्य भारत से अंग्रेजों का शासन खत्म करना था। गांधी के सहयोग से कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से भारत छोड़ने की मांग रखी। गांधी ने भारतीयों को जागरूक करते हुए उनके समक्ष 'करो या मरो' का नारा दिया। इस आंदोलन से घबराई अंग्रेजी हुकूमत ने कांग्रेस के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया। अंग्रेजों के इस कदम के बावजूद आंदोलन की धार कमजोर नहीं पड़ी। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ देश भर में विरोध-प्रदर्शन होते रहे। अंग्रेजों ने इस आंदोलन की दबाने की भरपूर कोशिश की लेकिन उन्हें जल्द अहसास हो गया कि भारत पर उनका शासन ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला। द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने पर उन्होंने भारत की आजादी के संकेत दे दिए। इसके बाद हजारों भारतीयों की जेल से रिहाई होने पर गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन को स्थगित कर दिया।
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