कांग्रेस नेताओं को क्यों डरा रहा है 2000 का चुनाव ! जानें उस वक्त क्या हुआ था

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Sep 01, 2022 | 14:34 IST

Congress President Election: 31 अगस्त को वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट कर पूछा था कि मतदाता सूची सार्वजनिक किए बिना निष्पक्ष चुनाव कैसे होगा? क्लब के चुनाव में भी ऐसा नहीं होता ! इसके पहले आनंद शर्मी भी सीडब्ल्यूसी की बैठक में चुनाव प्रक्रिया में सवाल उठा चुके थे।

rahul gandhi and sonia gandhi president election
अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया पर कई नेताओं ने उठाए सवाल  |  तस्वीर साभार: PTI
मुख्य बातें
  • साल 2000 में सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले जितेंद्र प्रसाद को केवल 94 वोट मिले थे।
  • इस बार कांग्रेस अध्यक्ष के चयन में 9000 डेलीगेट भाग लेंगे।
  • करीब 22 साल बाद ऐसी नौबत बनती दिख रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए एक से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतर सकते हैं।

Congress President Election: एक तो कांग्रेस में लंबे इंतजार के बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। दूसरी तरफ नामांकन से पहले ही कांग्रेस के कई नेता पूरी चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाने लगे हैं। ऐसा इसिलए है कि करीब 22 साल बाद ऐसी नौबत बनती दिख रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए एक से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतर सकते हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और G-23 गुट के सदस्य मनीष तिवारी, पृथ्वीराज चाह्वाण, आनंद शर्मा और शशि थरूर जैसे नेताओं  मौजूदा चुनाव प्रक्रिया में संशय दिखाई दे रहा है।

उन्हें लगता है कि जिस तरह चुनाव के लिए डेलीगेट के चयन और दूसरी प्रक्रिया अपनाई जा रही है, उससे निष्पक्ष चुनाव होना मुश्किल है। इन नेताओं को आंशका इसलिए है कि इसके पहले जब साल 2000 में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए थे, तो सोनिया गांधी के खिलाफ मैदान में उतरे जितेंद्र प्रसाद को केवल 94 वोट मिले थे। और उनके गुट ने चुनावी प्रक्रिया में धांधली का आरोप लगाया था।

2000 के चुनाव की क्यों आ रही है याद

साल 2000 के चुनाव में जितेंद्र प्रसाद के गुट ने धांधली का आरोप क्यों लगाया था, उसके समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि कांग्रेस में अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया क्या है। असल में कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC)और कांग्रेस कार्य समिति (CWC)होती है। और उसके बाद प्रदेश स्तर पर प्रदेश कांग्रेस समिति होती है। और फिर जिला और ब्लॉक स्तर पर कांग्रेस कमेटी होती है। ब्लॉक समिति के स्तर से गोपनीय आधार पर प्रदेश कांग्रेस समिति में डेलीगेट भेजे जाते हैं। और अध्यक्ष चुनने में इन डेलीगेट के वोट बेहद निर्णायक होते हैं। कांग्रेस पार्टी के अनुसार इस बार की चुनावी प्रक्रिया में 9000 डेलीगेट भाग लेंगे।

साल 2000 में इन्ही डेलीगेट की वोटिंग पर जितेंद्र प्रसाद गुट ने सवाल उठाया था। उनका कहना था कि डेलीगेट के लिस्ट में फर्जी वोटरों को शामिल किया गया था। और उनकी लिस्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई थी। जिससे वह अपने समर्थन के लिए उनसे सहयोग मांग सकें। इन चुनावों में सोनिया गांधी को 7774 वोट मिले थे, जबकि जितेंद्र प्रसाद को केवल 94 वोट मिले थे। अब इसी आशंका को मनीष तिवारी से लेकर दूसरे नेता उठा चुके हैं।

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मनीष तिवारी ने लिस्ट जारी करने की मांग की

इसी आशंका को देखते हुए 31 अगस्त को वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट कर पूछा था कि मतदाता सूची सार्वजनिक किए बिना निष्पक्ष चुनाव कैसे होगा? क्लब के चुनाव में भी ऐसा नहीं होता ! इसके पहले शशि थरूर ने भी एक लेख में निष्पक्ष चुनाव की मांग की है। जबकि आनंद शर्मा ने रविवार को हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में  अध्यक्ष के चुनाव के लिए निर्वाचन सूची तैयार किए जाने को लेकर सवाल खड़े किए थे। और शर्मा ने सवाल पूछा था कि पार्टी के संविधान के तहत उचित प्रक्रिया का पालन किया गया या नहीं? वहीं पृश्वीराज चाह्वाण को इस बात का डर है कि कहीं कठपुतली अध्यक्ष न बना दिया जाय। यानी हो सकता है कि गांधी परिवार से कोई अध्यक्ष नहीं बने लेकिन ऐसे शख्स को अध्यक्ष बना दिया जाय तो उनके ही इशारों पर काम करें।

सोनिया गांधी की राजनीति में एंट्री के बाद से गांधी परिवार का ही अध्यक्ष पर कब्जा

सोनिया गांधी की राजनीति में एंट्री के बाद से अगर देखा जाय तो वह शुरू से ही अध्यक्ष पद पर काबिज रही है। 1998 में सीताराम केसरी को जबरन अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। और उसके बाद वह अध्यक्ष बनीं, फिर 2000 में चुनाव में उन्होंने जितेंद्र प्रसाद को हरा दिया था। और उसके बाद से 2017 तक वहीं अध्यक्ष रही। फिर 2017 में राहुल गांधी अध्यक्ष बनें, लेकिन उनके खिलाफ कोई चुनाव में नहीं उतरा था।

2019 के लोक सभा चुनावों में हार के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।  जबकि बीच में 3-4 महीने कोई अध्यक्ष नहीं था और फिर से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में काम कर रही हैं। इसके पहले साल 1978 से 1991 के दौरान इंदिरा गांधी और राजीव गांधी अध्यक्ष रहे। और उसके बाद सात साल तक गांधी परिवार राजनीति से दूर रहा। उस वक्त पी.वी.नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी अध्यक्ष बने।

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