नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी 2.0 सरकार का पहला वर्ष 30 मई को पूरा होने जा रहा है।अगर ठीक एक साल की इस अवधि में केंद्र सरकार की उपलब्धियों को देखें तो बड़े बड़े फैसले किए गए जिसमें आर्टिकल 370 का हटाया जाना, तीन तलाक को खत्म करना और सीएए एनआरसी शामिल है। लेकिन हम यहां 1 मार्च के बाद की एक बड़ी घटना का जिक्र करेंगे जिसका सामना भारत ही नहीं पूरी दुनिया कर रही है। इस समय कोरोना वायरस से आर्थिक व्यवस्था बेपटरी है, समृद्ध देशों की सामने भी इस वायरस से निपटने की चुनौती है। लेकिन कोरोना की यह चुनौती अवसर भी लेकर आई है।
कोरोना की चुनौती को अवसर में बदला
मार्च के दूसरे हफ्ते में देश के नाम संबोधन में पीएम नरेंद्र मोदी कोरोना के खतरे का जिक्र करने के साथ बताया कि यह कोरोना वायरस एक ऐसा दोस्त है जो बुलाने पर आता नहीं है और जब घर में दाखिल हो जाता है तो तबाह कर देता है। इन शब्दों के जरिए वो बता रहे थे कि खतरा कितना बड़ा है। भारत के लिए मुश्किल घड़ी थी। इस समय से निपटने के लिए पूरे इंतजाम भी नहीं थे, लिहाजा पीएम मोदी ने कोरोना का सामना करने के लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर लड़ने की पहल की और देश ने स्वागत किया। इसके साथ ही ट्रेसिंग, टेस्टिंग की व्यवस्था बढ़ाने पर काम शुरू हुआ। 24 मार्च के बाद देश एक नए बदलाव को महसूस कर रहा था जो लॉकडाउन के रक्षा कवच से लिपटी हुई थी।
लॉकडाउन, पीपीई किट और चीन
24 मार्च के बाद एक तरफ कोरोना के खिलाफ आक्रामक लड़ाई की तरफ देश बढ़ा तो चुनौती उन लोगों के सामने था जो कोरोना वारियर्स के तौर पर अपनी भूमिका अदा कर रहे थे। एक तरह से देश में पीपीई किट की कमी थी। सवाल यह था कि इसकी कमी को कैसे दूर किया जाए। मुश्किल की इस घड़ी में चीन पर उम्मीद टिकी। चीन के .यहां से पीपीई किट और रैपिड टेस्ट किट का आयात किया गया। लेकिन चीन के बारे में वो कहावत भारतीय संदर्भ में भी साबित हुई कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसे उसने ठगा नहीं। पीपीई किट में शिकायतों के बाद भारत ने आयात कैंसिल कर दिया और यहीं से टकराव की ऐसी कहानी शुरू हुई जो सिक्किम, लद्दाख में देखी गई।
पीएम की अपील आई काम, असर पड़ा चीन पर
अगर आप गौर करें तो पाएंगे कि जब मई के महीने में पीएम नरेंद्र मोदी देश को संबोधित कर रहे थे तो एक बड़ी बात कही और वो आत्मनिर्भर भारत के संबंध में थी। पीएम मोदी ने कहा कि यह जानकार हैरानी होगी कि जिस पीपीई किट के बारे में हम महज दो महीने पहले किसी और पर निर्भर थे आज हम उस दिशा में आत्मनिर्भर हो चुके हैं। चीन के बाद भारत में बड़े पैमाने पर उच्च गुणवत्ता वाले पीपीई किट का उत्पादन हो रहा है। यहां बात सिर्फ पीपीई किट के बनने की नहीं थी बल्कि चीन को संदेश दिया गया कि चुनौतियों को अवसरों में बदलने की माद्दा भारत में है। और इसके बाद चीन की तरफ से उकसाने वाली कार्रवाई शुरू हुई।
भारत अब 1962 वाला नहीं
यह बात सच है कि चीन इस समय कोरोना के मुद्दे पर कटघरे में है और उस सच का सामना करने के बजाए उसने भारतीय सीमा पर अपने सैनिक भेजे। इसके साथ ही नेपाल को भी उकसाया और उसका असर यह था कि भारत का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दोस्त नेपाल ने 389 किमी भूभाग पर अपना दावा ठोंक दिया। लेकिन चीन को शायद यह उम्मीद नहीं थी कि भारत भी लद्दाख में तुरंत अपने पांच हजार सैनिक उतार देगा। भारत ने साफ कर दिया था कि अगर चीन को कूटनीतिक भाषा समझ में आ गई तो बात ठीक है, लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है आगे का रास्ता अख्तियार किया जाएगा और उसका असर भी दिखाई दिया जब चीन ने कहा कि ड्रैगन और हाथी एक धुन पर डांस कर सकते हैं।
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