J&K:3 साल में 586 आतंकी ढेर,कम हुए हमले, टारगेट किलिंग और हाइब्रिड आतंकी नया चैलेंज

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Aug 05, 2022 | 17:12 IST

Jammu and Kashmir after Article 370: पिछले साल अक्टूबर 2021 में श्रीनगर में फार्मासिस्ट माखनलाल बिंद्रू की हत्या से टारगेट किलिंग का दौर शुरू हुआ है। जिसमें ज्यादातर कश्मीरी पंडितों और प्रवासी लोगों को आतंकियों ने निशाना बनाया है। अक्टूबर से लेकर जुलाई 2022 तक आतंकियों ने 40 आम नागरिकों की हत्या की है।

Jammu and Kashmir Terrorism and articel 370
फाइल फोटो:अनुच्छेद 370 हटने के तीन साल 
मुख्य बातें
  • अब लद्दाख जम्मू और कश्मीर हिस्सा नहीं है।
  • जम्मू और कश्मीर परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो गई है।
  • कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास अभी भी सपना है।

Jammu and Kashmir after Article 370: जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 ए हटे हुए तीन साल हो गए हैं। इस दौरान न केवल राज्य का नक्शा बदल गया है बल्कि राज्य को मुख्य धारा से जोड़ने के भी कई अहम कदम उठाए गए हैं। जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को बदलने का  सबसे बड़ा मकसद राज्य में आतंकी गतिविधियों पर लगाम कसना था। और अगर पिछले तीन साल में आतंकी घटनाओं के देखा जाय तो इस दौरान 2018 के मुकाबले आतंकी घटनाओं में 20-25 फीसदी तक कमी आई है। और करीब 586 आतंकी मारे गए हैं। अहम बात यह इन 3 साल में आम नागरिक आंतकियों के कम  निशाने बने हैं। लेकिन टारगेट किलिंग और हाइब्रिड आतंकी सुरक्षा बलों के लिए एक नई चुनौती बन कर उभरी है।

आतंकी हमलों में हुई मौत के मामले घटे

साउथ एशिया टेररिज्म  पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, 2018 में 206 ऐसी घटनाएं हुई थीं, जिसमें लोगों की मौत हुई थी। वह 2019 में 135,  साल 2020 में 140, साल 2021 में 153 और 2022 में 24 जुलाई तक 101 रह गई हैं। इसका सीधा असर आम लोगों की हत्याओं में कमी के रूप में दिखा है। साल 2018 में जहां 86 आम नागरिकों ने आतंकियों के हमले में अपनी जान गंवाई थी। वहीं  2022 में जुलाई तक 20 आम नागरिकों की जान गई है। इसी तरह अगस्त 2019 से जुलाई 2022 तक 586 आतंकी मारे गए हैं।

साल आतंकियों की मौत आम नागरिकों की मौत सुरक्षा बल जो शहीद हुए
2018 271 86 95
2019 163 42 78
2020 232 33 56
2021 193 36 45
2022 (24 जुलाई) 133 20 22

स्रोत: साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल

राजनीतिक नक्शा बदला अब चुनाव का इंतजार

अनुच्छेद 370 हटने के बाद राजनीतिक रूप से जो बड़ा बदलाव आया है, वह राज्य के नक्शे में बदलाव है। अब लद्दाख जम्मू और कश्मीर हिस्सा नहीं है। लद्दाख अब केंद्रशासित प्रदेश बन चुका है। और इस समय जम्मू और कश्मीर में भी केंद्रशासित प्रदेश हैं। लेकिन राज्य में चुनाव की सुगबुगाहट है। और इसके लिए जम्मू और कश्मीर परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी। इनमें में 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। अभी तक 36 सीटें जम्मू में हैं और कश्मीर में 46 सीटें हैं। इन 90 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है। जबकि 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गईं हैं। 

टारगेट किलिंग और हाइब्रिड आतंकी चुनौती

यह साफ है कि अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद से जम्मू और कश्मीर में आंतकी घटनाओं में कमी आई है। लेकिन इन 3 वर्षों में टारगेट किलिंग और हाइब्रिड आतंकी सुरक्षा बलों के लिए नई चुनौती बन गए हैं। दहशत फैलाने के लिए आतंकियों ने हाइब्रिड आतंकवादी का सहारा लिया है। जिसमें वह छोटे हथियारों से टारगेट किलिंग कर दहशत फैलाने का काम कर रहे हैं। हाइब्रिड आतंकवादी वे होते हैं जो आम तौर पर सामान्य जीवन जीते  हैं। इनका कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रहता है। ऐसे में उनकी पहचान मुश्किल है। ऐसे में आतंकवादी इनके जरिए छोटे हथियारों यानी पिस्टल आदि से हमला कराते है। और फिर भीड़ छुप जाते हैं। 

टारगेट किलिंग की रणनीति को अंजाम देने की शुरूआत पिछले साल अक्टूबर 2021 में श्रीनगर में फार्मासिस्ट माखनलाल बिंद्रू की आतंकियों ने उनके मेडिकल स्टोर में घुसकर हत्या करने के साथ शुरू किया है। अक्टूबर से लेकर जुलाई 2022 तक आतंकियों ने 40 आम नागरिकों की हत्या की है। इसमें से ज्यादातर टारगेट किलिंग के मामले हैं। आतंकियों के निशाने पर ज्यादा प्रवासी श्रमिक और कश्मीरी पंडित हैं। 

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कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास अभी भी सपना

 कश्मीरी पंडितों के 1989 में बड़े पैमाने पर पलायन से पहले लगभग 77 हजार कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे। जिनकी करीब 3.35 लाख आबादी थी। इसमें अब केवल 808 परिवार यानी 3000 लोग बचे हुए हैं। इसके अलावा बाहर से आकर यहां काम करने वाले 3500 से ज्यादा हिंदू हैं। यूपीए सरकार के समय 2009 में दिए गए पैकेज के जरिए 4000 लोग घाटी में आए थे। कुल मिलाकर करीब 10 हजार हिंदू और कश्मीरी पंडित रह रहे हैं। यानी अभी कश्मीरी पंडितों की बड़ी आबादी बाहर है। और उनमें बहुत से लोगों को पुनर्वास का इंतजार है।

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