2 पॉवर सेंटर के भंवर में कांग्रेस ! पंजाब में सिद्धू संकट, मध्य प्रदेश में सत्ता गंवाई, इनमें खतरा

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Sep 29, 2021 | 13:34 IST

Navjot Singh Sidhu News: कांग्रेस की आज पंजाब में जैसी स्थिति है, वैसी ही परिस्थितियों का उसे मध्य प्रदेश में सामना करना पड़ा था। और दो पॉवर सेंटर की लड़ाई में उसकी सरकार गिर गई थी।

Navjot Singh Sidhu with Sonia Gandhi
फाइल फोटो: सोनिया और प्रियंका गांधी के साथ नवजोत सिंह सिद्धू,   |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • दो पॉवर सेंटर का फॉर्मूला कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन गया है।
  • पंजाब, मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भी सीएम की कुर्सी के लिए दो गुटों में संघर्ष चल रहा है।
  • कई युवा नेता पार्टी का साथ भी छोड़ चुके हैं, उन्हें लगता है कि अब उनका कांग्रेस में कोई भविष्य नहीं है।

नई दिल्ली: नवजोत सिंह सिद्धू ने एक बार फिर पंजाब कांग्रेस को हिला दिया है। उन्होंने महज सवा दो महीने में ही पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफे की वजह, उन्होंने बुधवार सुबह एक वीडियो जारी कर बताई है। उन्होंने कहा है कि उनकी लड़ाई पंजाब की भलाई के लिए है और इस पर वह कभी समझौता नहीं कर सकते। वह अपने लिए कभी लड़ाई नहीं लड़ते। मैं कभी हाई कमान को गुमराह नहीं कर सकता। मैं किसी भी त्याग के लिए तैयार हूं। मैंने पंजाब के लोगों से जुड़े मुद्दों पर लड़ाई लड़ी है। लेकिन यहां दागी नेताओं एवं अफसरों की एक व्यवस्था बनाई गई है। आप फिर से उसी सिस्टम को दोबारा नहीं ला सकते। 

सिद्धू के बयान से साफ है कि वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के हटाए जाने के बाद नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी से खुश नहीं हैं। उनके बयान से यह भी साफ है कि उन्हें नए मुख्यमंत्री से तरजीह नहीं मिली है। पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले एक सूत्र का कहना है कि यह कुछ वैसा ही है, जैसा कि सिद्धू के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह किया करते थे। साफ है कि सिद्धू पॉवर में हिस्सेदारी चाहते हैं। उनकी उम्मीद इसलिए बढ़ती गई क्योंकि जब 2014 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। दिल्ली में बैठे आलाकमान ने उन्हें कैप्टन के समानांतर खड़ा करना शुरू किया। जिसकी वजह से उन्हें लगा कि वह पंजाब में कांग्रेस का न केवल चेहरा बन सकते हैं, बल्कि मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। इस संघर्ष में पंजाब में दो पॉवर सेंटर बन चुके हैं। और अब उसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ रहा है।

मध्य प्रदेश में सत्ता गंवाई

कांग्रेस की आज पंजाब में जैसी स्थिति है, वैसी ही परिस्थितियों का उसे 2020 में मध्य प्रदेश में सामना करना पड़ा था। जहां पर एक तरफ युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया थे और दूसरी तरफ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेता थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले तो मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद वह प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे। लेकिन उनकी कोई भी चाहत पूरी नहीं हो पाई। और इसी लड़ाई में 15 साल बाद 2018 में सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस की सरकार महज दो साल में गिर गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने,  न केवल पार्टी तोड़ी बल्कि भाजपा में शामिल होकर, उसकी सरकार भी बनवा दी। और  कांग्रेस को दो पॉवर सेंटर का नुकसान उठाना पड़ा।

राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी दो पॉवर सेंटर

कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश और पंजाब जैसे हालात राजस्थान में भी पिछले एक साल से बने हुए हैं। वहां पर राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का गुट खुलकर एक-दूसरे के सामने हैं। अगस्त 2020 में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच संघर्ष इस स्तर पर पहुंच गया था कि पायलट की पार्टी छोड़ने तक की स्थिति बन गई थी। असल में  2018 में जब राजस्थान विधान सभा के चुनाव हुए थे तो प्रदेश में पार्टी की अध्यक्षता सचिन पायलट के हाथ में थी। 

इसे देखते हुए जब कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई तो पायलट को उम्मीद थी कि उन्हें मुख्यमंत्री का ताज मिलेगा। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने अशोक गहलोत पर भरोसा जताया था। उसी समय से दोनों नेताओं के बीच अनबन शुरू हो गई थी। और वह अभी भी जारी है। पंजाब में जब आलाकमान ने मजबूत क्षत्रप कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया, तो राजस्थान में भी हलचल तेज हो गई थी। सचिन पायलट के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कई दौर की बातचीत भी कर चुके हैं। हालांकि जिस तरह पंजाब में घमासान छिड़ा हुआ है, लगता नही है कि आलाकमान फिलहाल कोई कदम उठाएगा।

इसी तरह छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टी.एस.सिंहदेव की बीच सीएम की कुर्सी के लिए लड़ाई जारी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार 2018 में जब सरकार बनी थी, तो दोनों नेताओं के बीच ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले के आधार पर सीएम बनाने का फैसला आलाकमान ने किया था। और अब ढाई साल पूरा होने के बाद सिंहदेव उसी वादे को पूरा करने के लिए आलकमान पर दबाव डाल रहे हैं। जबकि भूपेश बघेल विधायकों की ताकत दिखाकर आलाकमान को चेता रहे हैं कि उनके खिलाफ फैसला गया तो पार्टी में कुछ भी हो सकता है। 

केंद्रीय नेतृत्व कमजोर

कांग्रेस में खुलकर विरोध  क्यों सामने आर रहा है, इस पर सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कु्मार का कहना है "कांग्रेस में  साफ दिख रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व मसलों को हल करने में नाकाम हो रहा है। उसकी कई कोशिशों के बावजूद नेताओं की गुटबाजी खत्म नहीं हो पाती है। एक समय कांग्रेस में भाजपा के तरह शीर्ष नेतृत्व मजबूत होता था। लेकिन अभी वैसी स्थिति नहीं है। पार्टी के नेताओं को शीर्ष नेतृत्व को लेकर कंफ्यूजन है। जिसका असर दिख रहा है। "

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर