J&K New Voter:कौन है जम्मू-कश्मीर का नया वोटर, जिसने महबूबा-अब्दुल्ला की बढ़ा दी बेचैनी

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Aug 24, 2022 | 14:18 IST

Jammu And Kashmir New Voter: अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के पहले तक कश्मीर में केवल स्थानीय निवासियों को ही राज्य में वोट डालने का अधिकार था। लेकिन अब राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद देश के दूसरे हिस्सों जैसा ही नियम लागू हो गया है।

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नए वोटर के आने के क्या हैं सियासी संदेश 
मुख्य बातें
  • इस साल राज्य में 25 लाख नए वोटर जुड़ने की उम्मीद है।
  • राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गई है।
  • नए चुनाव में 2014 और 2018 जैसी स्थिति नहीं रहने वाली है।

Jammu And Kashmir New Voter:जम्मू और कश्मीर को लेकर मोदी सरकार ने एक और ऐतिहासिक फैसला किया है। राज्य में अब वह सभी लोग अपना वोट डाल सकेंगे, जो वहां पर बाहर से आकर बस गए हैं और उनके पास डोमिसाइल सर्टिफिकेट (निवास प्रमाण पत्र) नहीं है। सरकार के इस फैसले ने सियासत गरमा दी है।  जम्मू-कश्मीर के परंपरागत राजनीतिक दल पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस सरकार के इस फैसले के विरोध में खड़े हो गए हैं। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के पहले तक कश्मीर में केवल स्थानीय निवासियों को ही राज्य में वोट डालने का अधिकार था। लेकिन अब राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद देश के दूसरे हिस्सों जैसा ही नियम लागू हो गया है।

जुड़ेंगे 25 लाख नए वोटर

मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार के अनुसार जो गैर कश्मीरी लोग राज्य में रह रहे हैं, वे वोटर लिस्ट में अपना शामिल करवाकर वोट डाल सकते हैं। इसके लिए उन्हें डोमिसाइल सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है।आयोग के अनुसार शांति स्टेशन पर रहने सुरक्षाबलों के जवान भी वोटर लिस्ट में अपना नाम जुड़वा सकते हैं।  हृदेश के अनुसार इस साल राज्य में 25 लाख नए वोटर जुड़ने की उम्मीद है। इसमें छात्र, मजदूर,सरकारी कर्मचारी शामिल आदि होंगे। वोटर लिस्ट में उन लोगों का नाम शामिल किया जाएगा, जिनकी उम्र एक अक्टूबर 2022 तक 18 साल हो चुकी है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद वोटर लिस्ट में नए नाम जोड़ने की कवायद पहली बार की जा रही है। और यह काम 25 नवंबर तक पूरा हो जाएगा। साफ है कि अब सरकार जल्द ही चुनाव भी कराएगी। इस समय जम्मू और कश्मीर में 76 लाख वोटर हैं।
 

कौन से होंगे नए वोटर

साफ है कि इस नए फैसले से राज्य में, दूसरे राज्यों से आकर नौकरी, पढ़ाई या फिर बिजनेस कर रहे लोग, जम्मू-कश्मीर के वोटर बन सकते हैं। इसमें बड़ी संख्या में श्रमिक वर्ग भी वोटर बन सकता है, जो वहां पर दूसरे राज्यों से आकर काम कर रहा है। हालांकि उसके लिए, उसे जरूरी पात्रता शर्तें पूरी करनी होगी। जैसा कि दूसरे राज्यों में होता है। अंतर बस यही है कि वह जम्मू-कश्मीर का वोटर बनने के लिए डोमिसाइल सर्टिफिकेट की अनिवार्यता खत्म हो गई है।

इस बार 83 नहीं 90 विधान सभा सीटें

इस बीच 27 साल बाद राज्य में हुए परिसीमन के बाद नई विधानसभाओं की अधिसूचना जारी कर दी गई है। परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गई। इनमें में 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। अभी तक 36 सीटें जम्मू में थी और कश्मीर में 46 सीटें थी। इन 90 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है। जबकि 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर की नई विधानसभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। क्योंकि वह अब केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है।

क्या है राजनीतिक मायने

 2014 के विधानसभा चुनाव के परिणाम को देखा जाय तो पीडीपी को 28 सीटें, भाजपा को 25 सीटें, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं थी। इसमें भाजपा को केवल जम्मू क्षेत्र से जीत मिली थी, जहां हिंदुओं का प्रभाव है। वहीं उसे कश्मीर घाटी में एक भी सीट नहीं मिली थी। इसी तरह पीडीपी को केवल कश्मीर घाटी से सीटें मिली थी। भाजपा ने जम्मू की 37 में से 25 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं पीडीपी 46 में से 28 सीटें मिली थीं।इसी तरह 2008 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 21 सीटें, भाजपा को 11 सीटें, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 28 और कांग्रेस को 20 सीटें मिलीं थी। इसमें से भाजपा को सारी सीटें जम्मू क्षेत्र ही मिली थी। जबकि पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस का ज्यादातर सीटें कश्मीर घाटी में मिलीं। यानी अभी तक राज्य में अधिकतर बार सरकार बनाने वाली पार्टी, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस की कश्मीर घाटी पर निर्भरता ज्यादा थी। 

नए परिसीमन के साथ-साथ दूसरे राज्यों से आकर जम्मू और कश्मीर में बसने वाले राज्यों के वोटर बनने से साफ है कि नए चुनाव में 2014 और 2018 जैसी स्थिति नहीं रहने वाली है। जिसका सीधा असर राज्य के परंपरागत राजनीतिक दलों पर पड़ सकता है। 

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