Old Pension Scheme New Political Tool: आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने बीते मंगलवार को गुजरात में पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का वादा किया है। उनके इस ऐलान से दो दिन पहले पंजाब के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान ने ट्वीट किया कि पंजाब सरकार भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने पर विचार कर रही है। इसके पहले छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सरकार पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर चुकी है। वहीं झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम को लागू कर दिया है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम पर एक समिति का गठन कर दिया है। वहीं मध्य प्रदेश सहित दूसरे कई राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग उठ रही है।
जिन राज्यों में चुनाव वहां पर वादे
अगर अभी तक के ट्रेंड को देखा जाय तो राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड और हिमाचल प्रदेश पुरानी पेंशन या तो लागू कर दी गई है या फिर उसे लागू करने का वादा किया गया है। इसमें गुजरात, हिमाचल प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। जबकि राजस्थान, छत्तीसगढ़ में 2023 में चुनाव होंगे। वहीं झारखंड की राजनैतिक स्थिति को देखते हुए वहां चुनाव की आहट होने लगी है। ऐसे में राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए पुरानी पेंशन स्कीम का वादा कर रहे हैं। लेकिन इस वादे को अर्थशास्त्री खतरनाक ट्रेंड के रूप में देख रहे हैं। और उन्हें लगता है कि इसका राज्यों के खजाने पर निगेटिव असर पड़ेगा। भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार के.वी.सुब्रमण्यन ने लोकप्रियता हासिल करने के लिए, पुरानी स्कीम को बहाल करने की योजना पर चेतावनी दी है। और उसे नहीं लागू करने की सलाह दी है।
क्या कहती है SBI रिपोर्ट
एसबीआई की पुरानी पेंशन स्कीम पर आई रिपोर्ट कहती है कि मार्च 2022 तक राज्य सरकारों के करीब 55 लाख कर्मचारी नई पेंशन व्यस्था से जुड़े हुए थे। और वित्तीय वर्ष 2021-22 में कर्मचारियों की तरह से पेंशन फंड में 2.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा। अगर यह मान लिया जाय कि सभी राज्य पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करेंगे। तो उसका असर साल 2035 से दिखने लगेगा। और स्कीम में शामिल होने वाले कर्मचारियों की उस वक्त की उम्र 28 साल मानी जाय। इसके अलावा महंगाई दर को 5 फीसदी रखा जाय। तो पेंशन देनदारी जीडीपी का 13 फीसदी हो जाएगी।
वहीं पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों पर कहीं ज्यादा असर हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 20-21 में कुल प्राप्तियों में से पंजाब का 80 फीसदी, केरल का 73.9 फीसदी, पश्चिम बंगाल का 73.7 फीसदी और आंध्र प्रदेश का 72.2 फीसदी देनदारियों में खर्च हो जाता है। साफ है यह स्थिति तब है, जब इन राज्यों में अभी पुरानी पेंशन योजना लागू नहीं है। अगर नई योजना लागू होती है तो यह देनदारी और बढ़ेगी। और उसका असर सीधे तौर पर राज्यों के खजाने पर पड़ेगा।
क्या है पुरानी पेंशन योजना
साल 2004 से पहले तक सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम के तहत रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित रकम पेंशन के रूप में मिलती थी। जो कि कर्मचारियों के वेतन के आधार पर तय होती थी। स्कीम की खास बात यह थी कि कर्मचारी की मौत के बाद उसके आश्रितों को भी आधी पेंशन देने का प्रावधान था।
इसके बाद अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त होने वाले कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम को बंद कर दिया था। इसकी जगह नई पेंशन योजना लागू की गई थी। जिसमें कर्मचारियों की बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ता का 10 फीसदी हिस्सा पेंशन फंड के लिए कट जाता है। और यह रकम शेयर मार्केट से लिंक पेंशन फंड में लगाई जाती है।
कर्मचारी के रिटायरमेंट के बाद इसी फंड से उसे रकम मिलती है। लेकिन फंड मार्केट से लिंक होने की वजह से इसमें पेंशन तय नहीं होती है। साथ ही इस रकम पर टैक्स भी लगता है। और पेंशन पाने के लिए रकम का 40 फीसदी हिस्सा निवेश करना पड़ता है। साथ ही इसमें पुरानी पेंशन योजना के तहत महंगाई भत्ते का भी प्रावधान नहीं है। 2005 के बाद से केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए न्यू पेंशन स्कीम लागू है। जबकि पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु को छोड़कर दूसरे सभी राज्यों ने अपने यहां लागू कर दिया था। लेकिन अब राजस्थान, छत्तीसगढ़ ने इसे फिर से लागू कर दिया है। जबकि दूसरे कई राज्य तैयारी में हैं।
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