श्रीलंका की हालत अब दुनिया के सामने है। श्रीलंका के बारे में कहा जा रहा था कि वो चीन की जाल में फंस चुका है। यानी कर्ज की जाल में फंस गया और आने वाले समय में उसका असर दिखाई भी देगा। जिस बात की आशंका जताई जा रही थी वो आशंका सच साबित हुई। श्रीलंका में लोग महंगाई और डीजल के लिए सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं जिसकी वजह से आपातकाल लगाया गया है। लेकिन सवाल यह है कि श्रीलंका की हालत से भारत में विपक्ष क्यों डरा हुआ है। श्रीलंका के हालात को देखते हुए शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने पीएम नरेंद्र मोदी से अपील करते हुए कहा कि सरकार इस विषय पर सर्वदलीय बैठक बुलाए।
ममता के बाद शिवसेना ने सर्वदलीय बैठक की अपील की
दिल्ली में शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि श्रीलंका की स्थिति बेहद चिंताजनक है। भारत उस रास्ते पर है। हमें इसे संभालना होगा नहीं तो हमारी हालत श्रीलंका से भी खराब होगी। ममता बनर्जी ने भी पीएम मोदी के नेतृत्व में सर्वदलीय बैठक बुलाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि हमारे पड़ोसी मुल्क में हालात खराब है। ऐसे में हमें आगे बढ़कर कुछ कदम उठाने होंगे। हमें यह देखना होगा कि वहां की हालात का असर हमारे यहां ना पड़े।
ममता बनर्जी ने क्या कहा था
ममता ने सोमवार को कहा था कि भारत की आर्थिक स्थिति श्रीलंका से भी ज्यादा खराब है। उन्होंने पड़ोसी देश में छाए मौजूदा संकट पर चर्चा करने के लिए केंद्र से सर्वदलीय बैठक बुलाने की अपील की। उन्होंने कहा, 'भारत की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। श्रीलंका में लोग विरोध के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। आर्थिक स्थिति खराब है। भारत के आर्थिक हालात बदतर हैं।' हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वह श्रीलंका के साथ भारत की तुलना नहीं कर रही हैं। उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि केंद्र को सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए और केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल और जबरन लोकतंत्र को नियंत्रित करने के बजाय समाधान खोजना चाहिए कि इस संकट से कैसे पार होंगे।'
केंद्र की एक सलाह पर विपक्षी दल भड़के
बता दें कि इस तरह की अपील ममता बनर्जी की तरफ से भी की गई थी। लेकिन सवाल यह है कि क्या बात सिर्फ इतनी सी है। अगर श्रीलंका के हालात खराब हैं तो क्षेत्रीय दलों की अपील का मतलब क्या है। दरअसल केंद्र सरकार ने हाल ही में कहा कि जिस तरह से कुछ राज्यों द्वारा मुफ्त की स्कीम दी जा रही हैं उसकी वजह से अर्थव्यस्था के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। अगर इस तरह की नीति जारी रही तो हमें श्रीलंका सरीखे हालात का सामना कर पड़ सकता है। इस तरह के बयान के बाद सियासत तेज हो गई। राज्य सरकारों ने खास तौर से विपक्षी दलों ने दलील देते हुए कहा कि केंद्र से जो कर्ज लिया जाता है वो एफआरबीएम के दायरे में है। केंद्र सरकार की तरफ से गैर बीजेपी सरकारों को अनावश्यक तौर पर बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
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