सिखों के बलिदान को याद कर बोले PM मोदी- औरंगजेब के खिलाफ गुरु तेग बहादुर का संघर्ष आतंक से लड़ना सिखाता है

देश
किशोर जोशी
Updated Dec 25, 2021 | 15:59 IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के गुरुद्वारा लखपत साहिब में आयोजित एक कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि कोई भी देश की एकता को नुकसान न पहुंचा सके।

PM Modi says Guru Tegh Bahadur's valour against Aurangzeb teaches how country fights against terror
गुरु तेगबहादुर ने देश को आतंक से लड़ना सिखाया: PM मोदी 
मुख्य बातें
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के गुरुद्वारा लखपत साहिब में एक कार्यक्रम को किया संबोधित
  • हमारे गुरुओं का योगदान केवल समाज और आध्यात्मिकता तक ही सीमित नहीं है- पीएम मोदी
  • पीएम बोले- गुरु गोबिंद सिंह साहिब का जीवन हर कदम पर तप और बलिदान का एक जीता जागता उदाहरण

नई दिल्ली: भारत की आजादी और राष्ट्र निर्माण में सिख समुदाय के योगदान को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि गुरु तेग बहादुर की वीरता और औरंगजेब के खिलाफ उनका बलिदान सिखाता है कि देश किस तरह से आतंकवाद और धार्मिक अतिवाद के खिलाफ लड़ा। गुजरात के कच्छ में गुरुद्वारा लखपत साहिब में गुरुपर्व समारोह को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा, 'आज जब मैं इस पवित्र स्थान से जुड़ रहा हूं तो मुझे याद आ रहा है कि अतीत में लखपत साहब ने कैसे कैसे झंझावतों को देखा है। 2001 के भूकंप के बाद मुझे गुरु कृपा से इस पवित्र स्थान की सेवा करने का सौभाग्य मिला था। मुझे याद है, तब देश के अलग-अलग हिस्सों से आए शिल्पियों ने इस स्थान के मौलिक गौरव को संरक्षित किया।'

गुरु तेगबहादुर के पराक्रम को किया याद

पीएम मोदी ने कहा, 'आज देश सबका साथ, सब का विकास और सबका विश्वास के मंत्र पर आगे बढ़ रहा है। इस मंत्र के साथ आज देश सबका प्रयास को अपनी ताकत बना रहा है। अंग्रेजों के शासन में भी हमारे सिख भाइयों बहनों ने जिस वीरता के साथ देश की आजादी के लिए संघर्ष किया, हमारा आजादी का संग्राम, जलियांवाला बाग की वो धरती, आज भी उन बलिदानों की साक्षी है। औरंगजेब के खिलाफ गुरु तेग बहादुर का पराक्रम और उनका बलिदान हमें सिखाता है कि आतंक और मजहबी कट्टरता से देश कैसे लड़ता है। इसी तरह, दशम गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह साहिब का जीवन भी पग-पग पर तप और बलिदान का एक जीता जागता उदाहरण है।'

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गुरु साहब आदर्शों को प्रतीक

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'जिस तरह गुरु तेगबहादुर जी मानवता के प्रति अपने विचारों के लिए सदैव अडिग रहे, वो हमें भारत की आत्मा के दर्शन कराता है। जिस तरह देश ने उन्हें ‘हिन्द की चादर’ की पदवी दी, वो हमें सिख परंपरा के प्रति हर एक भारतवासी के जुड़ाव को दिखाता है। हमारे गुरुओं का योगदान केवल समाज और आध्यात्म तक ही सीमित नहीं है। बल्कि हमारा राष्ट्र, राष्ट्र का चिंतन, राष्ट्र की आस्था और अखंडता अगर आज सुरक्षित है, तो उसके भी मूल में सिख गुरुओं की महान तपस्या है। कोरोना के कठिन समय में हमारे गुरुद्वारों ने जिस तरह सेवा की जिम्मेदारी उठाई, वो गुरु साहब की कृपा और उनके आदर्शों का ही प्रतीक है।'

गुरुद्वारों का दिया उदाहरण

प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुद्वारों का जिक्र करते हुए कहा, 'इसी तरह गुरु अरजन देव जी ने पूरे देश के संतों के सद्विचारों को पिरोया और पूरे देश को भी एकता के सूत्र में जोड़ दिया। दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहब में उन्होंने दुखी लोगों का रोग निवारण कर मानवता का जो रास्ता दिखाया था, वो आज भी हर सिख और हर भारतवासी के लिए प्रेरणा है। गुरु नानक देव जी और उनके बाद हमारे अलग-अलग गुरुओं ने भारत की चेतना को तो प्रज्वलित तो रखा ही, भारत को भी सुरक्षित रखने का मार्ग बनाया। ये गुजरात के लिए हमेशा गौरव की बात रही  है कि खालसा पंथ की स्थापना में अहम भूमिका निभाने वाले पंज प्यारों में से चौथे गुरसिख, भाई मोकहम सिंह जी गुजरात के ही थे। देवभूमि द्वारका में उनकी स्मृति में गुरुद्वारा बेट द्वारका भाई मोहकम सिंह का निर्माण हुआ है।'

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तलवार और गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरुप लाए वापस

पीएम मोदी ने कहा, 'कुछ महीने पहले जब मैं अमेरिका गया था, तो वहां अमेरिका ने भारत को 150 से ज्यादा ऐतिहासिक वस्तुएं लौटाईं। इसमें से एक पेशकब्ज या छोटी तलवार भी है, जिस पर फारसी में गुरु हरगोबिंद जी का नाम लिखा है। यानि ये वापस लाने का सौभाग्य भी हमारी ही सरकार को मिला। अभी हाल ही में हम अफगानिस्तान से स-सम्मान गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूपों को भारत लाने में सफल रहे हैं। गुरु कृपा का इससे बड़ा अनुभव किसी के लिए और क्या हो सकता है?'

आपको बता दें कि हर साल 23 दिसंबर से 25 दिसंबर तक गुजरात की सिख संगत गुरुद्वारा लखपत साहिब में गुरु नानक देव जी का गुरुपर्व मनाती है। अपनी यात्रा के दौरान गुरु नानक देव लखपत में रुके थे। गुरुद्वारा लखपत साहिब में उनके अवशेष हैं जिनमें लकड़ी के जूते और पालकी (पालना) के साथ-साथ गुरुमुखी की पांडुलिपियां और चिह्नों की लिपियां शामिल हैं।

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