बौद्ध कूटनीति: लुंबिनी के बहाने इन समीकरणों को साधेंगे मोदी,चीन को लगेगा झटका !

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated May 16, 2022 | 12:21 IST

Modi In Lumbini: भारत से करीब 1850 किलोमीटर लगी लंबी सीमा रेखा नेपाल के साथ रोटी-बेटी के संबंधों का अहसास कराती रही है। लेकिन चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। लगातार छह साल से नेपाल में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक (FDI) चीन बन गया है।

Modi In Lumbini
लुंबिनी पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • पिछले 8 साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 5 वीं बार नेपाल पहुंचे हैं।
  • प्रधानमंत्री बनने के बाद,अपनी पहली विदेश यात्रा के तहत भारत पहुंचे शेर बहादुर देउबा ने बनारस की यात्रा की थी।
  • नेपाल अपने कुल निर्यात का करीब 72 फीसदी निर्यात भारत को करता है। जबकि कुल आयात का 62 फीसदी भारत से आयात करता है।

Modi In Lumbini: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुद्ध पूर्णिमा के अवसर नेपाल के लुंबिनी में हैं। लुंबिनी वह स्थान है जहां बौद्ध धर्म के संस्थापत गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर फॉर बौद्ध कल्चर एंड हेरिटेज के "शिलान्यास" कार्यक्रम में भाग लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा धार्मिक और कूटनितिक रूप से बेहद अहम है। और भारत-नेपाल के संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में बौद्ध कूटनीति बेहद अहम साबित हो सकती है। और उसका असर नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों पर दिख सकता है। हालांकि भारत के रास्ते में चीन बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है। क्योंकि चीन पहले से ही भारी निवेश के जरिए नेपाल को अपने पाले की कोशिश में लगा हुआ है। अकेले लुंबिनी में चीन ने 2011 में 3 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी। 3 अरब डॉलर का निवेश उस वक्त नेपाल की कुल जीडीपी का 10 फीसदी के बराबर था। नेपाल में करीब 8 फीसदी बौद्ध धर्म को मानने वाले रहते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 5 वां दौरा

पिछले 8 साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल 5 वीं बार पहुंचे हैं। जब वह 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो उस वक्त उनकी पहली विदेश यात्रा नेपाल ही थी। भारत से करीब 1850 किलोमीटर लगी लंबी सीमा रेखा नेपाल के साथ रोटी-बेटी के संबंधों का अहसास कराती रही है। प्रधानमंत्री के इस दौरे पर भारत के सहयोग से कुशीनगर से लुंबिनी के बीच रेल लाइन और भारतीय बौद्ध स्थलों को सड़क मार्ग से कपिलवस्तु और लुंबिनी से जोड़े जाने की परियोजनाओं पर अहम फैसले लिए जा सकते हैं। इसके अलावा , जल विद्युत परियोजनाओं, लुंबिनी बौद्धिस्ट यूनिवर्सिटी और त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के साथ भारतीय यूनिवर्सिटी के साथ भी समझौते हो सकते हैं। लुंबिनी में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी होगी।

शेहर बहादुर देउबा गए थे बनारस

जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लुंबिनी की यात्रा पर पहुंचे हैं। ठीक उसी तरह प्रधानमंत्री बनने के बाद, अपनी पहली विदेश यात्रा के तहत भारत पहुंचे देउबा ने बनारस की यात्रा की थी। और वहां पर उन्होंन काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन भी किए थे। देउबा के काशी और प्रधानमंत्री मोदी के बनारस यात्रा से साफ है कि दोनों देशों के नेता धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के जरिए एक-दूसरे के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहते हैं। 

देउबा के पहले नेपाल में राजनैतिक अस्थिरता के बीच जब केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने, तो नेपाल की चीन से नदजीकियां बढ़ने लगीं थी। चीन से बढ़ती नजदीकियों की वजह से नेपाल और भारत के रिश्तों पर भी असर पड़ा। सीमा विवाद से लेकर भगवान राम के खिलाफ बयानबाजी ने भी रिश्तों में तल्खी लाने का काम किया। लेकिन ओली के हटने के बाद जबसे शेर बहादुर देउबा के हाथ में नेपाल की कमान आई है, तब से एक बार फिर रिश्तों में गरमी दिखने लगी है।

चीन, भारत-नेपाल संबंधों में बड़ी चुनौती

भारत-नेपाल के रिश्तों के बीच चीन सबसे बड़ी चुनौती बन रहा है। और उसने इसके लिए पूंजी को हथियार बनाया है। वह बहुत तेजी से नेपाल की अर्थव्यवस्था को चीन पर निर्भर बनाने की कोशिश में है। Xinhua की रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 से 2020-21 के दौरान लगातार छह साल से नेपाल में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक (FDI) बन गया है। अकले 2020-21 में उसने 188 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। इसके पहले कोविड-19 दौर में भी चीन ने 317 मिलियन डॉलर के निवेश समझौते किए थे। इसमें सबसे ज्यादा निवेश चीन, नेपाल के टूरिज्म सेक्टर पर कर रहा है। जो कि करीब 125 मिलियन डॉलर के बराबर है। जाहिर इतने बड़े पैमाने पर निवेश से उसका प्रभाव नेपाल में बढ़ रहा है। इसके पहले चीन 2011 में अकेले लुंबिनी में 3 अरब डॉलर के निवेश का ऐलान कर चुका था।

इसके अलावा चीन ट्रेन डिप्लोमेसी का भी सहारा ले रहा है। जिसमें 300 मिलियन डॉलर के निवेश से तिब्बत के लहासा से नेपाल के काठमांडू तक रेल नेटवर्क स्थापित करना है। इसके प्रोजेक्ट के 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके अलावा चारों तरफ से जमीन से घिरा नेपाल अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए भारत पर बहुत ज्यादा निर्भर है। अब इस निर्भरता में सेंध लगाने के लिए चीन, रसुवागढ़ी-केरुंगु और तातोपानी-झांगमु बॉर्डर प्वांइट को खोलकर चीन के रास्ते ट्रेड बढ़ा रहा है। इसके अलावा बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव प्रोजेक्ट (BRI) भी ऐसा कदम है, जिसके जरिए चीन नेपाल पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि मार्च 2022 चीन के विदेश मंत्री वांग यी की यात्रा पर BRI को लेकर नेपाल ने ज्यादा उत्सुकता नहीं दिखाई थी। और उसने चीनी विदेश मंत्री से साफ कर दिया था कि वह लोन नहीं लेगा। अगर अनुदान दिया जाय तो लेने को तैयार है। जाहिर है नेपाल चीन के कर्ज के जाल में नहीं फंसना चाहता है।

भारत-नेपाल के बीच कारोबार और विवाद

चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच अभी भी भारत, नेपाल का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। नेपाल राष्ट्र बैंक के आंकड़ों के अनुसार 2019-20 में नेपाल अपने कुल निर्यात का करीब 72 फीसदी निर्यात भारत को करता है। जबकि कुल आयात का 62 फीसदी भारत से आयात करता है। जाहिर है नेपाल की भारत पर निर्भरता बहुत ज्यादा है। इस बीच कोरोना के कारण नेपाल का आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल हुई है। मार्च 2022 में उसका विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 975 अरब डॉलर का आ गया । इसी तरह उसके पर करीब 41 फीसदी विदेशी कर्ज है। ऐसे में नेपाल का हाल श्रीलंका जैसा न हो, उसके पहले अपने व्यापार में बढ़ोतरी की जरूरत है। लेकिन हाल ही में  उत्तराखंड के लिपुलेख में भारत की सड़क लंबी करने की घोषणा को लेकर नेपाल ने भारत को चेतावनी जारी करते हुए इसे तुरंत रोकने को कहा था। उनसे लिपुलेख को अपना इलाका बताया दिया था। हालांकि दोनों ही देशों ने हाल ही में लिपुलेख समेत सीमा विवाद को सुलझाने की जरूरत पर जोर दिया था। 

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