नई दिल्ली। देश कोरोना के खतरे के साथ साथ उसका सामना भी कर रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को देश के नाम संबोधन में कहा कि यह मान लेना कि कोरोना हमारे लिए खतरा नहीं है,गलत होगा। इस अदृश्य वायरस का सामना करने के लिए पीएम ने कहा कि संयम और संकल्प दो ऐसे हथियार हैं जिनके जरिए हम इस बीमारी का मुकाबला कर सकते हैं।
पीएम मोदी का खास आग्रह
कोरोना से निपटने के लिए उन्होंने खास आग्रह करते हुए कहा था 22 मार्च यानि रविवार के दिन सभी लोग अपने आपको सुबह सात बजे से 9 बजे के लिए घरों में कैद कर लें। यानि कि एक तरह से खुद पर पाबंदी लगा लें और जनता कर्फ्यू का नाम दिया। उनकी इस अपील के बाद आम जनमानस में कई तरह के सवाल उठने लगे कि आखिर इसका अर्थ क्या है, क्या किसी गंभीर कदम उठाए जाने से पहले इसे इस्तेमाल में लाया जा रहा है। लेकिन इसके साथ यह भी सब लोगों की उत्सुकता बनी कि आखिर जनता कर्फ्यू का विचार कैसे और कहां से आया।
जनता कर्फ्यू का करीब 70 साल पुराना इतिहास
दरअसल 1950 के दशक में यानि जब देश आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था तो उस समय इंदू लाल याग्निक भी अंग्रेजों के खिलाफ गुजरात में अलख जगा रहे थे। वो अंग्रेजी सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ अलख जगा रहे थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से विरोध जताने के लिए जनता कर्फ्यू की शुरुआत की थी। वो ुबार बार कहा करते थे कि जब आपके खिलाफ कोई बड़ी ताकत हो तो उसकी गलत नीतियों का अहिंसक विरोध यही है कि आप खुद को अलग थलग कर लें। याग्निक की इस अपील का गुजरात की जनता पर असर भी पड़ा। इसके साथ ही जब कभी स्वतंत्र भारत में सरकारी नीतियों का विरोध करना होता था तो वो इसका इस्तेमाल किया करते थे।
लाल बहादुर शास्त्री ने उपवास की अपील की थी
पीएम मोदी जब गुरुवार को रात आठ बजे जनता से 22 मार्च के लिए खुद को दूसरे से अलग थलग करने की अपील कर रहे थे। तो कुछ ऐसा ही वाक्ये का जिक्र करना जरूरी हो जाता है कि जब करीब 55-56 साल पहले भारत पाकिस्तान की लड़ाई के बाद पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने सभी लोगों के एक दिन उपवास पर रहने की अपील की थी दरअसल अमेरिका इस बात से खफा था कि पाकिस्तान के साथ भारत ने युद्ध क्यों किया था। अमेरिका मे पीएल-480 का निर्यात रोक दिया था और खाने की दिक्कत हो गई थी। इस तरह के हालात से निपटने के लिए शास्त्री जी ने उपवास का नारा दिया और वो कामयाब भी हुआ था।
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