Bhopal Gas tragedy: 36 साल पहले का वो मंजर आया याद, वही काली रात और काल के गाल में समा गए लोग

देश
ललित राय
Updated May 07, 2020 | 16:56 IST

Vizag Gas Leak and Bhopal gas leakage case: एक बार फिर वही कहानी दोहराई गई जो 36 साल पहले भोपाल में हुई थी.. हजारों लोग काल के गाल में समा गए और जो बचे हैं वो दुख और दर्द का सामना कर रहे हैं।

36 साल पहले का वो मंजर आया याद, वही काली रात और काल के गाल में समा गए लोग
भोपाल गैस कांड में मारे गए थे हजारों लोग 
मुख्य बातें
  • भोपाल में 2-3 दिसंबर, 1984 की रात यूनियन कार्बाइड कैमिकल प्‍लांट से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था
  • यहां की मिट्टी व भूमिगत जल में लगातार रसायन का रिसाव हुआ, जिसका असर आज भी देखा जाता है
  • 50 हजार लोग इसकी चपेट में आ गए, जो आज भी इसके जख्‍म के साथ जीने को मजबूर हैं

नई दिल्ली। पूरे देश में विशाखपत्तनम गैस लीक कांड चर्चा में है। रात का यही 2 से तीन का वक्त था, एलजी पॉलीमर प्लांट के अगल बगल के गांव में लोग गहरी नींद में थे, एकाएक मौत वासी गैस का रिसाव शुरू होना शुरू हुआ, जो लोग गहरी नींद में वो सोये ही रह गए। जंगल में आग की तरह यह खबर फैली प्रशासनिक अमला सक्रिय हुआ। पीड़ित लोगों को अस्पतालों तक ले जाने की कार्रवाई शुरू हुई और इस तरह से एक और हादसे की तस्वीरें ताजा हो गई जो 36 साल पहले जाड़े की रात में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई और उसे हम सब भोपाल गैस कांड के नाम से जानते हैं। 

36 साल पुराना मंजर आया याद
हर साल जब दिल्ली समेत उत्तर भारत ठंड की चादर में लिपट जाता है को भोपाल से लेकर दिल्ली के जंतर मंतर तक उन लोगों की आवाज गूंजती है जो 36 साल पहले एक आपराधिक कृत्य के लिए जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हैं। 1984 के उस गैस लीक में जो लोग बच गए वो दिव्यांग हो गए यानि की कुछ न कुछ शारीरिक दिक्कतों के साथ जीवन बसर कर रहे हैं। उन बच्चों का कोई कसूर नहीं था जिन्होंने आंख नहीं खोली थी और जब चार दिसबंर की सुबह सूरज की पहली किरणों से सामना हुआ तो परेशानियां उन सबका इस्तकबाल कर रही थीं। 
Bhopal Gas Tragedy: वो स्‍याह रात, जो निगल गई हजारों जिंदग‍ियां, 35 साल बाद भी हरे हैं जख्‍म
भोपाल गैस केस और विशाखापत्तनम केस में कई अंतर के साथ कई समानताएं हैं। भोपाल में जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट का रिसाव हुआ था, उस कंपनी का नाम यूनियन कॉर्बाइड था वो कंपनी भी शहर के बाहर थी तो विशाखापत्तनम में रिसने वाली गैस का नाम स्टाइरीन है, कंपनी का नाम एलजी पॉलीमर है। यह कंपनी भी शहर के बाहर थी। इन अंतरों के साथ समानता यह है कि 36 साल पहले भोपाल जैसी चीत्कार आज विशाखापत्तनम से आ रही थी। 



लापरवाही का खामियाज भुगत रहे हैं लोग
यूनियन कार्बाइड  प्‍लांट से निकली जहरीली गैस के कारण जान गंवाने वालों की संख्‍या सरकारी आंकड़ों में करीब 3800 के आसपास बताई जाती है। लेकिन कई संगठनों का मानना है कि उस भीषण त्रासदी में लगभग 20,000 लोगों की जान गई।  1969 में यून‍ियन कार्बाइड का कीटनाशक कारखाना खोला गया उस समय से ही स्‍थानीय से लेकर राष्‍ट्रीय मीडिया  ने इस मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठाया कि किस तरह से सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई है। लेकिन इस राज्य से लेकर केंद्र सरकारों ने लोगों की आशंका को दरकिनार कर दिया। 1984 की घटना के बाद वॉरेन एंडरसन तब रातोंरात भारत छोड़कर अपने देश अमेरिका फरार हो गया। हादसे के 36 साल बाद भी इस मामले में गुनहगारों को सजा नहीं मिली, जिसका पीड़‍ितों को अब भी इंतजार है।

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