Freebies: चुनाव में मुफ्त सुविधाओं की घोषणाओं पर SC सख्त, सरकार से कहा-पता लगाएं कि इसे रोका जा सकता है या नहीं  

Freebies politics in India :  मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट को बताया कि मुफ्त की सुविधाओं के चलते देश पर कुल 6.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है और हम भी श्रीलंका के रास्ते पर जा रहे हैं। इस पर प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने कहा कि इस बारे में सरकार को पहले कदम उठाने दीजिए। 

 SC strict on freebies asks government to find out whether it can be stopped or not
चुनाव में मुफ्त सुविधाओं की घोषणाओं पर SC सख्त।  |  तस्वीर साभार: PTI
मुख्य बातें
  • मुफ्त सुविधाओं वाली राजनीतिक दलों की घोषणा पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है
  • अदालत ने सरकार से कहा है कि वह पता करे कि इस पर रोक लग सकती है या नहीं
  • अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट को बताया कि अपना देश भी श्रीलंका के रास्ते पर जा रहा है

Freebies politics : राजनीतिक दलों की तरफ से की जाने वाली मुफ्त की घोषणाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख दिखाया है। कोर्ट ने मंगलवार को सरकार से कहा कि वह देखे कि इस बारे में रोक लगाई जा सकती या नहीं। अदालत ने सरकार से इस बारे में जरूरत पड़ने पर वित्त आयोग की मदद लेने का भी निर्देश दिया है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग मुफ्त की घोषणाओं पर अंकुष लगाने के बारे में अपने हाथ कैसे खड़े कर सकता है। अदालत इस मामले की अगली सुनवाई अब तीन अगस्त को करेगी। 

'देश पर कुल 6.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज'
वहीं, मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट को बताया कि मुफ्त की सुविधाओं के चलते देश पर कुल 6.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है और हम भी श्रीलंका के रास्ते पर जा रहे हैं। इस पर प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने कहा कि इस बारे में सरकार को पहले कदम उठाने दीजिए। 

ईसी अपने हाथ खड़े नहीं कर सकता-कोर्ट
कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह इस बात को वित्त आयोग से पता करे कि राज्यों द्वारा मुफ्त की अनावश्यक सुविधाओं पर होने वाले खर्च को ध्यान में रखते हुए क्या उन्हें आवंटित होने वाले राजस्व पर नियंत्रण लगाया जा सकता है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि चुनाव के समय मतदाताओं को यह रिश्वत देने जैसा है और इसका अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।

फैसला मतदाता करते हैं-ईसी
बता दें कि चुनाव आयोग ने कुछ दिनों पहले अपने हलफनामे में कहा कि इस तरह की नीतियां वित्तीय रूप से व्यावहारिक हैं या नहीं अथवा इसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर फैसला संबंधित राज्य के मतदाताओं द्वारा किया जाना है। वह मुफ्त की घोषणाओं पर रोक नहीं लगा सकता।

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