नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों पर दायर अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को अपना फैसला सुना सकता है। पिछले साल दिसंबर में शाहीन बाग में में सीएए के खिलाफ बड़ा धरना देखने को मिला था। समझा जाता है कि शीर्ष अदालत अपने फैसले में प्रदर्शन करने के अधिकार और इससे दूसरों को होने वाली असुविधा के बीच संतुलन कायम कर सकती है। धरना-प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला काफी अहम माना जा रहा है।
कोर्ट का फैसला से यह बात साफ हो सकेगी कि क्या दूसरों को लिए परेशानी खड़ा करते हुए किसी सार्वजनिक स्थल पर अनिश्चितकाल समय तक धरना दिया जा सकता है, अथवा इस तरह के धरने-प्रदर्शन की अवधि पर किसी तरह की शर्त रखने की जरूरत है। हालांकि कोर्ट यह पहले ही साफ कर चुका है कि धरना-प्रदर्शन को लेकर कोई एक 'शाश्वत नीति' नहीं हो सकती क्योंकि हर मामला एक दूसरे से अलग होता है।
इस मामले की पिछली सुनवाई गत 21 सितंबर को हुई थी। पिछली सुनवाई में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरूद्ध बोस एवं जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उस समय पीठ ने कहा, 'हमें सड़क को बाधिक करने और प्रदर्शन के अधिकार के बीच एक संतुलन लाना होगा। एक संसदीय लोकतंत्र में धरना एवं प्रदर्शन संसद एवं सड़क पर हो सकते हैं लेकिन सड़क पर यह शांतिपूर्ण होना चाहिए।'
बता दें कि शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ करीब 100 दिनों तक धरना चला था। यहां का विरोध प्रदर्शन देश भर में सीएए की खिलाफत का एक प्रतीक बना। इसी की तर्ज पर देश भर में अलग-अलग जगहों पर धरने आयोजित किए गए। शाहीन बाग में धरने का नेतृत्व मुस्लिम समाज की महिलाओं ने किया। धरने में शामिल लोग सरकार से सीएए को वापस लेने की मांग कर रहे थे। मुस्लिम समाज को आशंका है कि सीएए कानूनों के बाद सरकार देश में एनआरसी की प्रक्रिया शुरू कर सकती है और उनसे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा जा सकता है। हालांकि, सरकार ने बार-बार कहा है कि सीएए कानून नागरिकता छीनने के लिए बल्कि नागरिकता देने के लिए लाया गया है।
शाहीन बाग का धरना खत्म कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी लगाई गई थी। अर्जी में कहा गया था कि सड़क बाधित होने से लोगों को नोएडा से दिल्ली आने-जाने में असुविधा का सामना करना पड़ता है। इस मामले का हल निकालने के लिए कोर्ट ने एक समिति बनाई थी जिसने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की। कोरोना संकट की वजह से बाद में लोग धरने से खुद हट गए।
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