मुंबई : महाराष्ट्र में जारी सियासी घमासान के बीच शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के जरिये बीजेपी, अजित पवार और राज्यपाल पर निशाना साधा है। पार्टी ने इस क्रम में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का जिक्र करते हुए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर वार किया है। पार्टी ने कहा कि एक भगत सिंह ने जहां देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे को चूम लिया, वहीं दूसरे भगत सिंह ने लोकतंत्र को सूली पर लटका दिया।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में लिखा है कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने राजभवन को 162 विधायकों का पत्र प्रस्तुत किया और सभी विधायक राजभवन में राज्यपाल के समक्ष खड़े रहने को भी तैयार हैं। इतनी साफ तस्वीर होने के बावजूद राज्यपाल ने किस बहुमत के आधार पर देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई? पार्टी ने यह भी कहा कि बीजेपी और अजित पवार की ओर से जाली कागजात पेश किए गए, जिस पर 'संविधान के रक्षक' भगत सिंह नाम के राज्यपाल ने आंख बंद करके भरोसा कर लिया।
राज्यपाल पर वार करते हुए शिवसेना ने अपने मुखपत्र में लिखा है कि एक भगत सिंह ने जहां देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे को चूम लिया था, वहीं दूसरे भगत सिंह के हस्ताक्षर से रात के अंधेरे में लोकतंत्र और आजादी को सूली पर चढ़ा दिया गया।
शिवसेना ने महाराष्ट्र में शनिवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले एनसीपी नेता अजित पवार पर भी हमला बोला और कहा कि उनका खेल उसी वक्त खत्म हो गया, जब उन्होंने कहा कि 'शरद पवार हमारे नेता हैं और मैं एनसीपी से हूं।' यह साफ तौर पर हार की मानसिकता है। पार्टी ने अजित पवार को चुनौती देते हुए कहा कि उन्हें सबसे पहले बारामती से विधायक पद से इस्तीफा देकर पार्टी के सभी पदों से भी त्यागपत्र दे देना चाहिए और अपनी अलग राजनीति शुरू करनी चाहिए थी। लेकिन वह उसे चुरा रहे हैं, जो उनके चाचा ने कमाया। उनका यह कहना कि 'मैं नेता, यह मेरी पार्टी' पागलपन की हद है।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र में लिखा है कि शरद पवार ने दो बार कांग्रेस छोड़ी और अपनी नई पार्टी खड़ी की। लेकिन अजित पवार अपने खिलाफ 'ईडी' की जांच और मामला दर्ज किए जाने के साथ ही घुटने टेक दिए। अजित पवार अपने भाषणों में कहा करते थे कि वह कभी झूठ नहीं बोलते, पर अब वह रोजाना झूठ बोलते हैं।
शिवसेना ने बीजेपी पर वार करते हुए लिखा कि जब फडणवीस के पास बहुमत था तो इसके लिए 'ऑपरेशन लोटस' की जरूरत क्या थी? पार्टी का संपादकीय महाराष्ट्र के लोगों को 'चिंता न करें' कहते हुए समाप्त होता है।
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