तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे हैं, सिंघू बार्डर उनमें से एक है। सिंघू बार्डर हरियाणा के सोनीपत में है। शुक्रवार की सुबह सुबह एक बैरिकेडिंग पर एक शख्स का शव टंगा मिला जिसका हाथ कटा हुआ था। जैसे ही इसकी जानकारी फैली माहौल गरम हो गया और शक की पहली सुई निहंगों पर जा टिकी। मृतक शख्स का नाम लखबीर सिंह है जो पंजाब के तरनतारन का रहने वाला है, बताया जा रहा है कि वो निहंगो का सेवादार था। इस कांड में अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। रोहतक रेंज के आईजी का कहना है कि जल्द ही घटना की तह तक पुलिस पहुंचेगी। इन सबके बीच यह जानना जरूरी है कि निहंग कौन होते हैं।
निहंगों का प्राचीन इतिहास
निहंगों का पुराना इतिहास है, 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने जब खालसा की स्थापना की तो उसके साथ ही निहंग सिखों की उत्पत्ति हुई। निहंगों के जत्थे ने मुगलिया जोर जुल्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी। यही नहीं अफगानिस्तान से आने वाला आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने पश्चिमोत्तर भारत खासतौर से पंजाब के शहरों को निशाना बनाया तो निहंगों ने उनका सामना किया।
निहंग का अर्थ और पहचान
संस्कृत, श्री गुरु ग्रंथ साहिब और फारसी में अलग अलग अर्थ है, इसका मतलब तलवार, मगरमच्छ, घोड़ा, और गुरु ग्रंथ साहिब में एक निडर शख्स। इन लोगों के पोशाक नीले रंग में होते हैं, योद्धा स्टाइल की पगड़ी जिसमें अर्द्ध चंद्र आकार में दोधारी तलवार बैज के रूप में, तलवार, लोहे का कंगन, करतार या कमरबंद खंजर, ढाल, युद्ध के जूते और बंदूक या रायफल।
इस समय निहंग के तीन मंडल, तरुना दल, बुद्ध दल या बुजुर्गों का समूह और कुछ ऐसे भी दल हैं जिन पर कोई केंद्रीय कमान नहीं है। निहंगों पर भांग के सेवन का भी आरोप है, हालांकि सिख धर्म में इसकी मनाही नहीं है। बताया जाता है कि ज्यादातर आपराधिक तत्व निहंगों से जुड़े हुए हैं
महाराजा रणजीत के साम्राज्य विस्तार में मदद
1818 में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य विस्तार में निहंग सिखों ने जबरदस्त भूमिका निभाई थी।निहंग लड़ाकों की मदद से सरकार- ए-खालसा ने पंजाब में अफगान प्रभाव को खत्म किया। इसके साथ ही सिंध का रास्ता भी खोला। लेकिन 1849 आते आते जब ब्रिटिश सरकार मजबूत बन कर उभरी तो निहंगों की शक्ति कमजोर पड़ी।
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