बाबू वीर कुंवर सिंह: 1857 की क्रांति का वो महानायक, जिसने एक हाथ से लड़कर अंग्रेजों को खदेड़ा

Babu Veer Kunwar Singh: 1857 क्रांति के योद्धा बाबू वीर कुंवर सिंह एकमात्र नायक थे, जिन्होंने अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए अपने क्षेत्र को आजाद कराया।

Veer Kunwar Singh
पटना में वीर कुंवर सिंह की प्रतिमा। (फाइल फोटो)  |  तस्वीर साभार: PTI

नई दिल्ली: 1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी। इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे बाकी स्थानों पर फैल गई। वैसे तो संग्राम में कई लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाई लेकिन अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए अपने क्षेत्र को आजाद करने वाले एकमात्र नायक बाबू वीर कुंवर सिंह थे। उन्होंने 23 अप्रैल, 1858 को शाहाबाद क्षेत्र को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराया था। उन्होंने जगदीशपुर के अपने किले पर फतह पाई थी और ब्रिटिश झंडे को उतारकर अपना झंडा फहराया था। उसी आजादी का पारंपरिक विजयोत्सव दिवस 23 अप्रैल को मनाया जाता है। 

80 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़े

महानायक कुवंर सिंह 1857 के बिहार के क्रांतिकारियों के प्रमुख नेता और सबसे ज्वलंत व्यक्तियों में थे। कुंवर सिंह का जन्म साल 1777 में बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर में हुआ था। उनके पिता साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से थे। उनके पिता की साल 1826 में मृत्यु हो गई थी जिसके बाद वह जगदीशपुर के तालुकदार बने। वह गुर्रिल्ला युद्ध शैली में काफी कुशल थे जिसका प्रयोग उन्होंने क्रांति में किया। कुंवर सिंह जब अंग्रेजों से लड़े, तब उनकी उम्र 80 साल थी। उन्होंने अपनी उम्र को खुद पर हावी नहीं होने दिया और अंग्रेजों को डटकर मुकाबाल किया।

कब उठाई कुंवर सिंह ने तलवार?

1857 के संग्राम के दौरान पटना एक अहम केंद्र था जिसकी शाखाएं चारों ओर फैली थीं। पटना के क्रांतिकारियों के मुख्य नेता पीर अली को अंग्रेजों ने फांस दे दी थी जिसके बाद दानापुर की देसी पलटनों ने स्वाधीनता का घोषणा कर दी। ये पलटनें जगदीशपुर की तरफ गईं और कुंवर सिंह ने इनका नेतृत्व संभाला। इसके बाद कुंवर सिंह ने कई कामयाब हासिल कीं। उन्होंने आरा में अंग्रेजी खजाने पर कब्जा किया। जेलखाने के कैदी रिहा किए। उन्होंने आजमगढ़ पर कब्जा किया। इतना ही नहीं लखनऊ से भागे कई क्रांतिकारी भी कुंवर सिंह की सेना में आ मिले थे। 

जब एक हाथ से लड़े कुंवर सिंह

अप्रैल 1958 में नाव के सहारे गंगा नदी पार करने के दौरान अंग्रेजों ने कुंवर सिंह पर हमला कर दिया था। वह नदी पार करते समय अपने पलटन के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों से घिर गए थे। इस क्रम में उनके हाथ में गोली लग गई। गोली उनकी बायीं बांह में लगी।  गोली लगने के बाद उन्होंने अपने ही तलवार से हाथ काटकर उसे गंगा नदी में अर्पित कर दिया। हालांकि, घायल होने के बावजूद उनकी हिम्मत नहीं टूटी और जगदीशपुर किले को फतह कर ही दम लिया। एक ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, ‘यह गनीमत थी कि युद्ध के समय उस कुंवर सिंह की उम्र 80 थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।'

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