Brahmastra: वो दैवीय हथियार जो पूरी सृष्टि को कर सकता था नष्ट, महाभारत में अर्जुन ने तो लंका युद्ध में मेघनाद ने किया था इस्तेमाल

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शिशुपाल कुमार
शिशुपाल कुमार | Principal Correspondent
Updated Sep 09, 2022 | 22:37 IST

हिन्दू धर्म ग्रंथों में कई जगह ब्रह्मास्त्र का उल्लेख मिलता है। महाभारत से लेकर लंका युद्ध तक में इसके प्रयोग की बात कही गई है। कहा जाता है कि उस समय ब्रह्मास्त्र जैसा खतरनाक हथियार और कोई नहीं था।

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तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • लक्ष्मण के पास भी था ब्रह्मास्त्र, लेकिन भगवान राम ने नहीं करने दिया था उपयोग
  • जिसके बाद मेघनाद ने कर दिया था लक्ष्मण पर इसका प्रयोग
  • महाभारत में अश्वत्थामा ने सबसे पहले किया था ब्रह्मास्त्र का प्रयोग

आज रणवीर कपूर की फिल्म ब्रह्मास्त्र भले ही फेल हो गई हो, लेकिन जहां से इस नाम की उत्पत्ति हुई यानि कि दैवीय शक्ति वाला ब्रह्मास्त्र, कभी फेल नहीं होता था। एक बार चल गया तो त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महादेव) के अलावा, उसके प्रभाव को कोई कम नहीं कर सकता था। इतना सटीक हमला करता था कि दुश्मन जबतक सोचता तबतक वो सबकुछ तबाह कर देता था। जहां भी गिरा सालों साल तक कोई भी जीव-जंतु, पेड़-पौधा पैदा नहीं होता।

ब्रह्मा का हथियार

जैसा कि इसके नाम से ही भगवान ब्रह्मा के नाम का स्मरण हो जाता है, तो ये तो साफ है कि इस हथियार को ब्रह्मा ने ही बनाया होगा। राक्षसों का संहार करने के लिए इस हथियार को बनाया गया था। शुरूआत में यह हथियार देवताओं के पास था, बाद में इसकी संहारक क्षमता को देखते हुए कई दैत्यों और मनुष्यों ने भी कठोर तपस्या करके इसे हासिल कर लिया था। 

नहीं था कोई तोड़

ब्रह्मा का ये दैवीय हथियार जब एक बार चल जाता था तो इसकी काट कोई भी हथियार नहीं कर सकता था। सिर्फ एक ब्रह्मास्त्र ही दूसरे ब्रह्मास्त्र को रोक सकता था। लेकिन ऐसी स्थिति में सृष्टि का नाश तय था। ब्रह्मास्त्र को एक और तरीके से वापस लाया जा सकता था, वो तरीका था, अगर ब्रह्मास्त्र को चलाने वाला शख्स उसे वापस बुला ले।

मंत्रों के सहारे होता था उपयोग

ऐसे तो इस अस्त्र के उपयोग करने को लेकर चेतावनी दी जाती थी। इसके दुष्परिणाम के बारे में बताया जाता था। इसे इस्तेमाल करना और भी कठिन था। मंत्रों के उच्चारण और ध्यान के सहारे यह हथियार लॉन्च किया जाता था। इसे लॉन्च करना और वापस बुलाना दोनों की अलग-अलग विद्या होती थी और दोनों ही सिखना अनिवार्य था।

जब हुआ इस्तेमाल

इसका इस्तेमाल कई बार हुआ या करने की कोशिश की गई। कई बार समझाने के बाद इस अस्त्र को वापस ले लिया गया। हालांकि रामायण और महाभारत दोनों में इसका प्रयोग हुआ था। दरअसल हुआ यूं कि लंका युद्ध चल रहा था। लक्ष्मण और मेघनाद के बीच लड़ाई चल रही थी। इसी बीच लक्ष्मण ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहा तो भगवान राम ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया, लेकिन यही ब्रह्मास्त्र मेघनाद के पास भी था और उसने इसे लक्ष्मण पर चला दिया था। चूंकि लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे, इसलिए वो सिर्फ मूर्छित हुए। 

वहीं महाभारत में जब युद्ध अंतिम क्षणों में पहुंचा, पिता की मृत्यु के और पांडवों को जीत की ओर बढ़ता देख गुरु द्रोणाचार्य के बेटे अश्वथामा ने इसका प्रयोग कर दिया था। जब अर्जुन और भगवान कृष्ण ने इसे रोकने के लिए कहा तो वो नहीं माना, जिसके बाद उसे रोकने के लिए अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था। ये सबकुछ महर्षि वेदव्यासजी के सामने हो रहा था, उन्होंने तुरंत दोनों ब्रह्मास्त्र को रोका और अर्जुन- अश्वथामा से इसे वापस लेने के लिए कहा, लेकिन अश्वथामा को ब्रह्मास्त्र वापस लेना नहीं आता था। जिसके बाद उसने उतरा के गर्भ की ओर ब्रह्मास्त्र को मोड़ दिया था। कृष्ण के काफी समझाने के बाद अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र को वापस लिया और कृष्ण ने अपनी शक्ति से उतरा के गर्भ की रक्षा की थी।

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