नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को बड़ा ऐलान करते हुए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की, जिसके विरोध में किसान बीते करीब एक साल से आंदोलन कर रहे हैं। यह कानून बीते साल सितंबर में लाया गया था, जिसके बाद ही पंजाब सहित देश के कई हिस्सों में किसानों का विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया था। बाद में किसानों ने दिल्ली की ओर रुख गया, जिसके बाद यह एक बड़ा आंदोलन बन गया।
कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर किसानों का धरना 26 नवंबर, 2020 से ही जारी है और अब जब प्रधानमंत्री ने इन विवादास्पद कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है तो किसानों ने इसका स्वागत किया है। इन सबके बीच इस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल के एक सदस्य की प्रतिक्रिया भी आई है। उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि इससे विरोध-प्रदर्शन समाप्त होने की संभावना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल के सदस्य अनिल जयसिंह घनवट ने कहा, 'तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने का सरकार का फैसला बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे प्रदर्शनों को समाप्त करने में मदद मिलने की संभावना नहीं है।' उन्होंने कहा कि यदि शीर्ष अदालत कृषि कानूनों पर रिपोर्ट जारी नहीं करती है, तो वह इसे जारी करेंगे। उन्होंने यहां तक कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की बेहतरी की बजाय राजनीति को तवज्जो दिया।
उन्होंने कहा, 'कृषि कानूनों को रद्द करने का निर्णय पूरी तरह से राजनीतिक है, जिसका उद्देश्य आने वाले महीनों में उत्तर प्रदेश और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव जीतना है। हमारे पैनल ने तीन कृषि कानूनों पर कई सुधार और समाधान प्रस्तुत किए थे, लेकिन गतिरोध को हल करने के लिए इसका इस्तेमाल करने की बजाय पीएम मोदी और बीजेपी ने पीछे हटना चुना। वे सिर्फ चुनाव जीतना चाहते हैं और कुछ नहीं।'
समाचार एजेंसी PTI के मुताबिक, नाराजगी भरे लहजे में उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट में हमारी सिफारिशों को पेश करने के बावजूद, ऐसा लगता है कि इस सरकार ने इसे पढ़ा भी नहीं। पार्टी (बीजेपी) के राजनीतिक हितों के लिए किसानों के हितों की बलि दी गई है। कृषि कानूनों को निरस्त करने के निर्णय ने अब कृषि और इसके विपणन क्षेत्र में सभी प्रकार के सुधारों के दरवाजे बंद कर दिए हैं।'
कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध-प्रदर्शन के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी, 2021 को इस पैनल का गठन किया था। समिति ने इस पर अपनी रिपोर्ट तैयार की है। कमेटी का कहना है कि उसने रिपोर्ट 19 मार्च को ही सौप दी थी, जिसमें तमाम हित धारकों के सुझाव और ओपिनियन रखे गए हैं। तीन सदस्यीय समिति के एक सदस्य अनिल जयसिंह घनवट ने देश के चीफ जस्टिस को इस संबंध में सितंबर में एक पत्र भी लिखा था, जिसमें रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की अपील की गई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर रिपोर्ट में शामिल अनुशंसाओं पर अहम होता है तो इससे किसानों की समस्याओं का समाधान हो सकता है।
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