Amazing Indians Awards 2022: कहते हैं कि अगर आपका इरादा बुलंद हो, सोच साफ हो,समाज को कुछ देने का माद्दा रखते हैं तो असंभव कुछ भी नहीं होता। यहां पर हम बात कर रहे हैं 75 वर्ष की डॉ शीलू श्रीनिवासन की जो अपनी खास कामयाबी की वजह से लोगों के दिलों में जगह बना चुकी हैं। स्लम केयर कैटिगरी विजेता रही डॉ शीलू श्रीनिवासन की कामयाबी भी खास है। ये वो शख्स हैं जिन्होंने उन हजारों लोगों की जिंदगी पर जबरदस्त प्रभाव डाला है, जिन्हें उनकी मदद की सबसे अधिक जरूरत थी।
बुजुर्गों के अकेलेपन को किया दूर
75 वर्ष की डॉ शीलू श्रीनिवासन डिग्निटी फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष हैं और पिछले 40 वर्षों से दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अथक प्रयास कर रही हैं। वो कहती हैं कि शहरी मलिन बस्तियां जीवन निर्वाह के लिए मुश्किल भरी जगह है, खासकर बुजुर्गों के लिए। परिवारों का बड़ा आकार बुजुर्गों को अस्वच्छ और भीड़भाड़ वाली जगहों पर रहने के लिए मजबूर करता है, बुजुर्गों को अक्सर महत्वहीन माना जाता है क्योंकि वे परिवार को आर्थिक तौर पर मदद करने में सक्षम नहीं होते हैं। रोगों के खिलाफ लड़ने की क्षमता में गिरावट, खराब स्वास्थ्य और देखभाल की कमी की वजह से बुजुर्ग उपेक्षित महसूस करने के साथ अकेले रहने के लिए मजबूर होते हैं।
इस तरह की तस्वीर नजर आने के बाद डॉ शीलू श्रीनिवासन की सोच में बड़ा बदलाव आया और उन्होंने कुछ करने की ठानी। उनके अथक प्रयास का असर जमीन पर नजर भी आता है।उनकी संस्था ने मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई में स्लम समुदायों के भीतर संचालित एकीकृत डे-केयर सेंटर स्थापित किया जो करीब 300 वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और सहयोग प्रदान करते हैं। सभी वरिष्ठ नागरिक निम्न आय वर्ग के हैं। डॉ शीलू श्रीनिवासन बताती हैं कि इन केंद्रों के सामने धन और जनशक्ति की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। इन केंद्रों पर बुजुर्ग अपने सदस्य साथियों के साथ 8 घंटे तक बिताते हैं। सामाजिक सिस्टम का हिस्सा बनते हैं। नए ज्ञान, कौशल और तकनीक को समझते हैं। इन केंद्रों पर बुजुर्गों के आहार पर भी खास ध्यान दिया जाता है। उन्हें नियमित तौर पर पौष्टिक पेय और पौष्टिक मध्याह्न भोजन मुहैया कराया जाता है। वे केंद्र में आयोजित दैनिक योग अभ्यास के माध्यम से अपनी प्रतिरक्षा को मजबूत करने में सक्षम हो रहे हैं। केंद्र के भीतर मासिक स्वास्थ्य जांच के माध्यम से अपनी चिकित्सा स्थितियों की पहचान या उनका समाधान कर सकते हैं।
कोविड में थीं ये चुनौतियां
कार्यक्रम के सामने सबसे बड़ी चुनौती सदस्यों को कोविड के प्रति जागरुक करना और टीकाकरण के लिए उन्हें संवेदनशील बनाना था। वे उस चुनौती से पार पाने में सफल रहीं और उन्हें यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि उनके सभी सदस्यों ने टीकाकरण की दोनों खुराकें लीं कोविड के दौरान, सामाजिक अलगाव और अस्वच्छ जीवन स्थितियों में कठिनाइयों के बावजूद, उनके सदस्यों में कोविड की मृत्यु के नहीं के बराबर थे। कोविड प्रोटोकॉल को बनाए रखते हुए टेक-होम मिड-डे मील और सूखे राशन किट वितरण की व्यवस्था करना चुनौतीपूर्ण था, टीम हर तरह के कदम उठाने को तैयार थी और इसे संभव बनाने का एक तरीका मिला और इसका श्रेय कोविड जागरूकता फैलाने, सदस्यों को संवेदनशील बनाने, उनकी स्वच्छता आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त डिस्पोजेबल मास्क, सैनिटाइजर और हाथ साबुन प्रदान करने और केंद्रों के भीतर टीकाकरण शिविर आयोजित करने के लिए किए गए अपने आक्रामक प्रयासों को देते हैं।
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