यूनिफॉर्म सिविल कोड पर गरमाएगी राजनीति,उत्तराखंड से भाजपा साधेगी 2024 !

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Aug 31, 2022 | 15:12 IST

Uniform Civil Code:भारतीय जनता पार्टी शुरू से यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने का मुद्धा उठा रही है। और उसने 2019 के अपने घोषणा पत्र में इसे लागू करने की बात कही थी। ऐसे में छोटे भाजपा शासित राज्य इस दिशा में पहल करते दिखाई दे रहे हैं।

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फाइल फोटो: यूनिफॉर्म सिविल कोड उत्तराखंड में जल्द लागू करने की तैयारी  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • उत्तराखं[ के सीएम पुष्कर धामी ने कहा है कि कमेटी दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी और उसके बाद UCC को जल्द लागू कर दिया जाएगा।
  • भाजपा तीन तलाक की तरह समान नागरिक संहिता को भी मुस्लिम महिला वोटर को अपने पक्ष में करने का बड़ा हथियार मान रही है।
  • हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी यूसीसी की वकालत कर चुके हैं।

Uniform Civil Code:समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर एक बार फिर राजनीति गरमाने के आसार दिख रहे हैं। पहले हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने समान नागरिक संहिता को लागू करने की वकालत की और अब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने बड़ा बयान दे दिया है। उन्होंने कहा है कि समान नागरिक संहिता पर गठित कमेटी दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी और उसके बाद जल्द से जल्द इसे लागू कर दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो गोवा के बाद उत्तराखंड देश का दूसरा राज्य होगा, जहां पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होगा। इसके पहले जयराम ठाकुर मई में कह चुके हैं कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को प्रदेश में किस तरह से लागू किया जा सकता है, इसे लेकर सरकार गंभीर है। कैसे इसे हम कानून के दायरे में ला सकते हैं, यह सब कुछ देखा जा रहा है।

भाजपा का सबसे पुराने एजेंडे में से एक है यूनिफॉर्म सिविल कोड

भारतीय जनता पार्टी शुरू से यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने का मुद्धा उठा रही है। और उसने 2019 के अपने घोषणा पत्र में इसे लागू करने की बात कही थी। खास तौर से तीन तलाक को अवैध घोषित किए जाने के बाद से भाजपा इसे मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में अहम कदम मानती है।  ऐसे में भाजपा शासित राज्यों में समान नागरिक संहिता को लागू कर, भाजपा 2024 के लोक सभा चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बना सकती है। खास तौर पर जब उसके दो प्रमुख वादें जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद-370 खत्म करना और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पूरे हो चुके हैं।

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मुस्लिम महिला वोटरों पर नजर

भाजपा तीन तलाक की तरह समान नागरिक संहिता को भी मुस्लिम महिला वोटर को अपने पक्ष में करने का बड़ा हथियार मानती है। उसे लगता है कि इसके जरिए मुस्लिम महिलाओं का एक बड़ा वर्ग उसे वोट कर सकता है। और इस बात के संकेत असम  के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के दिए गए बयान से मिलता है। उन्होंने बीते मई में कहा था कि यदि समान नागरिक संहिता लागू नहीं होती है, तो बहुविवाह प्रणाली जारी रहेगी। एक पुरुष एक महिला के मौलिक अधिकारों का हनन करते हुए 3-4 बार शादी करेगा। मुस्लिम महिलाओं के  हित के लिए समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए।

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति-निर्देशक तत्वों के तहत समान नागरिक संहिता का प्रावधान किया गया है। जिसके अनुसार राज्य यानी भारत सरकार 'भारत के पूरे भू-भाग में अपने नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।' भाजपा इसी आधार पर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की बात कहती रही है।

असल में भारत में क्रिमिनल कानून सभी नागरिकों के लिए समान है । लेकिन परिवार और संपत्ति के बंटवारे के लिए नियम धर्मों के आधा पर अलग-अलग हैं। यदि भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो यह कानून सभी जाति, धर्म, समुदाय या संप्रदाय के पर्सनल लॉ से ऊपर होंगा।  यानी देश में विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता आ जाएगी। फिलहाल भारत में  हिंदू विवाह अधिनियम-1955, मुस्लिम पर्सनल कानून, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम- 1956, इसी तरह ईसाई और पारसी समुदाय आदि से जुड़े सिविल कानून हैं।

गोवा में है लागू

फिलहाल देश में गोवा एक ऐसा राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता लागू है। यह कानून पुर्तगालियों ने 1867 में गोवा में लागू किया था। जिसे पुर्तगाली सिविल कोड कहा जाता था। बाद में जब  भारत ने 1961 में गोवा को पुर्तगालियों के कब्जे से आजाद कराया तो  इसके बाद साल 1962 में भारतीय संसद ने गोवा सिविल कोड जारी रखने की मंजूरी दी। साथ राज्य की विधायिका को यह अधिकार दिया कि वह चाहे तो इसे हटा सकती है या जरूरत होने पर इसमें संशोधन कर सकती है। ऐसे में तकनीकी रूप से देखा जाय तो आजादी के बाद से भारत के किसी भी राज्य ने समान नागरिक संहिता को लागू नहीं किया है। ऐसे में अगर उत्तराखंड सरकार इसे लागू करती है तो वह पहला राज्य होगा।

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