नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव का प्रचार तो जोरों पर हैं लेकिन सबकी नजरें नंदीग्राम पर बनी हुई हैं। बंगाल के नंदीग्राम में महाचुनाव होने जा रहा है और वह भी ममता बनर्जी और सुवेंदु अधिकारी के बीच।18 जनवरी को जब बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने जब नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की थी तो तभी से अंदाजा लगाया जा रहा था कि सुवेंदु अधिकारी यहां से बीजेपी के उम्मीदवार होंगे।6 मार्च को बीजेपी ने सुवेंदु अधिकारी को नंदीग्राम से अपना उम्मीदवार घोषित कर इस पर पक्की मुहर लगा दी। माने ये कि अब नंदीग्राम का महा संग्राम गुरु और चेले के बीच होगा और अभी से अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं कि जीत किसकी होगी : ममता की या सुवेंदु की ?
जीत किसकी होगी या हार किसकी होगी इससे पहले नंदीग्राम की राजनीतिक बिसात को समझना बहुत जरुरी है।
पहला , नंदीग्राम कोलकाता से सिर्फ 130 किलोमीटर दूर है। नंदीग्राम में चुनाव दूसरे फेज यानि 1 अप्रैल को होगा। 2019 के हिसाब से नंदीग्राम में कुल मतदाता 2 लाख 46 हजार 434 हैं। सुवेंदु अधिकारी 2016 के विधान सभा चुनाव में टीएमसी के टिकट पर चुनाव जीते थे और उन्हें 1 लाख 34 हजार 623 वोट मिले थे यानि 67 प्रतिशत वोट मिले थे।
दूसरा, नंदीग्राम के चुनावी इतिहास को जानना भी इंटरेस्टिंग होगा। नंदीग्राम के पिछले 14 विधान सभा चुनावों का नतीजा एक रोचल चित्र दिखाता है। सीपीआई नंदीग्राम से 1967 , 1969 , 1971 , 1972 , 1982 , 1987 , 1991 और 2006 विधान सभा चुनाव जीता है। वहीं जनता पार्टी ने 1977 , कांग्रेस 1996 और सीपीआईएम 2001 में नंदीग्राम से चुनाव जीता। और उसके बाद नंदीग्राम में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का खेल शुरू होता है यानि टीएमसी 2009 ( उप चुनाव ), 2011 और 2016 का विधान सभा चुनाव जीतती रही। सुवेंदु अधिकारी 2016 में टीएमसी से विधान सभा चुनाव जीते थे। कुल 14 विधान सभा चुनावी आकड़ों के मुताबिक सीपीआई 8 , जनता पार्टी 1 , सीपीआईएम 1 , कांग्रेस 1 और टीएमसी 3 बार नंदीग्राम से चुनाव जीत चुकी है।
तीसरा , नंदीग्राम में बीजेपी की स्थिति क्या रही है? बीजेपी पिछले दो विधान सभा चुनावों में तीसरे नंबर की पार्टी रही यानी बीजेपी को 2016 में 10,713 और 2011 में 5,813 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था । वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में TMC को 1 लाख 30,059 वोट मिले। लेकिन, BJP के वोट 10 हजार से बढ़कर 62 हजार 268 पर पहुंच गए। CPM 9353 पर आ गई। लेकिन अबकी बार बीजेपी की स्थिति बदल चुकी है क्योंकि सुवेंदु अधिकारी बीजेपी में शामिल होकर नंदीग्राम से पार्टी के उम्मीदवार बन चुके हैं।
चौथा , अब सुवेंदु अधिकारी के राजनीतिक यात्रा को समझना भी आवश्यक है। सुवेंदु ने अपनी राजनीतिक यात्रा कांग्रेस से शुरू करते हुए 1995 में कांथी म्युनिसिपल काउंसलर चुनाव से शुरू की। पहली बार 2006 में कांथी से बंगाल विधान सभा के लिए चुनाव जीते और उसी साल कांथी म्युनिसिपल कारपोरेशन के चेयरमैन भी बन गए। लेकिन असली राजनीतिक यात्रा सुवेंदु ने शुरू की 2007 में जब उन्होंने नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जंग शुरू करते हुए भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी का नेतृत्व किया और उसी नंदीग्राम आंदोलन ने सुवेंदु को बंगाल का एक युवा जुझारू नेता बना दिया और उसी आंदोलन ने लेफ्ट फ्रंट की 34 साल पुरानी सरकार और सत्ता को बंगाल के खाड़ी में उखाड़ फेंका।
ममता के करीबी
राज्य स्तर पर ममता बनर्जी उस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं और उसी दौर में ममता की नजर सुवेंदु पर जा टिकी। उसके बाद सुवेंदु ममता के काफी करीबी बन गए और 2011 में उसी आंदोलन ने लेफ्ट फ्रंट को सत्ता से बाहर करते हुए ममता बनर्जी की टीएमसी को सत्तासीन कर दिया। उसके बाद सुवेंदु 2009 और 2014 लोक सभा चुनाव भी टीएमसी से जीते। लेकिन ममता को सुवेंदु की जरुरत दिल्ली में नहीं बल्कि बंगाल में थी इसीलिए ममता ने सुवेंदु को 2016 में विधान सभा चुनाव लड़ा कर अपने बंगाल मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। हुआ ये कि टीएमसी में ममता के बाद दूसरे नंबर पर पार्टी के कद्दावर नेता बन गए और सुवेंदु नंदीग्राम ही नहीं बल्कि पूरे बंगाल के बड़े नेता बन गए। लेकिन एक कहावत है कि अति मीठे संबंध को संभालना बड़ा मुश्किल होता है और वही हुआ ममता और सुवेंदु के बीच। कहा जाता है कि दोनों के खटास के कारण बने ममता के भतीजे अभिषेक और प्रशांत किशोर, और इसी खटास ने सुवेंदु को म टीएमसी छोड़ने पर मजबूर कर दिया और अंततः सुवेंदु बीजेपी में शामिल हो गए। आज सुवेंदु बीजेपी में कद्दावर नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं।
नंदीग्राम का बेटा
पांचवां, पूर्वी मिदनापुर अधिकारी परिवार का जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों रहा है बल्कि दोनों एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। भारत की आज़ादी की लड़ाई के समय से ही अधिकारी परिवार पूर्वी मिदनापुर का एक स्थापित राजनीतिक हस्ती वाला परिवार रहा है। सुवेंदु के दादा केनाराम अधिकारी स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ पूर्वी मिदनापुर के अग्रणी नेता थे और उसी का परिणाम था कि अंग्रेजों ने तीन तीन बार उनके घर को जला दिया था। उसके बाद सुवेंदु के पिता शिशिर कुमार अधिकारी ने परिवार के राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए कांथी म्युनिसिपल कारपोरेशन के 33 साल तक चेयरमैन रहे। साथ ही बंगाल विधान सभा और भारतीय संसद के लोक सभा के कई बार सदस्य रहे हैं और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री भी रहे बल्कि अभी भी लोक सभा सदस्य हैं। फिलहाल सुवेंदु के एक छोटे भाई लोक सभा सदस्य और दूसरे भाई कांथी म्युनिसिपल कारपोरेशन के चेयरमैन हैं।इसलिए कहा जाता है कि सुवेंदु नंदीग्राम का बेटा है।
लौटकर नंदीग्राम आई दीदी
छठा , अबकी बार ममता बनर्जी सिर्फ नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। ऐसा क्यों ? अपने दक्षिण कोलकाता के भवानीपुर सीट को क्यों त्याग दिया ? लाख टके का सवाल है। टीएमसी सुप्रीमो और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने पुराने विधान सभा सीट भवानीपुर को छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं । पोलिटिकल एक्सपर्ट्स इसके तीन कारण दे रहे हैं। पहला , 2011 में ममता को भवानीपुर विधान सभा उप चुनाव में 77. 46 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2016 के चुनाव में वोटों का प्रतिशत घटकर 47. 67 फीसदी रह गया और तो और 2019 के लोक सभा चुनाव में भवानीपुर असेंबली सीट पर बीजेपी को लीड मिल गई और यही दर्द ममता को सताए जा रहा थी। विकल्प की तलाश जारी थी और वही विकल्प बना नंदीग्राम। दूसरा , 2011 में ममता बनर्जी ने नंदीग्राम आंदोलन की वजह से ही 34 साल पुरानी लेफ्ट फ्रंट सरकार को उखाड़ फेंका था। इसीलिए ममता फिर से अपने को नंदीग्राम से जोड़कर साबित करना चाहती हैं कि ममता अभी भी वही ममता हैं। तीसरा , ममता सुवेंदु को भी सबक सिखाना चाहती हैं कि नंदीग्राम का हीरो ममता हैं ना कि सुवेंदु। चौथा , नंदीग्राम विधान सभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 27 फीसदी से भी ऊपर है जो ममता बनर्जी का मानना है ये मुस्लिम वोट सिर्फ ममता को ही मिलेगा ना कि सुवेंदु को। यही कारण है कि ममता बनर्जी ने नंदीग्राम को चुना है ना कि भवानीपुर।
नंदीग्राम बना चुनावी हेडक्वार्टर
आखिर और अंत में , नंदीग्राम की लड़ाई अब बंगाल की बेटी और नंदीग्राम के बेटा के बीच होगा। नंदीग्राम का बेटा सुवेंदु ने कहा है कि नंदीग्राम आउटसाइडर ममता को नहीं चुनेगी बल्कि अपने बेटा को ही चुनेगी। बल्कि सुवेंदु ने तो दावा किया है कि ममता को कम से कम 50,000 वोट से हराएंगे। सुवेंदु के पिता शिशिर अधिकारी ने भी कहा है कि जीत सुवेंदु की होगी और ममता ने गलत निर्णय लिया है। कांग्रेस के नेता प्रदीप भट्टाचार्य का भी यही कहना है कि ममता के लिए सुवेंदु को हराना आसान नहीं होगा। सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में एडवांटेज किसका: बेटा का या बेटी का। इंतज़ार करना होगा 2 मई का। देखते हैं कौन जीतता है नंदीग्राम: बेटी ममता या बेटा सुवेंदु?। चलते चलते एक बात जरुरु कहना चाहूंगा कि अबकी बार के बंगाल चुनाव का हेडक्वार्टर कोलकाता नहीं नंदीग्राम होगा।
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