नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव अप्रैल मई 2021 में होने जा रहा है। विधान सभा में कुल 294 सीटें हैं जिसमें अनुसूचित जाति के लिए 68 और अनुसूचित जनजाति के लिए 16 सीटें आरक्षित हैं। सत्ता में आने के लिए चाहिए 148 सीट। इस लेख को समझने के लिए दो सवालों को समझना जरुरी है: पहला सवाल, बंगाल की राजनीति में सुभेंदु अधिकारी एवं अधिकारी परिवार की अहमियत क्या है ? दूसरा सवाल , बीजेपी बंगाल में अपने को सत्ता से इतना नजदीक क्यों समझ रही है ?
अब समझते हैं पहला सवाल, बंगाल की राजनीति में सुवेंदु अधिकारी एवं अधिकारी परिवार की अहमियत क्या है ?
इस प्रश्न के उत्तर के लिए सबसे पहले जानना होगा पूर्वी मिदनापुर के अधिकारी परिवार की कहानी। कहानी बड़ा ही रोचक और दिलचस्प है। सुभेंदु के परिवार में राजनीति की शुरुआत स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में ही शुरू हो गई थी जब उनके दादा केनाराम अधिकारी ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी हुई थी। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने चिढ़कर अधिकारी परिवार के घर को तीन बार जला दिया था।
राजनीति विरासत में मिली
केनाराम अधिकारी के पुत्र यानि सुभेंदु के पिता शिशिर कुमार अधिकारी का जन्म भी आजादी से पहले ही सितम्बर 1941 में हुआ। शिशिर अधिकारी ने अपनी राजनीतिक यात्रा 1962 में ही शुरु कर दी थी। 1971 से 1981 और 1986 से 2009 तक यानि 33 साल कांथी म्युनिसिपल कारपोरेशन के चेयरमैन रहे। उसके बाद 1982 से 1987 और 2001 से 2009 तक यानि तीन बार पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य रहे। 2009 , 2014 और 2019 में लोक सभा के लिए भी चुने गए। 2009 से 2012 तक मनमोहन सिंह सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रहे। साथ ही शिशिर अधिकारी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं बल्कि 1998 से ही ममता के साथ हैं।
शिशिर कुमार अधिकारी के 4 पुत्र हैं जिसमें सुभेंदु सबसे बड़े हैं और सुभेंदु 2006 में ही कांथी दक्षिण से पश्चिम बंगाल विधान सभा के लिए चुने गए। उसके बाद 2009 और 2014 में लोक सभा सभा के लिए भी चुने गए। लेकिन 2016 में सुभेंदु लोक सभा से इस्तीफा देकर ममता बनर्जी के बंगाल सरकार में मंत्री बने। पिछले चार वर्षों से ममता और सुभेंदु के बीच राजनीतिक तालमेल जबरदस्त रहा और सुभेंदु ममता सरकार के सबसे शक्तिशाली मंत्री बन गए।
भाई भी सांसद
शिशिर कुमार अधिकारी के दूसरे पुत्र दिव्येंदु अधिकारी भी पश्चिम बंगाल विधान सभा के तीन बार सदस्य रहे और 2016 में सुभेंदु के लोक सभा से इस्तीफा देने के बाद दिव्येंदु अधिकारी लोक सभा उप चुनाव में जीतकर लोक सभा पहुंचे और साथ ही 2019 में भी लोक सभा चुनाव जीते। शिशिर कुमार अधिकारी के तीसरे पुत्र सौमेंदु अधिकारी कांथी म्युनिसिपल कारपोरेशन के चेयरमैन हैं। इस कॉर्पोरेशन का चेयरमैन हमेशा से अधिकारी परिवार का ही सदस्य ही रहा है। यानि अधिकारी परिवार पूर्वी मिदनापुर का हाई प्रोफाइल पोलिटिकल फैमिली के रूप में वर्षों से स्थापित रहा है। आप अंदाज लगा सकते हैं कि अधिकारी परिवार का पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर में क्या जलवा है।
नंदीग्राम से बनी पहचान
जहाँ तक सुभेंदु अधिकारी का सवाल है वो आज बंगाल की राजनीति के केंद्र में हैं। सुभेंदु 2006 में ही पश्चिम बंगाल विधान सभा के लिए चुने गए थे। सुवेंदु की राजनीति का असली रंग दिखा 2007 में जब उन्होंने नंदीग्राम भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन शुरू किया वही आंदोलन जिसने 34 वर्ष के लेफ्ट फ्रंट सरकार को बंगाल की खाड़ी में उखाड़ कर फेंक दिया। और ममता बनर्जी को एक ऐसा युवा नेता मिला जिसकी उन्हें सख्त जरुरत थी।नंदीग्राम आंदोलन ने ही सुभेंदु को एक मास लीडर बना दिया और उसके बाद सुभेंदु ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही कारण है कि सुभेंदु को मैन ऑफ नंदीग्राम भी कहा जाता है। उसके बाद धीरे धीरे सुभेंदु पूरे बंगाल में एक मास लीडर बन गए।
मतभेद की वजह
लेकिन पिछले कुछ महीनों से सुभेंदु और ममता में मतभेद आने शुरू हो गए और कहा जाने लगा कि सारे मतभेदों के जड़ में ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर हैं। क्योंकि हर निर्णय में अभिषेक और प्रशांत किशोर की दखलंदाजी बढ़ने लगी और सुभेंदु को लगाने लगा कि उसे धीरे धीरे साइड लाइन किया जा रहा है। इसी मतभेद ने सुभेंदु को ममता और तृणमूल को छोड़ने को मजबूर कर दिया। वाजिब है आज की तारीख में बंगाल में दो ही पार्टी है जिसका भविष्य दिखता है एक टीएमसी और दूसरा बीजेपी। इसीलिए सुभेंदु के लिए एक ही बचा और है बीजेपी और सुभेंदु ने टीएमसी और ममता से सारे रिश्ते तोड़ लिए और अब बीजेपी में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं।
एक मज़बूरी को समझना भी जरुरी है कि सुभेंदु और बीजेपी एक दूसरे की जरुरत को पूरा करेगा क्योंकि सुभेंदु को एक स्थापित पार्टी चाहिए और बीजेपी को बंगाल में एक मास लीडर चाहिए। लेकिन यहाँ एक सौ टके का सवाल ये उठता है कि आखिर बीजेपी सुभेंदु को पार्टी में लाने के लिए इतना उत्सुक क्यों हैं। इसके दो कारण हैं पहला, सुभेंदु बंगाल में एक मास लीडर हैं और दूसरा , सुभेंदु अपनी ताकत पर बहुत सारी असेंबली सीट को प्रभावित कर सकते हैं।
बंगाल में चर्चाएं तेज
इसीलिए आजकल बंगाल में काफी चर्चा का विषय बना हुआ कि यदि सुभेंदु बीजेपी ज्वाइन करते हैं तो वो बीजेपी को कितनी सीटें दिला पाएंगे। नंबर को लेकर 3 तरह के आंकड़े सामने आ रहे हैं - पहला , सुभेंदु का प्रभाव पूरे बंगाल पर है इसीलिए वो कम से कम 110 सीटों को प्रभावित करेगा। दूसरा, सुभेंदु की ताकत जंगलमहल इलाके में काफी है जो उनका गृह क्षेत्र है यानी 4 जिले पूर्वी मिदनापुर , पश्चिमी मिदनापुर , बाँकुरा और पुरुलिया। और इन 4 जिलों में लोक सभा के 9 और विधान सभा के 63 सीटें हैं इन सीटों पर सुभेंदु की सीधे सीधे पकड़ है। इसलिए सुभेंदु कम से कम 60 सीटों को प्रभावित करेंगे। तीसरा, सुभेंदु कम से कम 30 सीट को तो पक्का पक्का प्रभावित करेंगे। ऐसी स्थिति में एक कन्सेर्वटिव फिगर 50 हो सकता है जिसे सुभेंदु प्रभावित करेंगे और यदि ऐसा होता है तो बीजेपी अपनी रणनीति में सफल हो जाएगी। इस पूरे वाकये से आप समझ गए होंगे कि बंगाल की राजनीति में सुभेंदु अधिकारी और अधिकारी परिवार की अहमियत क्या है।
अब समझते हैं दूसरा सवाल , बीजेपी बंगाल में अपने को सत्ता से इतना नजदीक क्यों समझ रही है ?
इसका सबसे बड़ा कारण है 2019 का लोक सभा चुनाव। बीजेपी को 2016 के बंगाल विधान सभा चुनाव में 3 सीटें और 12 फीसदी वोट मिले थे। टर्न ऑफ़ इवेंट ऐसा हुआ कि बंगाल में 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी को 18 सीटें मिलीं और 40 फीसदी वोट। यानि 28 फीसदी वोटों का इजाफा। शायद बीजेपी सपनों में भी ऐसा ना सोचा होगा। यदि लोक सभा परिणाम को असेंबली लीड के रूप में देखें तो लीड चौंकाने वाला है। टीएमसी की लीड 163 और बीजेपी लीड 122 सीटों पर रही। नफा नुकसान के हिसाब से देखें तो टीएमसी को 48 सीटों का नुकसान हुआ और बीजेपी को 119 सीटों का भारी फायदा। यानि बीजेपी को सत्ता में आने के लिए 26 सीट चाहिए और टीएमसी और ममता बनर्जी को सत्ता से बाहर होने के लिए सिर्फ 16 सीटों का नुकसान होना है।
ममता और टीएमसी के नुकसान की कड़ी में आते हैं सुभेंदु अधिकारी। अर्थात यदि सुभेंदु अधिकारी टीएमसी के 50 सीटों पर कब्ज़ा कर लेते हैं तो इसका मतलब हुआ बीजेपी का परचम बंगाल में फहराएगा और ममता और टीएमसी सत्ता से बाहर हो जाएगी। लेकिन ये आंकड़े और सुभेंदु की राजनीतिक अहमियत पर आधारित विश्लेषण है। लेकिन सवाल है होगा क्या। इसके लिए हमें इंतज़ार करना होगा मई 2021 का जब हमें पता चलेगा कि बंगाल में जीत किसकी हुई - ममता की या भाजपा की ?
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