क्या है ज्ञानवापी विवाद, जानें अब तक क्या-क्या हुआ, राजनीति पर डालेगा असर !

Gyanvapi Dispute:ज्ञानवापी विवाद मामले में साल 1991 में पुजारियों के समूह ने बनारस की कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में पूजा करने की अनुमति मांगी थी।

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ज्ञानवापी मस्जिदर परिसर का हुआ सर्वे  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • अप्रैल 2022 में कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया।
  • अयोध्या विवाद के हल होने के बाद हिंदू पक्ष को काशी और मथुरा विवाद हल होने की उम्मीद है।
  • ऐसी धारणा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था।

Gyanvapi Vs Kashi Vishwanath Temple:बनारस में आज पहली बार ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर का सर्वे हुआ। कोर्ट के आदेश पर परिसर के तहत श्रृंगार गौरी और विग्रहों का सर्वे किया जाना है। सर्वे का काम आज शाम तक चला। और कल फिर सर्वे किया जाएगा परिसर का सर्वे उस दावे के आधार पर किया जा रहा है, जिसमें हिंदू पक्ष के एक वर्ग का मानना है कि बनारस में औरंगजेब ने काशी विश्वानाथ मंदिर को तोड़कर और उसके अवशेषों के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। जिसके आधार पर कोर्ट ने वीडियोग्राफी के साथ सर्वे के आदेश दिए थे।

कब दायर हुआ केस

यह करीब 30 साल पुराना मामला है, जब साल 1991 में पुजारियों के समूह ने बनारस की कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। इन लोगों ने कोर्ट में यह दलील दी कि औरंगजेब ने काशी विश्वानाथ मंदिर को तोड़कर  ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। ऐसे में उन्हें परिसर में पूजा की अनुमति दी जाय। इस मामले में मस्जिद की देखभाल करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को प्रतिवादी बनाया गया। करीब 6 साल के सुनवाई के बाद 1997 में कोर्ट ने दोनों पक्षों के पक्ष में मिला-जुला फैसला सुनाया। जिससे दोनों पक्ष हाई कोर्ट चले गए और इलाहाबाद कोर्ट ने 1998 में लोअर कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। उसके बाद से यह मामला ठंडे बस्ते में ही रहा। 

2018 में फिर से केस में आई तेजी

करीब 20 साल बाद 2018 में मुकदमे में वकील रहे विनय शंकर रस्तोगी ने next friend के रूप में याचिका दायर की। और दिसंबर 2019 में यह केस फिर से खुल गया। अहम बात यह थी कि इसके ठीक एक महीने पहले अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया था। और रस्तोगी की याचिका पर अप्रैल 2022 में कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया। और इसी आधार पर अब परिसर का सर्वेक्षण किया जाएगा।

मंदिर तोड़कर मस्जिद बनीं ?

काशी विश्‍वनाथ मंदिर और उससे लगी ज्ञानवापी मस्जिद के बनने को लेकर अलग-अलग तरह की धारणाएं हैं। आम तौर पर लोगों का यही मानना है कि औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई। और मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल मस्जिद निर्माण में किया गया। हिंदू पक्ष का यह भी मानना है कि जमीन के नींच भगवान शिव का शिवलिंग भी है। हालांकि मुस्लिम पक्ष न दावों को नकारता है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि मंदिर और मस्जिद अलग-अलग बनाए गए और मस्जिद बनाने के लिए किसी मस्जिद को नहीं तोड़ा गया। जहां तक काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का सवाल है तो इसका श्रेय अकबर के दरबारी राजा टोडरमल को दिया जाता है जिन्होंने साल 1585 में ब्राह्मण नारायण भट्ट की मदद से कराया था। इसी आधार पर हिंदू पक्ष का मानना है कि औरंगजेब के कार्यकाल में मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। हालांकि इस मत इतिहासकार की एक राय नही है। कुछ हिंदू पक्ष की दलील को सही बताते हैं तो कुछ का कहना है कि मंदिर को तोड़ा नहीं गया था।

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भारतीय राजनीति में क्या महत्व

जिस तरह अयोध्या को लेकर राम मंदिर निर्माण का फैसला आया और उसके एक महीने बाद ज्ञानवापी केस शुरू हुआ। उसे देखते हुए इस फैसले का भारतीय राजनीति पर बड़ा असर दिख सकता है। क्योंकि वर्तमान में केंद्र की सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के तरफ से इस तरह के बयान हमेशा आते रहे हैं। कि अयोध्या तो झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है। असल में अयोध्या की तरह भले ही भाजपा ने काशी-मथुरा को लेकर प्रस्ताव पारित नहीं किया हो, पर पार्टी के नेताओं का यह मानना है कि काशी-मथुरा विवाद का भी हल निकलना चाहिए। ऐसे में जब ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे शुरू हो रहा है। तो तय है कि इसके बड़े राजनीतिक असर होंगे।

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