तलाक ए हसन पर सुनवाई के बीच उठा 'मेहर' का मुद्दा, ऐसे समझें

मुस्लिम समाज की शादी प्रणाली में मेहर की खास व्यवस्था है। शादी के समय वर पक्ष कन्यापक्ष को एक निश्चित राशि अदा करता है। सामान्य तौर पर जो भी पक्ष शादी को तोड़ता है उसे मेहर की रकम वापस करनी पड़ती है।

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मेहर के बारे में आसान तरीके से समझें 
मुख्य बातें
  • गैरकानूनी तीन तलाक पर सु्प्रीम कोर्ट ने लगाई है रोक
  • तलाक-ए-हसन के दुरुपयोग के संबंध में याचिका दायर
  • मेहर की राशि पर पर भी सवाल

गैरकानूनी तौर पर तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है। लेकिन जमीनी तौर दुरुपयोग के मामले सामने आ रहे हैं। इस तरह की शिकायतें आ रही हैं कि वर पक्ष मुफ्ती और काजियों की साठगांठ की वजह से तलाक-ए-हसन का दुरुपयोग हो रहा है। इस संबंध में याचिकाकर्ता बेनजीर हीना ने विस्तार से सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी। बेनजीर हीना की याचिका सुनते हुए अदालत ने कहा कि वो निश्चित तौर मामले की संवेदनशीलता और गंभीरता तो समझते हैं लिहाजा इस पर सुनवाई होगी। अदालत की दहलीज पर एक बार इस मामले के पहुंचने के बाद ट्रिपल तलाक और मेहर से संबंधित मामला सुर्खियों में हैं यहां पर हम खास तौर से बताएंगे कि आखिर मेहर किसे कहते हैं और क्यों यह चर्चा के केंद्र में है। 

क्या है मेहर
इस्लाम में महर(अरबी शब्द) या सामान्य तौर मेहर वो राशि है जिसे वर पक्ष निकाह के समय कन्या पक्ष को देता है। सामान्य तौर पर इसे मुद्रा के तौर देखा जाता है। लेकिन यह गहने घरेलू सामान, फर्नीचर या जमीन के तौर पर भी हो सकती गै। निश्चित मेहर को दो भागों में बांटा गया है। मेहर ए मुअज़्ज़ल और मेहर ए मुवज्जल। यह विवाह के बाद मांग पर तत्काल देय होता है। जानकारों के मुताबिकमुस्लिम विधि के अन्तर्गत मेहर को एक तरह का कर्ज माना गया है। पति की मृत्यु के बाद विधवा अपनी मेहर की राशि को अपने पति की सम्पति से अन्य लेनदारों की तरह से हासिल कर सकती है। 

मेहर शब्द का इतिहास
मेहर हिब्रू शब्द और सिरिएक शब्द "महरा" से संबंधित है, जिसका अर्थ है दुल्हन का उपहार। स्वेच्छा से दिया गया उपहार, अनुबंध के परिणामस्वरूप नहीं। लेकिन मुस्लिम धार्मिक कानून में इसे एक उपहार घोषित किया गया था जिसे दूल्हे को शादी का अनुबंध होने पर दुल्हन को देना होता है और जो पत्नी की संपत्ति बन जाती है। पूर्व-इस्लामिक अरबों में मेहर, एक दुल्हन की कीमत कानूनी विवाह के लिए एक आवश्यक शर्त थी। मेहर दुल्हन के अभिभावक को दिया जाता था जैसे कि उसके पिता, भाई या अन्य रिश्तेदार। पहले के समय में, दुल्हन को मेहर का कोई हिस्सा नहीं मिलता था। कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि मुहम्मद से कुछ समय पहले मेहर  या कम से कम इसका एक हिस्सा पहले से ही दुल्हन को दिया गया था। जबकि कुछ अन्य लोग पत्नी की संपत्ति में इसके परिवर्तन को क्रांतिकारी कदम मानते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट में दायर है अर्जी
सुप्रीम कोर्ट में याचिका  बेनजीर हीना का कहना है कि अब जानबूझकर मेहर की राशि कम की ़जा रही है ताकि वर पक्ष यदि तलाक देता है तो उसके लिए आर्थिक भार कम पड़े। वो कई ऐसे महिलाओं को जानती हैं जो गांवों में रहती हैं और इस तरह की समस्या से दो चार हुई हैं। याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा कि बेंच को इस विषय पर तत्काल सुनवाई करने की आवश्यकता है। 

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