10 और 11 अगस्त को संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा में जो कुछ हुआ वो शर्मसार करने वाला था। कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने रूल बुक फाड़ी और बहुत से विपक्षी सांसद टेबल पर चढ़ गए जिसकी पीड़ा को राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने व्यक्त भी की। 11 अगस्त को जब सीसीटीवी फुटेज सरकार की तरफ से जारी किया गया तो उसमें दिखाई दिया कि किस तरह से विपक्षी सांसदों द्वारा मार्शल के साथ धक्कामुक्की की गई, हालांकि इस मामले में कांग्रेस सांसद छाया वर्मा, फुलो देवी नेताम की सफाई आ चुकी है। विपक्षी सांसदों के इस रवैये पर संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि जो कुछ हुआ वो संसदीय परंपरा को तार तार करने वाला था। उन्होंने राज्यसभा के सभापति से गुजारिश की है कि जिनकी गलती हो उसके खिलाफ इस तरह की कार्रवाई हो जो नजीर बन सके।
डांट फटकार, निलंबन से लेकर निष्काषन तक का विकल्प
इस विषय पर जानकार कहते हैं कि सभापति के सामने मुख्य तौर पर तीन विकल्प हैं जिसके जरिए वो कार्रवाई कर सकते हैं। पहला विकल्प डांट फटकार का है, दूसरा सदन से निलंबन का है और तीसरा निष्काषन का है। इसका अर्थ यह है कि उच्च सदन में जिस तरह से हंगामा हुआ, मार्शलों के साथ धक्कामुक्की और बदसलूकी हुई उसके मद्देनजर बवाल काटने वाले सांसदों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकती है। जैसा कि संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी कह चुके हैं कि उनकी सभापति से गुजारिश है कि दंड इस तरह का हो वो नजीर बने और फिर कोई भी सांसद इस तरह का दुस्साहस ना कर सके।
ये भी हैं कुछ विकल्प
न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक इस केस को विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जा सकता है। एक बात तो तय है कि हंगामा करने वाले सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की संभावना अधिक है। ऐसे सदस्य जो बार-बार सदन की गरिमा पर चोट पहुंचाते हैं तो उनके नाम संसदीय बुलेटिन में भी प्रकाशित किए जा सकते हैं।सभापति किसी भी सदस्य को उसके खराब आचरण के लिए सदन से बाहर जाने के लिए कह सकते हैं।
सांसदों को कब कब मिली है सजा
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब सभापति थे तो उन्होंने एक सदस्य को उसके आचरण पर फटकार लगाई थी। वाक्या 18 फरवरी 1963 का है जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर एक मेंबर ने वॉकआउट किया था। इसके अलावा 2013 में भी राज्यसभा के उपसभापति ने दो सदस्यों को सदन से बाहर जाने के लिए कहा था। इसके साथ ही मानसून सत्र में आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव के हाथ से कागज छीने जाने पर टीएमसी सांसद शांतनु सेन को निलंबित किया गया था। 1976 में सुब्रमण्यम स्वामी को निष्कासित कर दिया गया था। इसी तरह 2006 में साक्षी महाराज को भी निष्कासित किया गया था।
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