हिंदुस्तान को अतिक्रमण का लाइलाज रोग कब, कैसे और क्यों लग गया ?

देश
देव तिवारी
देव तिवारी | Special Correspondent
Updated Apr 22, 2022 | 11:28 IST

देश के अलग अलग राज्यों में प्रशासन की तरफ से अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई में बुलडोजर का इस्तेमाल किया जा रहा है। सत्ता पक्ष की आवाज जहां इसके समर्थन में है तो विपक्ष का कहना है कि इसके पहिए के नीचे संविधान को कुचला जा रहा है।

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हिंदुस्तान को अतिक्रमण का लाइलाज रोग कब, कैसे और क्यों लग गया ? 

दिल्ली के जहांगीरपुरी में बुलडोजर चला। अतिक्रमण के खिलाफ एक्शन हुआ, तो ओवैसी जैसे नेता हमेशा की तरह इसमें सांप्रदायिक रंग घोलने निकल पड़े। इस पूरी कार्रवाई को मजहबी चश्में से देखा जाने लगा। खैर ये हिंदुस्तान की सियासत की फितरत है। यहां सब कुछ पॉलिटिक्स और वोट के लिए होता या किया जाता रहा है, लेकिन यहां मसला है अतिक्रमण का। उस समस्या का, जो देश की सबसे बड़ी बीमारी बन चुकी है। जहांगीरपुरी के बहाने ही सही, इस समस्या पर विमर्श होनी चाहिए, क्योंकि पूरे देश में, शहर शहर सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे का खुला खेल चल रहा है। 

दिल्ली का सबसे बड़ा दर्द
अगर राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो शायद ही कोई ऐसा इलाका या बस्ती हो, जहां अतिक्रमण नहीं हुआ हो। एक दर्जन से ज्यादा इलाकों में तो जबरदस्त अवैध कब्जा है। इसकी वजह से यहां आना जाना मुश्किल है। ये वही अतिक्रमण हैं, जिसकी वजह से दिल्ली के कई इलाकों में भीषण जाम लगती है। अगर ऐसे इलाकों में कोई हादसा हो जाए, तो जान बचाना मुश्किल हो जाएगा। यहां एंबुलेंस नहीं जा सकतीं। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां नहीं जा सकतीं। किसी रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देना मुश्किल है। ऐसा कई मामलों में देखा भी गया है।

सुप्रीम कोर्ट भी हैरान है
हिंदुस्तान के लिए, हमारे लिए, अतिक्रमण कितनी बड़ी समस्या है, ये कितना बड़ा रोग बन चुका है, इसका अंदाजा आप देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट की दो सख्त टिप्पणियों से लगा सकते हैं। जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। ये न्यायपालिका का काम नहीं है। राज्य सरकारें तत्काल प्रभाव से अतिक्रमण हटाएं। इस आदेश का कितना पालन हुआ, ये बताने और जताने की जरूरत नहीं है। इसी तरह दिसंबर 2021 में उच्चतम न्यायालय को यहां तक कहना पड़ा कि अवैध कब्जों की वजह से देश के बड़े शहर स्लम यानि झुग्गी-झोपड़ियों में तब्दील हो गए हैं।

उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी में चला बुल्डोजर, इलाके से हटाए गए अवैध अतिक्रमण

भारत का खतरनाक अतिक्रमण लोक
सुप्रीम कोर्ट को ऐसी तल्ख टिप्पणी इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि देश में बहुत बड़ा भूभाक अतिक्रमण का शिकार है। इस बात का ऐलान केंद्र सरकार के आंकड़े कर रहे हैं। ये वो डेटा है, जो सरकार ने लोकसभा में पेश किया था। इसके मुताबिक देश में 32 लाख 77 हजार 591 एकड़ फॉरेस्ट लैंड पर अतिक्रमण हो चुका है। डिफंस की 9 हजार 375 एकड़ जमीनों पर अवैध कब्जा है। रेलवे की 2012 एकड़ जमीनों पर अतिक्रमण स्थापित हो चुका है। 

ये बीमारी कैसे ठीक होगी ?
जिस दिल्ली में अतिक्रमण के खिलाफ एक्शन लिया गया, अगर उसी की बात करें तो आंकड़े बहुत ही चौंकाने और परेशान करने वाले हैं। दिल्ली के 964 सरकारी पार्क की करीब 70 एकड़ ज़मीन पर अवैध कब्जा हो गया है। लेकिन नगर निगम अब तक इससे अतिक्रमण हटाने में नाकाम रहा है। तो जाहिर है अतिक्रमण एक बड़ी समस्या है। लेकिन अफसोस ये है कि इससे अब तक ना तो निजात मिली है, ना ही भविष्य में मिलती दिख रही है। क्योंकि ये ऐसा रोग बन चुका है, जो लाइलाज दिख रहा है। 

अतिक्रमण के कितने गुनहगार हैं?
सवाल ये है कि आखिर देश के लिए ये इतना बड़ा रोग क्यों और कैसे बना? हमें इस प्रश्न का उत्तर भी जानना होगा। दरअसल-घुसपैठ, पलायन, भूमाफिया, जनसंख्या विस्फोट, प्रशासन, राजनीति और भ्रष्टाचार। ये वो कारक हैं, जो देश के बड़े शहरों को झुग्गी झोपड़ियों में बदलते जा रहे हैं। ये वही फैक्टर हैं, जिनकी वजह से अतिक्रमण को रफ्तार मिल रही है। विदेशों से घुसपैठिये आते हैं। उनके पास ना घर होता है ना जमीन। इसलिए उन्हें जहां भी मुफीद जगह मिलती है, वहीं पर बस जाते हैं। वहीं पर अपना झुग्गी झोपड़ी बना लेते हैं। एक राज्य से दूसरे राज्य में रोजगार या किसी दूसरी वजह से पलायन करने वाले गरीब और बेघर लोग भी यही करते हैं। उन्हें जहां भी जगह मिलती है, वहीं पर अपना आशियाना बना लेते हैं।

शुरुआत में लापरवाह और भ्रष्ट प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं देता। अगर देता भी है, तो रुपए पैसे लेकर ऐसे लोगों को वहीं बसे रहने दिया जाता है। परिणाम ये होता है कि धीरे-धीरे ऐसे लोगों का परिवार, इनकी आबादी बढ़ती जाती है। ये उस संख्याबल को प्राप्त कर लेते हैं, जिन्हें आप वोट बैंटबैंक कह सकते हैं और यहीं से सियासी खेल शुरू होता है। नेता वोट के लालच में फंस जाते हैं। वो अतिक्रमण हटाने के बजाय इसे बढ़ावा देने लगते हैं। ऐसी अवैध बस्तियों में बिजली, पानी, सीवर और सड़क का इंतजाम तक हो जाता है। चूंकि ये सिलसिला सालों चलता रहता है, इसलिए बाद में किसी बस्ती और वहां के वाशिदों को हटाना असंभव हो जाता है। 

Jahangirpuri Violence:ऐसे लगा बुलडोजर पर ब्रेक, जाने सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ

आखिरकार सरकारों को अवैध तरीके से बसी बस्तियों को वैध करना पड़ता है। ठीक वैसे ही, जैसे विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली में किया गया था। दिल्ली सरकार ने अक्टूबर 2019 में करीब 1800 अवैध झुग्गियों को वैध कर दिया था। करीब 40 लाख लोगों को घर का मालिकाना हक दिया गया था। जाहिर है। देश की राजनीति, वोट की पॉलिटिक्स ही है, जिसकी वजह से अतिक्रमण एक भयंकर समस्या बनकर सामने खड़ी है। इस समस्या का समाधान क्या है, किसी को नहीं मालूम।

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