नई दिल्ली : देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 21वें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आज 49 साल के हो गए। पांच जून 1972 को पौढ़ी गढ़वाल के पंचूर गांव में जन्मे अजय मोहन सिंह बिष्ट का बचपन सामान्य परिवार के बच्चों की तरह था। उनके पिता आनंद सिंह बिष्ट वन विभाग में रेंजर थे तो मां सावित्री देवी एक कुशल गृहिणी। सात भाई-बहनों में पांचवें नंबर की संतान अजय सिंह बिष्ट की योगी आदित्यनाथ बनने की कहानी काफी दिलचस्प और रोचक है। आनंद सिंह बिष्ट के परिवार को इस बात की जरा भी भनक नहीं थी कि नवंबर 1993 में गांव छोड़ने वाले आत्ममुखी अजय सिंह से उनका परिचय आने वाले कुछ महीनों में योगी आदित्यनाथ के रूप में होने जा रहा है।
योगी के व्यक्तित्व पर घर के संस्कारों का प्रभाव
योगी आदित्यनाथ के व्यक्तित्व के निर्माण में उनके पंचूर गांव एवं परिवार का बड़ा योगदान रहा है। सुबह जगना, गायों एवं प्रकृति से प्रेम, दूसरों की मदद करना, देश-दुनिया की जानकारी रखना, अनुशासन एवं सत्यनिष्ठा से बंधे रहना इन सभी अच्छी आदतें उनमें बचपन में ही समाहित हो गईं। पंचूर में रहते हुए सीएम योगी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सुबह 4 बजे उठ जाते थे। शांतनू गुप्ता ने अपनी किताब 'द मॉन्क हू विकेम चीफ मिनिस्टर' में योगी की मां सावित्री देवी के हवाले से बताया है कि योगी को बचपन से ही गायों से प्रेम था। स्कूल से लौटने के बाद वह रोजाना पास के खेतों में गायों को चराने जाया करते थे।
प्रकृति एवं परिवेश से प्रेम करते हैं योगी
अपने परिवेश और प्रकृति को साफ-सुथरा और हरा-भरा बनाए रखने की सोच उनमें बचपन से थी। बचपन में योगी ने अपने घर के आस-पास कई पेड़ लगाए। किताब में योगी के पिता आनंद सिंह बिष्ट का कहना है कि देश और दुनिया के बारे में जानकारी रखने के लिए अजय बचपन से ही अखबार पढ़ा करते थे। आनंद सिंह का कहना है कि उनका तबादला बार-बार होने की वजह से वह परिवार के साथ ज्यादा समय नहीं बीता पाते थे लेकिन जब भी वह घर लौटकर आए तो अजय के बारे में कभी कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली।
कोटद्वार में लाठीचार्ज का सामना किया
कोटद्वार में अपने कॉलेज के दिनों से ही अजय सामाजिक आंदोलनों एवं राजनीति में सक्रिय हो गए। कोटद्वार में उन्हें वामपंथी दल के छात्र संगठन स्टुडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में शामिल होने का न्योता मिला लेकिन उन्होंने आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को चुना। उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर एक प्रदर्शन के दौरान उन्हें लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा। एक तरह से कोटद्वार से अजय सिंह बिष्ट ने राजनीति का ककहरा सीखा।
गोरक्षनाथ मंदिर में ऐसे हुई एंट्री
दरअसल, योगी आदित्यनाथ मंदिर आंदोलन और उसमें गोरक्षनाथ पीठ की भूमिका से काफी प्रभावित थे। राम मंदिर आंदोलन में गोरक्षनाथ पीठ की भूमिका उन्हें गोरखपुर की तरफ खींच लाई। साल 1990 और 1993 के बीच उनकी मुलाकात गोरखपुर में महंत अवैद्यनाथ से हुई। इस मुलाकात के दौरान तत्कालीन गोरक्षनाथ पीठ के महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें मंदिर में बतौर शिष्य शामिल करने का प्रस्ताव दिया। महंत अवैद्यनाथ के इस प्रस्ताव पर योगी कुछ समय तक उधेड़बुन में रहे।
परिवार के प्रति था मोह
जाहिर है कि उनके मन में परिवार के प्रति मोह कहीं न कहीं था। कुछ दिनों तक योगी ऊहापोह में रहे लेकिन वह समय भी आ गया जब उन्होंने मंदिर की सेवा करने का मन बना लिया। गोरखपुर आने के बाद 15 फरवरी 1994 को अजय सिंह बिष्ट ने नाथ पंथ के एक शिष्य के रूप में अपने गुरु अवैद्यनाथ से दीक्षा ग्रहण की और यहीं से योगी आदित्यनाथ संन्यास और सत्ता का सफर शुरू हुआ।
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