नई दिल्ली : ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने गत तीन जनवरी को हुगली जिले में फुरफुरा शरीफ के धार्मिक नेता अब्बास सिद्दिकी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद इस बात की अटकलें लगी हैं कि सिद्दिकी और ओवैसी आगामी विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ सकते हैं। हालांकि, साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बारे में दोनों नेताओं ने खुलकर कुछ नहीं कहा है। फुरफुरा शरीफ के धार्मिक नेता के रूप में अब्बास की मुस्लिम समुदाय पर अच्छी पकड़ मानी जाती है।
वहीं, बिहार चुनाव में पांच सीटें जीतने के बाद ओवैसी की नजर पश्चिम बंगाल के चुनाव पर है। बंगाल चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद राज्य में ओवैसी का यह पहला दौरा है। एआईएमआईएम नेता बिहार की तरह यहां भी छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ना चाहते हैं। ओवैसी की बंगाल में दस्तक टीएमसी को अच्छी नहीं लग रही है। वह उन्हें भाजपा की बी टीम बताकर उन पर हमला कर रही है। आइए जानते हैं कि हुगली जिले का फुरफुरा शरीफ केंद्र इस बार चुनाव में क्यों अहम हो गया है।
क्या है फुरफुरा शरीफ
फुरफुरा शरीफ हुगली जिले में। बंगाली मुसलमान इस केंद्र को अपनी आस्था के रूप में देखते हैं। मुसलमानों के बीच इस धार्मिक केंद्र का काफी प्रतिष्ठा है। यहां हजरत अबू बकर सिद्दीकी और उनके पांच बेटों की मजार भी है। अबू बकर सिद्दिकी समाज सुधारक माने गए। सिद्दकी के प्रशंसक लाखों की संख्या में बताए जाते हैं। हजरत अबू बकर की याद में यहां हर साल उर्स का आयोजन होता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। इस केंद्र के पीरजादा को अबू बकर का ही वंशज माना जाता है। पीर का वंशज होने के नाते पीरजादों का दरगाह के प्रति आस्था रखने वालों के बीच बहुत ही सम्मान होता है।
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