तो इसलिए फडणवीस नहीं एकनाथ शिंदे बने CM,एक नहीं भाजपा ने साधे कई निशाने,जानें प्लान

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Jul 01, 2022 | 15:04 IST

Eknath Shinde CM Not Devendra Fadnavis: दिल्ली में बैठे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जिस अंदाज में महाराष्ट्र के सीएम पद पर एकनाथ शिंदे की ताजपोशी कराई, उससे यह साफ है कि इस रणनीति का अहसास शायद खुद देवेंद्र फडणवीस को भी नहीं था।

EKNATH SHINDE AND bjp
एकनाथ शिंदे से क्या साधना चाहती है भाजपा  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • एशिया के सबसे अमीर नगर निगम BMC पर शिव सेना का साल 1985 से कब्जा है।
  • एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर, भाजपा 30 फीसदी मराठा आबादी को साधना चाहती है।
  • शिंदे ने भले ही विधायकों के जरिए भाजपा को सत्ता दिलाई है, लेकिन जमीन पर उनकी ताकत की परीक्षा चुनावों से होगी।

Eknath Shinde CM Not Devendra Fadnavis: 10 दिन पहले जिस तरह चौंकाने वाले अंदाज में महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आया था, उसका अंत भी उसी चौंकाने वाले अंदाज में हुआ। दिल्ली में बैठे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जिस अंदाज में महाराष्ट्र के सीएम पद पर एकनाथ शिंदे की ताजपोशी कराई, उससे यह तो साफ हो गया है कि इस रणनीति का अहसास शायद खुद देवेंद्र फडणवीस को भी नहीं था। लेकिन सवाल उठता है कि 39 सदस्यों के शिवसेना विधायकों को मिलाकर कुल 50 विधायकों के समर्थन का दावा करने वाले एकनाथ शिंदे को भाजपा ने क्यों मुख्यमंत्री बना दिया। जबकि खुद उसके पास दो बार के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सहित 106 विधायकों का साथ था। साफ है कि भाजपा की इस रणनीति में केवल अगले ढाई साल की योजना नहीं है।

एकनाथ शिंदे से क्या साधना चाहती है भाजपा

फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा किसी भी तरह यह साबित नहीं करना चाहती थी, कि उद्धव सरकार को गिराकर वह सत्ता हथियाना चाहती है। क्योंकि एक बार देवेंद्र फडणवीस, एनसीपी नेता और शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के साथ जिस तरह हड़बड़ी में सुबह-सुबह सरकार बनाई थी और फिर चंद दिनों में सरकारी गिरी, उससे विपक्ष को यह कहने का मौका मिल गया था कि भाजपा सत्ता के लालच में जोड़-तोड़ करने में लगी हुई है। ऐसे में वह एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर, यह संदेश देना चाहती है कि यह शिव सेना की घर की लड़ाई थी, और वह हिंदुत्व के लिए महाराष्ट्र में शिंदे को समर्थन दे रही है।

क्या ठाकरे परिवार की पॉवर खत्म होगी 

दूसरी अहम बात यह है कि अगर देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनते तो उद्धव ठाकरे के पास यह मौका होता कि वह भाजपा पर आरोप लगाते कि न केवल उसने शिव सेना में फूट डाली बल्कि वह पार्टी को खत्म करना चाहती है।  असल में 2014 और 2019 के लोक सभा और विधान सभा चुनावों में पार्टियों का वोट प्रतिशत देखा जाय तो शिवसेना का 19-20 फीसदी वोट बरकरार है। और यह वोट प्रतिशत भाजपा के साथ लड़ने और अलग होकर लड़ने में करीब-करीब टिका हुआ है। और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस वोट को किसी भी तरह अपने पाले में लाना चाहता है। शिंदे से बेहतर उनके पास इस समय कोई और विकल्प नहीं है। साथ ही भाजपा इस बात का भी आंकलन करना चाहती है कि शिंदे गुट के अलग होने के बाद जमीन पर उद्धव ठाकरे की ताकत में कितनी कमी आई है। और इसकी झलक सितंबर में होने वाले बीएमसी चुनाव में दिख सकती है। 

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शिंदे के जरिए बीएमसी पर कब्जा कर पाएगी भाजपा

एशिया के सबसे अमीर नगर निगम बृहत मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ( BMC) पर शिव सेना का साल 1985 से कब्जा है।  बीजेपी का प्रमुख एजेंडा शिवसेना से BMC को छीनना है। करीब 46 हजार करोड़ के बजट वाले बीएमसी पर कब्जे के लिए भाजपा ने 2017 में चुनावों में कोशिश की थी। भाजपा-शिव सेना अलग-अलग चुनाव लड़े , भाजपा को 82 और शिव सेना को 84 सीटें मिली। लेकिन सत्ता पर कब्जा शिव सेना का हुआ। भाजपा, शिंदे के जरिए बीएमसी पर कब्जा करना चाहती है। और उसकी परीक्षा सितंबर 2022 में होने वाले बीएमसी चुनावों में होगी। साथ ही भाजपा को यह भी अंदाजा लग जाएगा कि उद्धव ठाकरे की राजनीतिक हैसियत क्या है।

मराठों को नया संदेश

असल में भाजपा ने जब 2014 में देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया था तो महाराष्ट्र की राजनीति में यह बड़ा कदम था। क्योंकि फडणवीस, ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। जबकि महाराष्ट्र की राजनीति में मराठों का हमेशा से दबदबा रहा है। 2019 में भले ही मोदी और फडणवीस की जोड़ी ने इस फैक्टर को नजरअंदाज कर, पहली बार सबसे बड़े पार्टी के स्थान पर भाजपा को पहुंचाया। लेकिन फडणवीस के कार्यकाल में मराठा आंदोलन ने , भाजपा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी। महाराष्ट्र में 30 फीसदी मराठा और 3 फीसदी ब्राह्मण आबादी है। ऐसे में एकनाथ शिंदे को आगे कर,  भाजपा शरद पवार और ठाकरे परिवार की विरासत को भी चोट पहुंचाना चाहती है, साथ ही 2024 के चुनावों के लिए मराठों को भी साधना चाहती है।

विपक्षी एकता धराशायी

महाविकास अघाड़ी सरकार के गिरने से बड़ा झटका विपक्ष की एकता को भी लगा है, क्योंकि 2019 में जब शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने हाथ मिलाया था, तो उस समय विपक्ष ने यही दावा किया था कि यह लंबी दोस्ती है और इसका दूर तक असर होगा। लेकिन जिस तरह ढाई साल में ही उद्धव सरकार हिंदुत्व के नाम पर गिर गई है। उससे भाजपा ने 2024 की नैतिक लड़ाई भी जीतने का संदेश दिया है। क्योकि विपक्ष जब 2024 में जनता के बीच जाएगा, तो भाजपा महाविकास अघाड़ी सरकार के गिरने को  बड़ा मुद्दा बनाएगी। यही नहीं ममता बनर्जी से लेकर के.चंद्रशेखर राव को भी अब नए सिरे से विपक्ष को एकजुट करने की रणनीति पर काम करना होगा। जिसकी धुरी अभी तक शरद पवार बने हुए थे। 

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