प्रशांत श्रीवास्तव, नई दिल्ली : लगता है चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक बार फिर से राजनीतिक पारी खेलने का मन बना चुके हैं। उन्होंने पंजाब में अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह का साथ छोड़कर अपने काम से ब्रेक लेने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने मार्च 2021 में दोबारा कैप्टन की चुनावी बिसात बिछाने और चुनावों में जीत दिलाने के लिए प्रधान सलाहकार का काम संभाला था। लेकिन महज 4 महीने में ही उनका कैप्टन से मोहभंग हो गया है। वैसे तो उन्होंने अपने औपचारिक इस्तीफे में लिखा है 'जैसा कि आप जानते हैं, सार्वजनिक जीवन में सक्रिय भूमिका से अस्थायी अवकाश लेने के मेरे फैसले के मद्देनजर, मैं आपके प्रधान सलाहकार के रूप में जिम्मेदारियों को संभालने में सक्षम नहीं हूं। चूंकि मुझे अब अपने भविष्य के कार्य के बारे में निर्णय लेना है। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया मुझे इस जिम्मेदारी से मुक्त करें।'
लेटर में ही लिखी है आगे की रणनीति
वैसे तो प्रशांत किशोर सार्वजनिक जीवन से ब्रेक की बात कर रहे हैं, लेकिन उनके लेटर में ही भविष्य के काम के बारे में फैसला लेने के संकेत मिल गए है। उनका इशारा साफ है कि वह कुछ करने की तैयारी में हैं। क्योंकि उनका पुराना रिकॉर्ड यही बताता है। चुनावों में ममता को मिली बड़ी जीत के बाद , उन्होंने कैप्टन के लिखे इस्तीफे की तरह, एक इंटरव्यू में ऐलान किया था कि वह अब चुनाव रणनीतिकार के रूप में काम नहीं करेंगे। फिर भी वह पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की चुनावी रणनीति बनाने में अभी तक मदद कर रहे थे।
कांग्रेस हो सकती है अगला ठिकाना
असल में पिछले कुछ समय से प्रशांत किशोर जिस तरह तीनों गांधी (सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी) से मुलाकात की है। उसके बाद से यह अटकलें लगाई जा रही है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस के साथ जुड़ने की तैयारी में हैं। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी अगले कुछ दिनों में बड़े फेरबदल की तैयारी में हैं। इसी कड़ी में प्रशांत किशोर की नई भूमिका सामने आ सकती है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं " प्रशांत किशोर हमारे साथ पहले से ही जुड़े हुए हैं, वह उत्तर प्रदेश में 2017 में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन में अहम भूमिका निभा चुके हैं। इसके अलावा पंजाब में भी वह 2016 में, और इस बार कांग्रेस के लिए ही काम कर रहे थे। इसी तरह उत्तराखंड में भी काम कर चुके हैं। ऐसे में अगर उन्हें कोई नई भूमिका मिलती है, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।" हालांकि कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में उनका साथ हिट नहीं रहा था। 2017 के चुनावों में "यूपी को साथ पसंद है" का नारा कमाल नहीं दिखा पाया था। लेकिन पंजाब में कैप्टन की सत्ता में वापसी में अहम भूमिका निभाई थी।
पार्टी सूत्रों के अनुसार प्रशांत किशोर की भूमिका पार्टी के बाहर और अंदर, दोनों तरह से हो सकती है। वह या तो पार्टी में 2024 के लिए चुनाव रणनीति की पूरी जिम्मेदारी महासचिव जैसे पद लेकर संभाल सकते हैं। या फिर अगर बात नहीं बनी तो बाहर रहकर चुनावी अभियान की रणनीति बना सकते हैं। राहुल गांधी ने जिस तरह बीते मंगलवार को 15 विपक्षी दलों को नाश्ते पर बुलाया था। उससे साफ है कि कांग्रेस अब गठबंधन के लिए मन बना चुकी है। जिसमें प्रशांत किशोर की अहम भूमिका निभा सकते हैं।
कांग्रेस के लिए इस तरह हो सकते हैं फायदेमंद
प्रशांत किशोर इस समय सभी राजनीतिक दलों के पसंदीदा चुनावी रणनीतिकार बन चुके हैं। खास तौर से उन्हें विपक्षी दल हाथों-हाथ अपने साथ जोड़ने के लिए लालायित रहते हैं। वह कांग्रेस के अलावा 2014 में नीतीश कुमार, 2018 में जगन मोहन रेड्डी (वाईएसआर कांग्रेस), 2019 में अरविंद केजरीवाल (आम आदमी पार्टी), 2020-21 के लिए ममता बनर्जी के लिए काम कर चुके हैं। इस वजह से विपक्षी दलों के नेताओं से संपर्क उनके काफी बेहतर हैं। इसी अनुभव का फायदा प्रशांत किशोर से कांग्रेस उठाना चाहती है। हाल ही में एनसीपी नेता शरद पवार से उनकी कई दौर की मुलाकात हो चुकी है। साफ है कि उनके ये संबंध राहुल को गठबंधन कराने बड़े काम आ सकते हैं।
जद यू के साथ रास नहीं आई राजनीति
दिसंबर 2018 में प्रशांत किशोर ने जद यू की सदस्यता ग्रहण कर औपचारिक रूप से राजनीति में प्रवेश किया था। लेकिन उनको सीधी राजनीति रास नहीं आई और दो साल में ही उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था। हालांकि 2014 में जिस तरह नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर ने बिहार विधान सभा चुनावों में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। उसे देखते हुए उन्हें पार्टी में नंबर दो की हैसियत मिल गई थी। उन्हें पार्टी में उपाध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन बाद में मतभेद बढ़ते गए, जिसके बाद मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर कह दिया था "जिसको जाना है वह जाए" । उसके बाद फरवरी 2020 में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था।
कार्यशैली पर उठते रहे हैं सवाल
प्रशांत किशोर के काम करने के तरीके पर कई बार सवाल उठते रहे हैं। जिस तरह जद यू ने उनको निकाला था। उसमें अहम भूमिका उनके बयानों और कार्यशैली की रही थी। खास तौर से उन्होंने सीएए कानून पर पार्टी लाइन के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर मत प्रकट किया था। उससे नाराजगी खुलकर सामने आ गई थी।
इसी तरह तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं ने भी प्रशांत किशोर की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए बंगाल विधान सभा चुनावों से पहले पार्टी छोड़ दी थी। ऐसा ही हाल पंजाब में भी हो रहा था। प्रशांत किशोर के कैप्टन के साथ आने के बाद पार्टी के कई नेताओं ने सवाल खड़े किए थे। खैर
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