यह सवाल बहुत वाजिब है कि जब आप कहीं पर व्यापार के लिए जाते हैं तो क्या आप वहां के कानून को नहीं मानेंगे। व्यापार के लिए सहुलियत की मांग अलग मुद्दा है लेकिन किसी देश के नियम कानून को धता बताना अलग विषय है। ट्विटर ने भारत में कुछ ऐसा ही किया लेकिन सरकार ने ना सिर्फ नकेल कस दी बल्कि कहा कि ये तो नहीं हो सकता है कि आप यहां व्यापार करेंगे और देश के कानून को नहीं मानेंगे। इस विषय पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ना सिर्फ कुछ दिलचस्प हवाला दिए बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात के आरोप लगाने वालों को करारा जवाब भी दिया।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के बोल
जब कुछ लोग ट्विटर के माध्यम से अपनी राजनीति करते हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है.. अब वे ट्विटर की राजनीति कर रहे हैं, फिर मुझे कोई समस्या नहीं है। यह ट्विटर और भारत सरकार या भाजपा के बीच कोई मुद्दा नहीं है। यह ट्विटर और उसके उपयोगकर्ताओं के बीच एक मुद्दा है जिसे दुरुपयोग/दुरुपयोग के मामले में मंच दिया जाना चाहिए:
जब भारतीय कंपनियां व्यापार करती हैं या फार्मा कंपनियां अमेरिका में निर्माण करने जाती हैं, तो क्या वे अमेरिकी कानूनों का पालन करती हैं या नहीं? अगर आपको यहां व्यापार करना है, तो हम सभी, पीएम की आलोचना करने के लिए आपका स्वागत है.. लेकिन आपको भारत के संविधान और नियमों का पालन करना होगा।
मैं वह नहीं हूं जिसने इसे (ट्विटर की मध्यस्थ स्थिति को हटाने) घोषित किया है, कानून है। अगर दूसरे लोग इसका अनुसरण करते हैं, तो वे क्यों नहीं कर सकते? हमने 3 अधिकारियों को नियुक्त करने के लिए कहा। 3 माह की अवधि 26 मई को समाप्त.. सद्भावना के रूप में दिया उन्हें अंतिम अवसर दिया गया था।
कानून मंत्री के बयान के पीछे की वजह
दरअसल कानून मंत्री के इस तरह के बयान के पीछे वजह क्या है। फरवरी में आईटी कानून में परिवर्तन के बाद सोशल साइट कंपनियों को तीन अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान है। इसके पीछे तर्क यह था कि अगर सोशल मीडिया के माध्यम से किसी तरह का अफवाह फैलता है तो उपयुक्त लोगों की जवाबदेही तय की जाएगी और उसके लिए तीन महीने का वक्त दिया गया था। बाकी सभी कंपनियों ने सरकारी नियमों के तहत अधिकारियों की नियुक्ति की। लेकिन ट्विवटर ने इंकार कर दिया था।
आईटी रूल के हिसाब से बाहरी सोशल मीडिया कंपनियों को रक्षा कवच मिली थी उसके तरह ट्विटर को भी यह सुविधा थी। लेकिन गाजियाबाद के लोनी में अब्दुल समद प्रकरण में जिस तरह से ट्विटर ने बिना तथ्यों को जानें उन राजनीतिक शख्सियतों की टिप्पणी को जगह दी जिसकी वजह से सांप्रदायिक तनाव फैलने का खतरा उसके बाद से ट्विटर की मुश्किल बढ़ गई।
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