ओडिशा के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ओएसडीएमए) के आधिकारिक रिकॉर्ड में कहा गया है कि राज्य ने 22 साल की अवधि में आसन्न ‘जवाद’ सहित 10 चक्रवातों का सामना किया है तथा ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है।वर्ष 1999 के ‘महाचक्रवात’ की यादें अभी भी ताजा हैं, जिसकी हवाओं की गति का मौसम विज्ञान केंद्र, भुवनेश्वर में ठीक से पता नहीं लगाया जा सका, और हवाओं की रफ्तार उस समय उपलब्ध एनीमोमीटर की क्षमता को पार कर गई थी।
दस हजार से अधिक लोगों की जान लेने वाली 1999 की आपदा के बाद, राज्य ने चक्रवात ‘फैलिन’ के रूप में एक और बड़ी आपदा का अनुभव किया था। यह चक्रवात 12 अक्टूबर, 2013 को गंजाम जिले के गोपालपुर के पास तट से टकराया था जो 1999 के बाद से भारत में दूसरा सबसे मजबूत उष्णकटिबंधीय चक्रवात बन गया। यह ओडिशा तट से 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से टकराया था।रिकॉर्ड में कहा गया है कि नवीन पटनायक सरकार द्वारा एहतियाती उपायों के साथ "शून्य जनहानि" मिशन तय किए जाने के बाद चक्रवाती तूफान में 23 लोग मारे गए थे। ‘फैलिन’ के बाद 2014 में चक्रवात ‘हुदहुद’ आया, जिसने 12 अक्टूबर, 2014 को आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम शहर में दस्तक दी।
ओडिशा भी ‘हुदहुद’ से प्रभावित था जिसमें दो लोगों की मौत हुई थी, जबकि आंध्र प्रदेश में इससे 60 से अधिक लोगों की जान चली गई थी।इसके बाद, 2018 में चक्रवात ‘तितली’ ने अधिकारियों को हैरान कर दिया था, क्योंकि मौसम प्रणाली ने अप्रत्याशित रूप से अपना मार्ग बदल लिया था और यह गजपति जिले में प्रवेश कर गया था, जहां आपदा से निपटने के लिए कोई बड़ी तैयारी नहीं की गई थी। तब ओडिशा में भारी बारिश और चक्रवात के साथ हुए भूस्खलन के कारण 70 लोग मारे गए थे।इसके बाद के उसी वर्ष में, दो चक्रवात - ‘फणि’ और ‘बुलबुल’ देश के पूर्वी तट से टकराए, जिससे ओडिशा और पश्चिम बंगाल में व्यापक क्षति हुई। ‘फणि’ तट से टकराने से एक दिन पहले अपनी चरम तीव्रता पर पहुंच गया था और 209-251 किमी प्रति घंटे की अधिकतम रफ्तार वाली हवाओं के साथ यह उच्च श्रेणी-4 के प्रमुख तूफान के रूप में चिह्नित किया गया था।