नई दिल्ली: कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। इसके कुछ घंटों बाद पार्टी नेता सलमान खुर्शीद ने राहुल गांधी के लिए अपना समर्थन दिया। साथ ही आजाद पर निशाना साधते हुए खुर्शीद ने कहा कि यह मैच्योरिटी नहीं है, लंबे समय से पार्टी से जुड़े लोगों ने इसे छोटे मुद्दों पर छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी हमारे नेता हैं और रहेंगे। राहुल गांधी के साथ हमारा लेन-देन का रिश्ता नहीं है। पार्टी के लिए कुछ करना हमारा कर्तव्य है। यह मैच्योरिटी नहीं है कि इतनी छोटी सी बात को लंबे समय से जुड़े रहने वाले पार्टी छोड़ कर चल दे। खुर्शीद ने टाइम्स नाउ नवभारत ने कहा कि किसी को जब शिकायत थी तब निर्णय लेना चाहिए। आज क्यों ले रहे हैं। जब हम सत्ता में तब छोड़कर जाना चाहिए था। तब लोग कहते इन्होंने विश्वासघात नहीं किया है। सत्ता रहते हुए छोड़कर गए। सत्ता नहीं है और लगता नहीं है कि बहुत जल्दी सत्ता मिलेगी। उस समय छोड़कर जाना विश्वासघात है।
खुर्शीद ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हम कहीं नहीं जा सकते लेकिन हम नहीं जाएंगे बल्कि पार्टी के साथ रहेंगे। हम पार्टी के साथ इस देश का भविष्य देखते हैं और उम्मीद करते हैं कि पार्टी ऊपर उठेगी। खुर्शीद की यह टिप्पणी गुलाम नबी आजाद और आरएस चिब समेत पार्टी के 6 अन्य सदस्यों के भी पार्टी से इस्तीफा देने के बाद आई है।
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आजाद के समर्थन में पार्टी छोड़ने वालों में जीएम सरूरी, हाजी अब्दुल राशिद, मोहम्मद अमीन भट, गुलजार अहमद वानी और चौधरी मोहम्मद अकरम शामिल हैं। अपने इस्तीफे में, आजाद ने राहुल गांधी को इंमैच्योर बताया। उन्होंने पार्टी में "परामर्श तंत्र को ध्वस्त करने" के लिए राहुला को दोषी ठहराया था। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को 5 पेज की चिट्टी में आजाद ने दावा किया कि एक मंडली पार्टी चलाती है, जबकि वह सिर्फ एक नाममात्र की मुखिया थीं और सभी बड़े फैसले 'श्री राहुल गांधी या बल्कि उनके सुरक्षा गार्डों और पीए द्वारा लिए गए थे।'
आजाद के जम्मू-कश्मीर के संगठनात्मक पद से इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद यह घटनाक्रम सामने आया है। कांग्रेस के साथ अपने लंबे जुड़ाव और इंदिरा गांधी के साथ अपने करीबी संबंधों को याद करते हुए आजाद ने कहा कि कांग्रेस पार्टी जो स्थिति है इससे साफ पता चलता है कि वह रिकवर नहीं करेगी।
आजाद ने लिखा कि पूरी संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया एक दिखावा है। देश में कहीं भी संगठन के किसी भी स्तर पर चुनाव नहीं हुए हैं। एआईसीसी के चुने हुए लेफ्टिनेंटों को मंडली द्वारा तैयार की गई सूचियों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया है।
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