Dev Deepwali 2019: यहां की देव दीपावली है विश्व प्रसिद्ध, स्वर्ग से देवता भी आते हैं देखने ये अद्भुत नजारा 

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Updated Nov 10, 2019 | 08:28 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

देव दीपावली (dev deepawali) हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मनायी जाती है। इस दिन काशी (varanasi) के घाटों को असंख्य दीयों से सजाया जाता है। जानें इस दिन यहां क्‍या होता है खास... 

Dev Deepawali in Varanasi
Dev Deepawali in Varanasi  |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • भोलेनाथ की प्राचीन नगरी काशी का दुनिया में एक अलग ही महत्व है
  • काशी की देव दीपावली देखने के लिए सिर्फ देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी भारी संख्या में लोग आते हैं
  • काशी नरेश डॉ. विभूति नारायण ने देव दीपावली को सांस्कृतिक पहचान दिलायी

भोलेनाथ की प्राचीन नगरी काशी का दुनिया में एक अलग ही महत्व है। यहां सभी व्रत एवं त्योहार काफी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं। जिसे देखने के लिए दुनिया के कोने कोने से लोग यहां आते हैं। बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए यहां पूरे वर्ष श्रद्धालु आते रहते हैं। लेकिन काशी की देव दीपावली देखने के लिए सिर्फ देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी भारी संख्या में लोग इस अनोखे नजारे को देखने के लिए आते हैं।

देव दीपावली हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मनायी जाती है। इस दिन काशी के घाटों को असंख्य दीयों से सजाया जाता है। दीयों की रोशनी से सराबोर गंगा के सभी घाट देवलोक के समान प्रतीत होते हैं। इस साल देव दीपावली 12 नवंबर को मनायी जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली को देखने के लिए सभी देवी देवता धरती पर उतरते हैं। यही कारण है कि काशी की देव दीपावली संसार भर में प्रसिद्ध है।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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देव दीपावली क्यों मनायी जाती है
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद जगते हैं। इसकी खुशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवता स्वर्ग से उतरकर काशी के घाटों पर दीपों का पर्व मनाते हैं। दीपों के इस उत्सव में सभी देवी देवता स्वयं शामिल होते हैं। इसलिए देव दीपावली का खास महत्व है। यह भी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुर नामक राक्षस का वध करके काशी को मुक्त कराया था। मुक्ति मिलने के बाद देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की महाआरती की थी और गंगा के घाटों को दीयों से सजाया था।

 

 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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देव दीपावली ने ऐसे लिया भव्य रूप
काशी नरेश डॉ. विभूति नारायण ने देव दीपावली को सांस्कृतिक पहचान दिलायी। उन्होंने 1986 में गंगा के घाटों को लाखों दीयों से सजवाया और देव दीपावली को काफी भव्य तरीके से मनाना शुरू किया। तब से देव दीपावली जनोत्सव के रुप में मनायी जाने लगी। देव दीपावली की शाम लाखों लोग मिलकर घाटों को दीयों से सजाते हैं और फिर गंगा माता की भव्य आरती होती है। 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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लोगों के आकर्षण का केंद्र
देव दीपावली को बड़े पैमाने पर पर्यटन विभाग प्रसारित करता है। आज इसका महत्व दुनिया के सभी देशों में है और काशी की देव दीपावली लोगों के आकर्षण का केंद्र है। लोग गंगा की लहरों पर दीयों की जगमगाती रोशनी को देखने से लिए महीनों पहले आने की प्लानिंग कर लेते हैं। यही कारण है कि देव दीपावली के दिन काशी में भारी भीड़ होती है।

इस प्रकार देव दीपावली बहुत बड़ा धार्मिक पर्व है और इसमें सभी लोग योगदान करके घाटों को सजाते हैं और स्वर्ग से उतरे देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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