गुड न्यूज फिल्म भी ऐसे ही निसंतान दंपति को आईवीएफ के जरिये संतान प्राप्ति का रास्ता बताती है। हाल ही में फिल्म का ट्रेलर भी रिलीज हो गया है। इस फिल्म में अक्षय और करीना डॉक्टर के पास आते हैं क्योंकि उन्हें बच्चा नहीं होता। डॉक्टर फिर उन्हें आईवीएफ के जरिए बेबी प्लान करने को
कहते हैं, लेकिन क्या आप आईवीएफ के बारे में जानते हैं? ये आईवीएफ किस ट्रीटमेंट के लिए जरूरी होता है और इसके क्या फायदे हैं? आईवीएफ की जरूरत कब होती है? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आईवीएफ ट्रीटमेंट को लेकर लोगों के मन में एक गलत धारणा भी बसी हुई है। वह यह कि इस ट्रीटमेंट के बाद हुए बच्चे को लोग अपना बच्चा नहीं मानते, जबकि ये ट्रीटमेंट केवल पति-पत्नी के अंडाणु और शुक्राणु के जरिये ही होता है। तो आइए जानें कि इस ट्रीटमेंट से बच्चे का जन्म कैसे होता है और किस मौसम में ये चिकित्सा ज्यादा सफल होती है?
आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन। ये ट्रीटमेंट में निसंतान दंपतियों के लिए होता है। जब किसी कारणवश दंपति प्राकृतिक रूप से बच्चा पैदा नहीं कर पाते तो उन्हें इस ट्रीटमेंट की हेल्प लेनी पड़ती है। इस ट्रीटमेंट में पत्नी के अंडाणु और पति के शुक्राणु को लैब में भ्रूण के रूप में विकसित कर पत्नी के गर्भाश्य में डाल दिया जाता है और बच्चा समान्य रूप से वैसे ही पेट में पलता है जैसे अन्य गर्भवती के पेट में बच्चा होता है। फिलोपियन ट्यूब में दिक्कत होने, रसौली होने या किसी अन्य दिक्कत के कारण कई बार शुक्राणु अंडाणु से मिल नहीं पाते। इससे गर्भाधान नही हो पाता। वहीं कई बार पति के कमजोर शक्राणु अंडाणु तक नहीं पहुंच पाते। ऐसे में अंडाणु और शुक्राणु को निकाल कर उनका लैब में निषेचन किया जाता है। आईवीएफ की इस प्रक्रिया में दो से तीन हफ्ते का समय लग जाता है।
आईवीएफ सफल उनमें ज्यादा बेहतर होता है जिनमें विटामिन डी की मात्रा बेहद अच्छी होती है। इसलिए जून, जुलाई और अगस्त में सबसे ज्यादा विटामिन डी सूरज की किरणों से मिलती हैं। ऐसा कई शोध में भी सामने आया है। शोध बताते हैं कि महिलाओं में आईवीएफ के इलाज से गर्भधारण की संभावनाएं गर्मी के मौसम में दोगुनी होती है, क्योंकि सूरज की किरणों से मिलने वाला विटामिन डी है जो इस मौसम में आसानी से मिलता है। जिनमें विटामिन डी कम होता है उन्हें आईवीएफ ट्रीटमेंट से पहले अधिक समय धूप में रहने की सलाह दी जाती है ताकि उच्च क्वालिटी के भ्रूण निर्मित होने की संभावना रहे।
संबंध बनाने से बचें : इस ट्रीटमेंट के बाद शारीरिक संबंध बनाने से दूर रहना चाहिए ताकि यूटीआई इंफेक्शन न होने पाएं।
वजन उठाने से बचें : आईवीएफ प्रक्रिया के बाद भारी सामान न उठाएं क्योंकि पेट की मांसपेशियों पर दवाब पड़ने से इस ट्रीटमेंट से दिक्कत आ सकती है।
बाथ टब में न नहाएं : बाथ टब में आईवीएफ ट्रीटमेंट के बाद कम से कम दो महीने तक नहाने से बचना चाहिए क्योंकि इससे गर्भाश्य में प्रत्यारोपित भ्रूण अपनी जगह से हिल सकता है। बैठ कर भी न नहाएं बल्कि शॉवर बॉथ लें।
एक्सरसाइज न करें : आईवीएफ के बाद डांस, एरोबिक्स या कोई अन्य एक्सरसाइज न करें क्योंकि इससे भी ट्रीटमेंट असफल हो सकता है। हालांकि आप वाकिंग कर सकती हैं।
तो आईवीएफ के बारे में जान कर इस चिकित्सा का लाभ उठाएं और संतान सुख उठाएं।