Goa Fishermen Lifestyle: गोवा के बीच जो पार्टी के लिए हैं मशहूर, वहां के मछुआरों के बारे में भी जानिए

लाइफस्टाइल
Updated Jun 10, 2022 | 11:47 IST

life of goa fishermen: गोवा के बीच पार्टी को लेकर मशहूर हैं लेकिन इसी समंदर किनारे बसे गोवा की एक और कहानी है। वो कहानी ना किसी कसीनो की है, ना किसी बीच साइट क्लब की। वो है समंदर किनारे रहने वाले मछुआरे और उनके परिवारों की। कैसे उनके परिवारों की गुजारा होता है और कैसे वो चलाते हैं अपनी जिंदगी ।

अशेष गौरव दुबे की रिपोर्ट

नई दिल्ली:  गोवा का नाम सुनते ही ज्यादातर लोग गोवा के बीच, गोवा की पार्टियों और गोवा के कसीनों के बारे में सोचने लगते है। एक तरह से कह सकते हैं कि गोवा को एक रंगीन लाइफस्टाइल के रूप में देखा जाता है। इसी गोवा की एक और कहानी है जो बसती है समंदर किनारे। ये कहानी ना किसी गोवा के कसीनो की है और ना ही गोवा के किसी बीच साइट क्लब की है। ये कहानी है गोवा के उन मछुआरों की जो समंदर किनारे रहते हैं और जिनकी मेहनत से पकड़ी गई मछलियां गोवा के क्लब और रेस्टोरेंट में खाने के स्वाद को बढ़ाती हैं। समंदर किनारे रहने वाले मछुआरों की जिंदगी दिखने में जितनी आसान लगती हैं वो असल में होती नहीं है। 12 महीने परिवार को चलाने की जिम्मेदारी तो होती है और साथ ही हर दिन उन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जिसमें कई बार जान का बाजी तक लगानी पड़ती है।

कैसा होता है मछुआरों का जीवन?
गोवा के मछुआरों का जीवन कैसे होता है इसे जानने के लिए हम पहुंचे गोवा के वेलसाव बीच। वैसे तो गोवा का वेलसाव बीच प्राइवेट पार्टियों के लिए फेमस है लेकिन इसी बीच पर वो मछुआरे भी रहते हैं जिनके लिए काम की शुरुआत सुबह के 4 बजे से ही हो हो जाती है। ठीक उस वक्त जब गोवा में पार्टियां खत्म होती हैं। सुबह के 4 बजे से लेकर दोपहर के 12 बजे तक के लिए गोवा के मछुआरे समंदर में ही रहते हैं ताकि अच्छी संख्या में मछलियां पकड़ी जा सके और उनके घर में चूल्हा जल सके। गर्मी का मौसम हो या फिर सर्दी का, हर मौसम में मछुआरों की नजरें समंदर की ओर ही रहती है क्योंकि ये इसी समंदर से तय होता है कि आखिर उनके घरों में चूल्हा कैसे जलेगा? वैसे तो सुनने में आसान लगता है कि मछुआरों को समंदर में उतरकर सिर्फ मछलियां ही पकड़नी है लेकिन असल में जब नाव लेकर मछुआरे उन तेज लहरों में उतरते हैं तब जाकर अहसास होता है कि आखिर ये काम कितना मुश्किल भरा है।

समंदर में क्या- क्या परेशानी?
सिर्फ समदंर की लहरें ही मछुआरों के लिए परेशानी नहीं है। बहुत सी ऐसी परेशानियां हैं जो इन मछुआरों को झेलनी पड़ती है। कभी एक दो दिनों के लिए तो कभी- कभी हफ्तें भर के लिए। हमने जब मछुआरों से बात की तो उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें  समंदर में उतरने के बाद मछली पकड़ने वाली बड़ी कंपनियों में काम करने लोगों की ओर से परेशान किया जाता है। छोटे और स्थानीय मछुआरों का तो ये भी आरोप है कि मछली पकड़ने वाली बड़ी कंपनियों में काम करने लोग समंदर के अंदर एलईडी लाइट डाल देते हैं जिससे की मछलियां और दूर चली जाती है और परेशानी छोटे मछुआरों को होती है क्योंकि वो अपने नाव को लेकर ज्यादा दूर तक नहीं जा सकते हैं। ऐसे में कभी- कभी खाली हाथ भी घर लौटना पड़ता है।

नाव बनाने में कितने का खर्च?
मछुआरों की जब बात होती है तो इनके नाव की बात भी जरूरत होती है। एक नाव को देखकर भले ही ऐसा लगता है इसे बनाने में लागत कम आती होती लेकिन असल में ये एक छोटी कार की कीमत के बराबर होती है। हमने गोवा में मछुआरों के नाव को बनाने वाले एक कारीगर से बात और ये जाना कि आखिर एक नाव को बनाने में कितना खर्च आता है। एक छोटा नाव बनाना हो जिसमें सिर्फ दो लोग बैठते हैं तो उसे बनाने में 25 हजार रुपए का खर्च आता है लेकिन वहीं अगर बड़ा नाव बनाना हो तो इसमें करीब करीब 6 लाख रुपए तक का खर्च आता है। ये खर्च मछुआरे कर तो देते हैं लेकिन मछलियां पकड़कर इसकी कीमत निकालने में काफी ज्यादा वक्त लग जाता है। नाव के रखरखाव के लिए इन्हें पैसे भी खूब खर्च करने पड़ते हैं और ये सब तय होता है मछलियों की बिक्री पर।

हमने मछुआरों की बस्ती में पहुंचकर उनके घर को देखा और जाना कि आखिर समंदर से लौटने के बाद घर में कितनी परेशानी होती है। वैसे तो सर्दी के मौसम में कोई खास दिक्कत घरों में नहीं होती है लेकिन बरसात में दिक्कतें काफी ज्यादा होने लगती हैं. कच्चे घर होने की वजह से हर वक्त उके सिर पर खतरा मंडराता रहता है। घर हो या फिर समंदर कहीं पर भी इनकी जिंदगी आसान नहीं होती है। समंदर के बीच अगर मछलियां ज्यादा पकड़ी गई और सभी बिक गई तो खुशी और मछली नहीं पकड़ी गई तो हाथ सिर्फ मायूसी ही लगती है। और मछलियों को पकड़ने के दौरान भी इन मछुआरों सामना करना पड़ता है।

अगली खबर