लॉकडाउन के बाद से वीरान पड़े रेलवे स्टेशन, कहीं रेलगाड़ियों के फेरे घटे, कहीं ठहराव

लखनऊ समाचार
भाषा
Updated Jun 21, 2020 | 13:56 IST

कोरोना वायरस की वजह से जारी लॉकडाउन का असर आम जन-जीवन पर बुरी तरह से हुआ है। बाजार, शहर और सड़कों से रौनक गायब है। रेलगाड़ियों में यात्रा बेहद कम हैं।

Amid coronavirus railway stations deserted since lockdown
लॉकडाउन के बाद से वीरान पड़े रेलवे स्टेशन 
मुख्य बातें
  • देश में कोरोना वायरस की वजह से आम जन जीवन बुरी तरह हुआ है प्रभावित
  • बाजारों, शहरों, सड़कों और रेलवे स्टेशनों से गायब है पहले जैसी रौनक
  • कई रेलवे स्टेशन हुए वीरान, ट्रेन के ठहराव वाले स्टेशनों में भी कमी

लखनऊ: लॉकडाउन ने देश के हर हिस्से को प्रभावित किया है। न बाजारों में रौनक रही, न सड़कों पर चहल पहल। बहुत से रेलवे स्टेशन भी वीरान पड़े हैं, न आती जाती रेलगाड़ियों का शोर है और न ही यात्रियों की हलचल। ऐसा मंजर इससे पहले न देखा न सुना। उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ से फैजाबाद, रायबरेली, अमेठी, सुल्तानपुर और प्रतापगढ की ओर जाने वाले रेलमार्ग पर वीरान पडे स्टेशन फिलहाल ट्रेन से इंसानी रिश्ते के टूटने की कहानी बयां कर रहे हैं।

लॉकडाउन के बाद सब कुछ ठहर सा गया
रेलकर्मी आर बी सिंह लोको कारखाने में हैं। सिंह ने कहा, 'लखनऊ से रायबरेली की ओर बढें तो उतरेटिया, मोहनलालगंज, निगोहां, कनकहा, बछरावां, हरचंदपुर आदि स्टेशनों से भी चहल पहल गायब है । उतरेटिया सुल्तानपुर और रायबरेली के रेलमार्गों को अलग करता है और यहां छोटी-बडी ट्रेनों का ठहराव होता रहा है, लेकिन लॉकडाउन के बाद से जैसे सब कुछ रुक गया है।’ सिंह ने कहा कि वह बछरावां में रहते हैं और रोज किसी ना किसी ट्रेन से अप—डाउन करते थे लेकिन अब सड़क मार्ग से आना पडता है और बस ही एकमात्र साधन बचा है।

पहले जैसी बात नहीं

सुल्तानपुर—प्रतापगढ खंड पर पीपरपुर स्टेशन के निकट गेटमैन विनीत कुमार दुबे ने कहा, 'इधर सिंगल लाइन है। दूर तक निहारता हूं, सिर्फ पटरी ही दिखती है। ट्रेनों की आवाजाही बंद है । वैसे भी इस खंड पर ट्रेनों की संख्या काफी कम है लेकिन जो थीं भी, वे भी अब नहीं दिखतीं । फिलहाल फाटक खोलने या बंद करने की स्थिति नहीं होने से लगता है कि जीवन अधूरा सा है।'

ट्रेनें बंद
गौरीगंज आधुनिक स्टेशन बन रहा है। यह मलिक मोहम्मद जायसी की नगरी जायस के निकट है और रायबरेली से प्रतापगढ जाने वाले रेलमार्ग पर पडता है। गौरीगंज में लाइन बिछाने की प्रक्रिया में कंक्रीट का कार्य कर रहे ठेकेदार सूर्यबख्श सिंह ने बताया कि सिर्फ तीन प्लेटफार्म हैं। यात्रियों का नामो निशान गायब है। सिंह ने बताया कि गौरीगंज रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही ठेठ अवधी गीत, गन्ने का ताजा रस, अंकुरित चना—मूंग और मीठे में खाजा की जबर्दस्त मांग रहती थी लेकिन ट्रेनें बंद होने से सब बेस्वाद हो गया है।

यात्रा नदारद

मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय में इंजीनियर रवि कुमार ने बताया कि आम तौर पर सुल्तानपुर होकर वाराणसी का रूट काफी व्यस्त हुआ करता था लेकिन अब यह भी सुनसान है । इक्का दुक्का ट्रेनें ही गुजर रही हैं, जिनमें महामना एक्सप्रेस, अमृतसर कोलकाता एक्सप्रेस, श्रमजीवी एक्सप्रेस शामिल हैं। कुमार ने बताया कि आम तौर पर हैदरगढ, मुसाफिरखाना और निहालगढ के अलावा सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन पर काफी चहल पहल रहती थी। मुसाफिरखाने की बालूशाही की मुसाफिरों को तलाश रहती थी लेकिन अब इन स्टेशनों पर 'लोकल' यात्री तो नदारद हैं और लंबी दूरी की गाडियों का यहां ठहराव ही नहीं है ।

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