Opinion India ka: गुड गवर्नेंस इंडेक्स में यूपी कहां, ये रिपोर्ट अखिलेश के लिए उपयोगी है?

गुड गवर्नेंस को लेकर जो सरकारी रिपोर्ट आई है, उसने ही योगी की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। यह यूपी के विकास मॉडल को कठघरे में खड़ी कर रही है।

Opinion India ka: Where is Uttar Pradesh in Good Governance Index, this report is useful for Akhilesh yadav?
उत्तर प्रदेश का गुड गवर्नेंस इंडेक्स 

जिस रिपोर्ट के आने के बाद से यूपी के विकास मॉडल पर सवाल उठ खड़ा हुआ है, वो क्या है? नीति आयोग ने सभी राज्यों का सर्वे किया। यूपी को स्वास्थ्य के मामले में 29वां पायदान नसीब हुआ। कृषि के मामले में 17वां नंबर। और मानव संसाधन विकास के मुद्दे पर 12वां नंबर। पीयूष जैन के बहाने यूपी में गुड गवर्नेंस और बैड गवर्नेंस की जंग हो रही है। मोदी और योगी रैलियों में विकास की बातें कर रहे हैं। लेकिन गुड गवर्नेंस को लेकर जो सरकारी रिपोर्ट आई है, उसने ही योगी की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। ये वो रिपोर्ट है, जो यूपी के विकास मॉडल को कठघरे में खड़ी कर रही है।

कोरोना की तीसरी लहर का खतरा बढ़ गया है। इस बीच नीति आयोग ने जो हेल्थ इंडेक्स जारी किया है, उसमें यूपी की हेल्थ रिपोर्ट ठीक नहीं दिख रही है। नीति आयोग की इस रिपोर्ट में राज्यों की स्वास्थ्य व्यवस्था के हिसाब से उनकी रैंकिंग की गई है। 

विडंबना ये है कि इन दो ग्राफ में यूपी एक में सबसे नीचे है और एक में टॉप पर। नीति आयोग की इस रिपोर्ट में अगर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की बात करें तो यूपी 10 में से 5.5 नंबरों के साथ टॉप पर है लेकिन वहीं अगर समूची स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो यूपी इस मामले में सबसे नीचे यानी 19वें नंबर पर है। यहां केरल टॉप पर है।

हेडर- उत्तर प्रदेश का हेल्थ इंडेक्स

स्वास्थ्य सेवा में सुधार                समूची स्वास्थ्य सुविधाएं 
1- यूपी                                  1- केरल
2- असम                                2- तमिलनाडु
3- तेलंगाना                             3- तेलंगाना
4- महाराष्ट्र                             18- बिहार
5- झारखंड                            19- उत्तर प्रदेश

(सोर्स- नीति आयोग)

ये रिपोर्ट आधी भरे और आधी खाली गिलास की तरह है, जिसे जो देखना हो वो देख ले। यूपी चुनाव से पहले आई इस रिपोर्ट के जरिए विपक्ष को योगी सरकार की नाकामी दिख रही है तो योगी सरकार के समर्थक इसी रिपोर्ट के जरिए तेजी से सुधार के लिए सरकार की पीठ ठोंक रहे हैं। नीति आयोग ने भी स्वास्थ्य सेवा में सुधार के इंडेक्स पर यूपी सरकार की तारीफ की। जब हमने यूपी की रैंकिंग को लेकर उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह से सवाल किया तो उन्होंने पूर्व की सरकारों पर ठीकरा फोड़ दिया। जय प्रताप सिंह पूर्व की सरकारों पर ठीकरा फोड़ रहे हैं तो उन्हें एक आंकड़ा हम दिखाते हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च की इंडेक्स देखिए। यूपी नीचे से तीसरे नंबर पर है। जहां दिल्ली हर शख्स के स्वास्थ्य पर औसतन 3,808 रुपए खर्त करता है। वहीं हिमाचल में यही आंकड़ा 3,780 रुपए है। केरल 2085 रुपए खर्च करता है वहीं यूपी 1065 रुपए खर्च करता है। जो कि नीचे से तीसरे नंबर पर है। ये आंकड़े 2019-20 के ही हैं।

किस राज्य में स्वास्थ्य पर कितना खर्च

दिल्ली - 3,808 रुपये/ व्यक्ति
हिमाचल प्रदेश - 3,780 रुपये/ व्यक्ति
केरल - 2085 रुपये/ व्यक्ति
यूपी - 1065 रुपये/ व्यक्ति

शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क विकास को लेकर योगी सरकार के काम से संतुष्ट हैं?

हां-64%
नहीं-27%
पिछली सरकारों से बेहतर-09%

UP में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा ?
अबकी बार रोजगार पर जीत या हार ?
यूपी के युवाओं के मन में क्या है ?

रोजगार पर उत्तर प्रदेश का ओपिनियन

इंडिया के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे की रिपोर्ट यूपी में बेरोजगारी को लेकर जो आंकड़ा पेश करती है वो परेशान करने वाली है।

2011-12 के मुकाबले 2019-20 में बरोजगारी बढ़ी
नौकरी करने वाले युवाओं की तादाद में कमी आई
15-29 साल के 30% युवाओं की नौकरियों में भागीदारी घटी

यूपी में बेरोजगारी 

2011-12 के मुकाबले 2019-20 में बरोजगारी बढ़ी
नौकरी करने वाले युवाओं की तादाद में कमी आई
15-29 साल के 30% युवाओं की नौकरियों में भागीदारी घटी

क्या आप मानते हैं कि यूपी में रोजगार का मुद्दा बाकी सब मुद्दों पर भारी पड़ेगा ? 

हां-55%
नहीं-32%
अन्य मुद्दे भी होंगे हावी-13%

तो राज्य कोई भी हो, बेरोजगारी मुद्दा होता है, पर चुनावों में बनता नहीं। खासकर यूपी में। तो सवाल यही है कि क्या इस बार उत्तर प्रदेश में रोजगार मुद्दा बनेगा या हमेशा की तरह जाति और धर्म पर वोट पड़ेंगे। इसपर यूपी की राजनीति को जानने और समझने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का ओपिनियन सुनिए।

उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले आरोप-प्रत्यारोप के खेल में विपक्ष सरकार की हर कामयाबी को नाकामी साबित करने की कोशिश करेगा और सरकार अपनी हर नाकामी का ठीकरा पिछली सरकारों पर फोड़ते हुए अपनी सफलता का गुणगान करेगी। लेकिन,मसला आरोप-प्रत्यारोप का नहीं जनता के उस ओपिनियन का है,जिसमें सरकार की सफलता और विफलता तय होनी है। हां, रोजगार का मुद्दा सरकार के गले की हड्डी बनना तय है और सवाल है कि क्या सरकार इस मुद्दे को अपनी दूसरी कामयाबी के जरिए हाशिए पर ढकेल पाती है या नहीं।
 

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