राजीव श्रीवास्तव। अंग्रेजी में एक कहावत है ‘चैरिटी बीगिन्स एट होम’। इसका हिन्दी रूपांतर है परोपकार घर से आरंभ होता है। यह कहावत बताने के पीछे का मक़सद उस बात की तरफ ध्यान आकर्षित करने का है जो आज सबसे अधिक चर्चा में है। कोविड-19 जैसी महामारी से लड़ाई को तेज़ और सफल बनाने की दृष्टि से स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह पहल की कि अगर जरूरत पड़े तो जरूरी दवाइयाँ और मशीन लाने के लिए राज्य सरकार के अधीन हवाई जहाज़ का इस्तेमाल किया जाये। ऐसा इसलिए क्यूंकि लॉकडाउन के चलते सारे आवागमन के साधनों पर रोक लगी हुई है। मुख्यमंत्री का यह मानना है कि कोविड-19 की लड़ाई में लॉजिस्टिक्स किसी भी तरह से अवरोधक न बने। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने यह आदेश दिया।
वैसे सुनने में तो यह आदेश बहुत साधारण सी बात लगती है पर अगर इसको दूसरे परिपेक्ष में देखा जाये तो यह भी अपने आप में एक अप्रत्याशित आदेश जान पड़ता है। हम आज जिस दौर में और जिस प्रदेश में रहते हैं वहां वीवीआईपी कल्चर और स्टेटस सिम्बल पिछले दशकों में युवाओं के जीवन का मक़सद बन गया था। ज़िम्मेदारी इन युवाओं से ज्यादा नेता और प्रशाश्निक अधिकारी है जिनको इस कल्चर से और स्टेटस सिम्बल से एक अजीब सी किक मिलती रही है।
खैर दौर बदला और वीवीआईपी कल्चर को सबसे बड़ा आघात उस वक़्त लगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इस ओर अपना पहला कदम बढ़ाते हुए गाड़ियों के ऊपर लगी लाल और नीली बत्ती हटाये जाने का फरमान जारी किया। बहुतों ने स्वेक्षा से हटा लिया तो औरों को हटाना भी पड़ा। वो बात अलग है कि अब नेता और अधिकारी अपनी पायलट गाड़ियों के साइरन के सहारे स्टेटस मैंटेन करने की जुगाड़ के साथ चलने लगे।
इस पटकथा को लिखने का मक़सद इस प्रदेश में वीवीआईपी कल्चर के महत्त को दर्शाने का है। ऐसे में कोई मुख्यमंत्री अपने इश्तेमाल किए जाने वाला सरकार हवाई जहाज को अगर कोविड-19 की लड़ाई में आमजन को बचाने के लिए जरूरी दवाएं और उपकरण लाने के लिए लगा दे तो यह अपने आप में बड़ी बात जान पड़ती है।
उत्तर प्रदेश में करोना से जारी जंग में जरूरी स्वास्थ्य उपकरणों को मंगाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना सरकारी स्टेट प्लेन स्वास्थ्य विभाग के सुपुर्द कर दिया है। अगले 9 जून को ट्रूनेट मशीनों की एक खेप लेने मुख्यमंत्री का सरकारी जहाज गोवा जाएगा। ये मशीनें कोरोना जांच के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं और मुख्यमंत्री ने फौरन ये मशीनें उत्तर प्रदेश में लाने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में समय की बचत के लिए और तेजी से स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए मुख्यमंत्री का सरकारी जहाज स्वास्थ्य विभाग के काम आ रहा है।
प्रदेश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य उपकरणों को लाने के लिए स्टेट प्लेन की मदद ली जा रही है। लेकिन योगी सरकार के कार्यकाल में यह पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले दो बार मेडिकल इक्विपमेंट मंगाने के लिए वह अपना सरकारी जहाज बैंगलोर भेज चुके हैं।
सवाल जहाज का नहीं बल्कि एक मुख्यमंत्री की नीयत, उद्देश्य और जनमानस का कल्याण सर्वोप्रिय की भावना का है। शायद यह जहाज, यह बड़ी बड़ी कारों का काफिला, यह वीवीआईपी होने का एहसास ही तो है जो नेताओं को, अधिकारियों को, मंत्रियों को और मुख्यमंत्रियों को आम आदमी से अलग करता है। अगर यह दीवार भी टूट गयी तो क्या आम और क्या खास।
खैर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने तीन साल के कार्यकाल में कई ऐसे कदम उठाए हैं जिससे वो आम जन के मुख्यमंत्री बनकर निकले हैं। चाहे वो फिर प्रवासियों की आई अचानक भीड़ के लिए की जा रही व्यवस्था को खुद जाकर लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे पर देखना हो या फिर नोएडा जाकर दिल्ली से वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों की तकलीफ़ों को समझना हो या फिर अपने मठ की दीवार को जनता के लिए बन रही फोर-लाने सड़क को रास्ता देने के लिए ढहा देना हो। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार यह साबित किया है कि वो औरों से कुछ अलग हैं।
ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ये कदम किसी राजनीति से प्रेरित हथकंडे है? इसके लिए योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पहले गोरखपुर सांसद के रूप में लिए गए कदमों को देखना होगा। बतौर सांसद ऐसे कई दृष्टांत सामने आते हैं जब योगी आदित्यनाथ ने ऐसे कदम उठाए जिससे वो लोगों के प्रिय नेता बनकर उभरे। चाहे वो फिर स्वास्थ संबन्धित लिए गए कदम हो या फिर शिक्षा से संबन्धित लिए गए निर्णय हो।
तीन साल पहले तक गोरखपुर क्षेत्र भी उन सभी दुश्वारीयों से ग्रसित था जो उस ज़िले को एक पिछड़ा ज़िले कि श्रेणी में रखता है। पूरे पूर्वाञ्चल में वाराणसी के बीएचयू में स्थित हॉस्पिटल को छोड़ कर कोई हॉस्पिटल नहीं था। गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज कि हालत कई ज़िला हॉस्पिटलों से बदतर थी। इसी को ध्यान में रखकर योगी आदित्यनाथ ने गोरखनाथ हॉस्पिटल का निर्माण कराया। इस हॉस्पिटल के बनने से गोरखपुर और आसपास के क्षेत्र की एक बड़ी आबादी को इसका लाभ भी हुआ। खास बात ये थी कि इस हॉस्पिटल कि ओपीडी में आने वाले मरीजों में बहुसंख्या आबादी मुस्लिम समुदाय से हुआ करती थी। यह योगी आदित्यनाथ का वो चेहरा है जो कम से कम मीडिया कि सुर्खियों मे शायद ही कभी आया हो। येही नहीं सांसद रहते हुए उन्होने कई बार गोरखपुर में एम्स बनाने के लड़ाई लड़ी और मुख्यमंत्री बनने के बाद वो लड़ाई जीत भी ली।
ऐसे ही अगर शिक्षा के स्तर को सुधारने की बात करें तो गोरखनाथ मंदिर द्वारा संचालित कई विध्यालयों में आज भी एक बड़ी संख्या में समाज के उस तपके के छात्र पढ़ते हैं जो अच्छे कॉलेज में केवल इसलिए नहीं जा पाते थे क्यूंकि उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे। अपनी छवि से विपरीत योगी आदित्यनाथ के मठ में वेद की पढ़ाई भी होती है। इसमे पढ़ने वाले बच्चों मे ज़्यादातर बच्चे ब्राह्मण जाति के हैं। वापस अगर हम योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद के निर्णयों को देखें तो ये पाएंगे कि ज़्यादातर निर्णय समाज के उस वर्ग के लिए हैं जिसके बारे में राजनीति तो बहुत हुई पर वो वर्ग चुनावों में केवल वोट बैंक बनकर ही रह गया।
हाल के दिनों में जिस तेजी से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नेतृत्व का परिचय देते हुए कोविड-19 की लड़ाई में उत्तर प्रदेश को तैयार किया है उसने प्रदेश को किसी भी प्रदेश की तुलना में सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है। यूपी में कोरोना की जांच में तेजी आए इसके लिए मुख्यमंत्री योगी हर संभव प्रयास कर रहे हैं। प्रदेश में अब तक तीन लाख लोगों की जांच हो चुकी है। राज्य में क्रियाशील 31 प्रयोगशालाओं में प्रतिदिन 10 हजार सैम्पल की जांच की जा रही है। मुख्यमंत्री की मंशा इसको और बढ़ाने की है। उन्होंने अधिकारियों के समक्ष 15 जून तक प्रतिदिन 15 हजार और 30 जून तक प्रतिदिन 20 हजार टेस्ट का लक्ष्य रखा है।
प्रदेश सरकार ने दूसरे राज्यों से अब तक यूपी में पहुंचे 30 लाख से अधिक प्रवासी कामगार व श्रमिक के लिए क्वारंटीन सेंटर की व्यवस्था भी की है। 15 लाख की क्षमता के इन क्वारंटीन सेंटर में लोगों को गुणवत्ता परक भोजन दिया जा रहा है। इसके साथ ही इन सेंटरों में रोके गए सभी श्रमिक व कामगार की मेडिकल स्क्रिनिंग व जांच कराई गई है। मेडिकल स्क्रिनिंग में स्वस्थ मिले कामगारों एवं श्रमिकों को राशन पैकेट और 1 हजार रुपये की सहायता राशि देकर उन्हें होम क्वारंटीन में भेजा जा रहा है। इसके अलावा जो अस्वस्थ मिले उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया।
अगर यह सारे निर्णय योगी आदित्यनाथ के राजनैतिक हथकंडे मात्र हैं तो भी यह उस सकारात्मक राजनीति की तरफ बढ़ते कदम की दस्तक है जिसकी आहट सुनकर अगर आने वालों नेताओं ने अपनी राजनैतिक दृष्टिकोण वोट-बैंक की राजनीति से इतर नहीं बदला तो शायद बहुत देर हो जाएगी। इन सब बातों से इतर एक बात और निश्चित है कि 2022 का विधानसभा चुनाव योगी के योग को कसौटी पर परखने का चुनाव होगा। इंतज़ार कीजिये!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उत्तर प्रदेश की राजनीति की गहरी समझ रखते हैं। )
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