नई दिल्ली: इतिहास इस बात का गवाह है कि बिहार लंबे समय तक देश की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है। पिछले कुछ दशकों में देश में जो महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम और बदलाव हुए उनके तार कहीं न कहीं बिहार से जुड़े रहे हैं। चाहे वह 1975 का आपातकाल का दौर रहा हो या मंडल-कमंडल की राजनीति, इन सभी आंदोलनों में बिहार की जनता और यहां के नेताओं की सक्रिय भागीदारी रही। आपातकाल के दौर ने बिहार में ऐसे नेता पैदा किए जिनका दशकों तक राज्य और देश की राजनीति में दबदबा रहा।
आपातकाल के खिलाफ जननायक जय प्रकाश नारायण का 'जेपी आंदोलन' ने देश की दशा और दिशा ही बदल दी। इस आंदोलन से निकलने वाले नेता लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, कर्पूरी ठाकुर और राम विलास पासवान राज्य और देश की सियासत में गहरा प्रभाव रखते आए हैं। बिहार में 1975 से लेकर 1990 का दशक राज्य में क्षेत्रीय दलों के प्रस्फुटन का समय है। मंडल-कमंडल की राजनीति 90 के दशक में परवान चढ़ी। इस दौर में सामाजवादी नेताओं ने दलित और पिछड़ों के लिए राजनीति के एक नए दौर की शुरुआत की।
1990 के दशक तक कांग्रेस का बोलबाला
आजादी के बाद से 1990 के दशक तक बिहार की राजनीति में कांग्रेस का बोलबाला रहा। इस दौरान पांच बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनीं लेकिन वह अल्पकालीन रहीं और अपने आतंरिक कलह का शिकार होती रहीं। आपातकाल के दौर में बिहार की सियासत अनेक घटनाक्रमों से भरी पड़ी है। बिहार की धरती से ताल्लुक रखने वाले जय प्रकाश नारायण के 'संपूर्ण क्रांति' के नारे के साथ करीब-करीब पूरा देश खड़ा हो गया था। आपातकाल के खिलाफ हुए राजनीतिक आंदोलनों ने देश में नए तरह की राजनीति की शुरुआत हुई।
जुलाई 1974 की पटना रैली में जेपी ने 'संपूर्ण क्रांति' का नारा
गुजरात की चमनभाई पटेल सरकार के खिलाफ छात्रों के आंदोलन ने जय प्रकाश नारायण को 1970 में बिहार में आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इस आंदोलन ने देश में आपातकाल लागू करने की बहुत हद तक पृष्ठभूमि तैयार की। जुलाई 1974 की पटना रैली में जेपी ने 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया। इससे पहले गुजरात में छात्रों ने 1973 में सत्ता के खिलाफ जो संघर्ष शुरू किया उनको शायद यह पता नहीं होगा कि वे एक ऐसे आंदोलन का आधार तैयार कर रहे हैं जिसके पीछा पूरा देश खड़ा हो जाएगा। छात्रों के आंदोलन से कर्मचारी, अध्यापक और अन्य समूह जुड़ते चले गए। करीब 20 वर्षों तक स्व-निर्वासन मनें रहने वाले जेपी को अहसास हुआ कि भारत में परिवर्तन लाने के लिए देश को उनकी जरूरत है।
जेपी के आंदोलन के समय नीतीश कुमार 24 साल के थे
जेपी आंदोलन से नेताओं की ऐसी फौज निकली जो बाद में राज्यों एवं केंद्र की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई। अरुण जेटली, रवि शंकर प्रसाद, नीतीश कुमार, राम विलास पासवान, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव जैसे अनेक नेता हैं जो जेपी आंदोलन से निकले। खाद्य सामग्रियों की कमी के साथ महंगाई एवं रेलवे की तीन सप्ताह की हड़ताल ने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ लोगों के आक्रोश को बढ़ाने का काम किया। इस दौरान इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया और इसने सत्ता विरोधी लहर को और धार दी। जेपी के आंदोलन के समय नीतीश कुमार 24 साल के थे। जेपी आंदोलन से जुड़ने के बाद नीतीश पूरी तरह से राजनीति से जुड़ गए। लालू यादव बिहार में जेपी आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे। सुशील कुमार मोदी और रवि शंकर प्रसाद जैसे नए नेताओं ने इस आंदोलन से ही राजनीति का ककहरा सीखा।
दिल्ली में आपातकाल के दौरान विरोध प्रदर्शन करने पर अरुण जेटली को गिरफ्तार किया गया। रवि शंकर प्रसाद कहते हैं कि जेपी का व्यक्तित्व करिश्माई था, सभी उनसे जुड़ना चाहते थे। लेफ्ट के नेता प्रकाश करात और सीताराम येचुरी दिल्ली के जेएनयू से जेपी के विचारों को छात्रों के जरिए फैला रहे थे। येचुरी को इंदिरा सरकार ने जेल भी भेजा।
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