Lalan singh jdu national president:जेडीयू के नेशनल प्रेसिडेंट के तौर अब ललन सिंह को जिम्मेदारी मिली है। उनके नाम का प्रस्ताव निवर्तमान अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने किया और सर्वसम्मति से उनके नाम पर मुहर लग गई। अध्यक्ष चुने जाने के बाद ललन सिंह ने कहा कि आरसीपी सिंह ने पार्टी को जिस ऊंचाई तक पहुंचाया उसे और आगे ले जाने की जिम्मेदारी अब उनकी है, उम्मीद है कि वो जेडीयू को बिहार और प्रदेश के दूसरे हिस्सों में ले जाने में कामयाब होंगे। लेकिन ललन सिंह के चयन का मतलब क्या है इसे समझना जरूरी है।
सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश
अगर जेडीयू के इतिहास को देखें तो करीब करीब सभी अध्यक्ष ओबीसी समाज से रहे हैं, खासतौर से बिहार विधानसभा चुनाव के बाद उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में शामिल हुए तो एक तरह से यह आवाज आने लगी की जेडीयू का मतलब लव-कुश। इसका अर्थ यह था कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सीएम एक खास जाति यानी कुर्मी समाज से आते हैं, इसके साथ ही जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष और उपेंद्र कुशवाहा का संबंध कोइरी समाज से है। इस तरह की बातें आम हो चलीं कि नीतीश कुमार भले ही बात सर्वसमाज की करते हों, लेकिन हकीकत में वो सवर्णों की अनदेखी करते हैं। ऐसी सूरत में ललन सिंह(भूमिहार) का चयन कर उन्होंने यह संदेश दिया कि बिहार में जेडीयू ही एक ऐसी पार्टी है जो सामाजिक समीकरण में भरोसा करती है।
ललन सिंह को अहम भूमिका क्यों मिली
बताया जाता है कि जिस तरह से एलजेपी ने विधानसभा चुनाव में जेडीयू को गहरी चोट दी, कुछ वैसे ही एलजेपी को तोड़कर जेडीयू ने चिराग पासवना को संदेश दे दिया कि राजनीति के मैदान में अभी वो बच्चे हैं। इस मुहिम में अगर कोई शख्स सबसे ज्यादा मुखर होकर काम किया तो वो नाम था ललन सिंह का। ललन सिंह ने बड़ी चतुराई के साथ एलजेपी में दो फाड़ कराई और नतीजा सबके सामने है। यह बात सच है कि नंबर तीन की पार्टी होते हुए जेडीयू सत्ता में है, लेकिन राजनीतिर सूझबूझ के साथ जेडीयू ने साबित किया कि सियासी फसल को अक्ल से काट सकते हैं।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि बिहार की सियासत में जातीय संतुलन को स्थापित करना आसान काम नहीं है, जेडीयू के बारे में कहा जाता है कि सवर्ण समाज से जुड़े वो लोग जो बीजेपी की कट्टर विचार को नहीं पसंद करते थे उनके लिए आरजेडी की तुलना में जेडीयू बेहतर विकल्प दिखाई दिया और वो जेडीयू के साथ हो लिए। लेकिन जिस तरह से पार्टी के अध्यक्ष पद से सरकार में सवर्ण समाज की अनदेखी की गई उसके बाद कुछ हद तक नाराजगी थी। ललन सिंह के चयन के बाद नीतीश कुमार ने यह संदेश देने की कोशिश करते दिखना चाह रहे हैं कि वो बिहार की राजनीति में एकलौते ऐसे शख्स हैं जो सामाजिक न्याय में भरोसा करते हैं।
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