केदारनाथ से रामेश्वरम तक - सीधी रेखा में बने हैं ये श‍िव मंद‍िर, जानें वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम

आध्यात्म
Updated Mar 09, 2018 | 23:58 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

देश में ऐसे श‍िव मंद‍िर हैं तो उत्‍तर से दक्षिण तक एक रेखा में ही बने हैं। अब इसे वास्‍तु कहें या विज्ञान या फ‍िर वेद - लेकिन तथ्‍य हैरान करने के साथ श्रद्धा भाव भी लेकर आता है -

 तस्वीर साभार: BCCL

नई दिल्ली: हिंदू धर्म में भगवान शंकर की पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ की जाती है। देश में 12 ज्योतिर्लिंग हैं जहां इनकी पूजा की जाती है। साथ ही देश के लगभग हर हिस्से में शिवालय यानी शिव मंदिर है जहां श्रद्धालु उनकी पूजा अर्चना करते हैं। भगवान शंकर की पूजा शिव मंदिर में की जाती है और शिवलिंग अपार शक्ति का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का दिन सोमवार को होता है और सावन के महीने में , महाशिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि के दिन इनकी पूजा का अगाध फल माना जाता है। सोमवार को शिवलिंग की पूजा अर्चना और जल देने को लेकर पौराणिक धारना है कि इससे आपके सभी कष्ट दूर होते है। 

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की भारत में ऐसे शिव मंदिर है जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बनाए गए हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाए। उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडु का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79° E 41’54” लॉन्गीच्यूड के भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।

पंच भूत का प्रतीक हैं ये मंदिर
ये सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंच भूत कहते है। पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्ही पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिव लिंगों को प्रतिष्ठापित किया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है और अंत में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है। यानी वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।

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मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था
भौगोलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पाई जाती है। जानकारों का मानना है कि इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कोई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा। इन मंदिरों का करीब चार हजार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं था। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्ठापित किया गया था! यह आज भी एक रहस्य है।

एक ही समानांतर रेखा में पड़ते हैं मंदिर
केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते है। आखिर हजारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयोग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया , यह आज तक रहस्य ही है। श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है। तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। कांचीपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।

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अब यह आश्चर्यजनक है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पांच लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्ठापित किया गया है। पूर्वजों के ज्ञान और बुद्धिमता की हमें दाद देनी होगी कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं बल्कि इसी रेखा में अनेक मंदिर होंगे जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते है। इस रेखा को शिव शक्ति अक्श रेखा भी कहा जाता है। बताया जाता है कि ऐसा संभव है कि यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हों जो 81.3119° ईस्‍ट में पड़ता है। 

उज्जैन (महाकाल) से बाकी ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी रोचक है : 
-उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी.
-उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी.
-उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी.
-उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी.
-उज्जैन से,मल्लिकार्जुन- 999 किमी.
-उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी.
-उज्जैन से  त्रयंबकेश्वर- 555 किमी.
-उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी.
-उज्जैन से रामेश्वरम- 1999 किमी.
-*उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी.

उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है 
सनातन धर्म में हजारों सालों से उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र मानते आ रहे है इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गण ना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाए गए हैं। करीब 2050 वर्ष पहले और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क)अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनाई गई तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला। आज भी  सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिए वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं। 

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भारत का ग्रीनविच है उज्जैन 
प्राचीन भारत की समय-गणना का केन्द्र-बिन्दु होने के कारण ही काल के आराध्य महाकाल हैं, जो भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। हिन्दुस्तान की ह्रदय-स्थली उज्जयिनी की भौगोलिक स्थिति अनूठी है। खगोल-शास्त्रियों की मान्यता है कि उज्जैन नगर पृथ्वी और आकाश के मध्य में स्थित है। महाकाल को कालजयी मानकर ही उन्हें काल का देवता माना जाता है। काल-गणना के लिये मध्यवर्ती स्थान होने के कारण इस नगरी का प्राकृतिक, वैज्ञानिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बढ़ जाता है। 

इन सब कारणों से ही यह नगरी सदैव काल-गणना और काल-गणना शास्त्र के लिये उपयोगी रही है। इसलिए इसे भारत का ग्रीनविच माना जाता है।  प्राचीन-काल से यह नगरी ज्योतिष-शास्त्र का प्रमुख केन्द्र रही है। उज्जैन देश के मानचित्र में 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्र सतह से लगभग 1658 फीट ऊंचाई पर बसा है। यह भी माना जाता है कि संभवत: धार्मिक दृष्टि से श्री महाकालेश्वर का स्थान ही भूमध्य रेखा और कर्क रेखा के मिलन स्थल पर हो, वहीं नाभि-स्थल होने से पृथ्वी के मध्य में स्थित है। 

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