बछ बारस उत्सव को ‘वत्स द्वादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। बाछ बारस कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष को भी मनाया जाता है। साल में दो बार गाय और बछड़े की पूजा का विधान है। हिंदू धर्म में गाय को पूजनीय माना गया है और गाय की पूजा और दान का महत्व बहुत ही अधिक माना गया है। मान्यता है कि यदि गौ माता के दर्शन भी हो जाएं तो दिन शुभ होता है।
श्रीकृष्ण से जुड़ा है पर्व
गायों को भगवान श्रीकृष्ण से भी जोड़ कर देखा जाता है और मान्यता है कि गाय और बछड़े की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण भी बहुत प्रसन्न होते हैं। इसी कारण उनका नाम गोपाल भी था। उनका जीवन गायों के बीच ही बीता था इसलिए वह इनसे बहुत ही जुड़ा पाते थे। इतना ही नहीं श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौ माता का दर्शन और पूजन किया था।
मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है गाय की सेवा
पुराणों में वर्णित है कि सब योनियों में मनुष्य योनी सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए यदि इस योनी में यदि वह पुण्यकर्म करता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए गाय की सेवा बहुत ही सुगम और महत्वपूर्ण माना गया है।मान्यता है कि गौ माता के रोम-रोम में देवी-देवता का वास होता है। साथ ही इस सेवा से पितरों को भी सुख प्राप्त होता है।
पुराण के अनुसार गौ माता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चंद्र विराजित हैं।
जानें बछ बारस पूजा का महत्व
बछ बारस, गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं संतान की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत और पूजा करती हैं। इस दिन घरों में बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाने का विधान है। साथ ही इस दिन गाय का दूध या इससे बने पर्दाथ का प्रयोग नहीं किया जाता। गाय की जगह भैंस या बकरी के दूध का उपयोग किया जाता है।
ऐसे करें बछ बारस पूजा
स्नान-ध्यान के बाद गाय और बछड़े को भी स्नान कराएं और दोनों को नया वस्त्र ओढाएं। फिर उनके गले में फूल माला डाल कर माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को मिलाकर इस मंत्र का जाप करते हुए गौ प्रक्षालन करें।
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते, सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
इसके बाद गाय के पैरों की मिट्टी को अपने माथे पर लगाएं और गाय-बछड़े को हरा चारा खिला कर बछ बारस की कथा सुनें। इस दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्ट तथा गौमाता की आरती करके भोजन ग्रहण करें।
बछ बारस की पूजा और व्रत से संतान सुख के साथ ही सारे तीर्थ करने इतना पुण्य मिलता है।
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