आचार्य चाणक्य के उपदेशों की लोगों के बीच लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है। अक्सर बुद्धिमानी, तर्क और नीतिगत फैसले लेने वाले लोगों को चाणक्य की उपाधि दी जाती है और यही अपने आप में इस ऐतिहासिक व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है। आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र और जीवन से जुड़े बहुत सारे पहलुओं पर स्पष्टता से बात करते हुए अपने उपदेश दिए हैं।
चाणक्य ने धन, तरक्की, बिजनेस, नौकरी, पारिवारिक और वैवाहिक समेत जीवन के कई अहम पहलुओं पर खुलकर बात की है और साथ ही रिश्तों पर भी वचन कहे हैं। चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के एक श्लोक में संतान के संबंध में भी कुछ बातें कही हैं। श्लोक में उन्होंने पुत्र के सद्गुणों और दुर्गुणों के बारे में बात की है।
1. संतान के गुणों और शिक्षा के महत्व को परिभाषित करते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सैकड़ों बुद्धिमान पुत्रों से एक योग्य और बुद्धिवान संतान ज्यादा अच्छी है। ऐसी संतान के गुण होते हैं कि वह अपने माता-पिता को सुख देते हैं और उनके दुख को अपना दुख समझते हैं।
2. दुर्गुणों से भरी संतान को लेकर चाणक्य कहते हैं कि अगर पुत्र बुरी आदत वाला हो या फिर बुद्धिहीन हो तो ऐसे पुत्र के होने से मर जाना ज्यादा बेहतर है। नीति शास्त्र कहता है कि ऐसे पुत्र की मृत्यु पर माता-पिता को कुछ समय के लिए दुख होगा लेकिन अगर पुत्र लंबे समय तक जीवित रहा तो जीवन भर दुख देता ही रहेगा।
3. चाणक्य उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ऐसी गाय किसी काम की नहीं जो दूध नहीं देती या फिर बछड़े को जन्म नहीं दे सकती। इसी तरह से उस पुत्र या संतान के होने से कोई लाभ नहीं, जो विद्वान ना हो और जो माता-पिता के प्रति भक्ति भाव ना रखे।
4. चाणक्य नीति के अगले एक सूत्र के अनुसार कहते हैं कि मूर्ख संतान माता-पिता के लिए दुश्मन समान होती है। अगर संतान बेवकूफ हो तो माता-पिता के लिए जीवन कष्टदायी होता है। इसलिए पुत्र का बुद्धिमान और समझ से भरा होना जरूरी है।
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