Sankashti Chaturthi: जानिए अगस्त माह में किस तारीख को पड़ रही है संकष्टी चतुर्थी

Sankashti Ganesh Chaturthi Shubh Muhurat: भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हर साल संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल संकष्टी चतुर्थी 15 अगस्त को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा करने पर विशेष कृपा बनी रहती है। इस दिन भगवान गणेश के मंत्र का जरूर जाप करना चाहिए।

Sankashti Chaturthi 2022 kab hai
Sankashti Chaturthi Puja Vidhi  |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • गणेश जी को संकटमोचन विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है
  • ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा करने पर हर संकट परेशानी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है
  • भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी हर साल मनाई जाती है

Sankashti Ganesh Chaturthi: भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना गया है। किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की आराधना की जाती हैं। गणेश जी को संकटमोचन विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा करने पर हर संकट परेशानी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है। भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी हर साल मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल संकट संकष्टी चतुर्थी 15 अगस्त सोमवार के दिन पड़ रही है। संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट हरने वाला। इस व्रत को करने से व्यक्ति की हर परेशानी दूर हो जाती है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस दिन भगवान गणेश जी के मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।

जानिए, शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 14 अगस्त दिन रविवार को रात 10 बजकर 35 मिनट पर हो रहा है, जो अगले दिन 15 अगस्त सोमवार को रात 09 बजकर 01 मिनट तक होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर बहुला चतुर्थी व्रत 15 अगस्त को रखा जाएगा। इस दिन पूजा व वर्त रखा जा सकता है।

Also Read- Gold Auspicious: इस मुहूर्त में ही खरीदें सोना, माना जाता है शुभ, भूलकर भी न खरीदें इस दिन

गणेश स्तुति का मंत्र
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

श्री गणेश जी का गायत्री मंत्र

ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।
धन-संपत्ति प्राप्ति का मंत्र
ऊँ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा.

र्विघ्न हरण का मंत्र

वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥
बाधांए दूर करने का मंत्र
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

Also Read- Bhadra Kaal: भद्रा काल में क्यों राखी नहीं बांधी जाती, जानें शूर्पणखा की इस चूक से कैसे हुआ भाई रावण का विनाश

कृपा करो गणनाथ

प्रभु-शुभता कर दें साथ।
रिद्धि-सिद्धि शुभ लाभ
प्रभु, सब हैं तेरे पास।।
अभीष्ट फल प्राप्ति का मंत्र
नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।
गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥

गणेश कवच

संसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापति:।
ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदर: स्वयम्॥
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोग: प्रकीर्तित:।
सर्वेषां कवचानां च सारभूतमिदं मुने॥
ॐ गं हुं श्रीगणेशाय स्वाहा मे पातुमस्तकम्।
द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो ललाटं मे सदावतु॥
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं गमिति च संततं पातु लोचनम्।
तालुकं पातु विध्नेशःसंततं धरणीतले॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीमिति च संततं पातु नासिकाम्।
ॐ गौं गं शूर्पकर्णाय स्वाहा पात्वधरं मम॥
दन्तानि तालुकां जिह्वां पातु मे षोडशाक्षर:॥
ॐ लं श्रीं लम्बोदरायेति स्वाहा गण्डं सदावतु।
ॐ क्लीं ह्रीं विघन्नाशाय स्वाहा कर्ण सदावतु॥
ॐ श्रीं गं गजाननायेति स्वाहा स्कन्धं सदावतु।
ॐ ह्रीं विनायकायेति स्वाहा पृष्ठं सदावतु॥
ॐ क्लीं ह्रीमिति कङ्कालं पातु वक्ष:स्थलं च गम्।
करौ पादौ सदा पातु सर्वाङ्गं विघन्निघन्कृत्॥
प्राच्यां लम्बोदर: पातु आगन्य्यां विघन्नायक:।
दक्षिणे पातु विध्नेशो नैर्ऋत्यां तु गजानन:॥
पश्चिमे पार्वतीपुत्रो वायव्यां शंकरात्मज:।
कृष्णस्यांशश्चोत्तरे च परिपूर्णतमस्य च॥
ऐशान्यामेकदन्तश्च हेरम्ब: पातु चो‌र्ध्वत:।
अधो गणाधिप: पातु सर्वपूज्यश्च सर्वत:॥
स्वप्ने जागरणे चैव पातु मां योगिनां गुरु:॥
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।
संसारमोहनं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥
श्रीकृष्णेन पुरा दत्तं गोलोके रासमण्डले।
वृन्दावने विनीताय मह्यं दिनकरात्मज:॥
मया दत्तं च तुभ्यं च यस्मै कस्मै न दास्यसि।
परं वरं सर्वपूज्यं सर्वसङ्कटतारणम्॥
गुरुमभ्य‌र्च्य विधिवत् कवचं धारयेत्तु य:।
कण्ठे वा दक्षिणेबाहौ सोऽपि विष्णुर्नसंशय:॥
अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।
ग्रहेन्द्रकवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥
इदं कवचमज्ञात्वा यो भजेच्छंकरात्मजम्।
शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:॥

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (Spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल

अगली खबर