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नई दिल्ली. ईसाई धर्म के सबसे बड़े पर्वों में एक पर्व है ईस्टर का। मान्यताओं के अनुसार गुड फ्राइडे के तीसरे दिन यानी उसके अगले संडे को यशु मसीह दोबारा जीवित हो गए थे। इस घटना को ईसाई धर्म के लोग ईस्टर संडे के रूप में मनाते हैं। ईसा मसीह अपने शिष्यों के लिए वापस आए और 40 दिनों तक उनके बीच जाकर उपदेश देते रहे। यह पर्व वसंत ऋतु में आता है। ईसाई धर्म की कुछ मान्यताओं के अनुसार ईस्टर शब्द की उत्पत्ति ईस्त्र शब्द से हुई है।
21 मार्च के बाद आने वाली पहली पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले रविवार को ईस्टर मनाया जाता है, यानी कि गुड फ्राइडे के बाद आने वाले रविवार को। ईस्टर संडे के अवसर पर प्रभु ईसा मसीह के आगमन के इंतजार में शनिवार को ही देशभर में प्रार्थना सभाएं शुरू हो जाती हैं। ईस्टर का महत्व दो तरीके से है। एक, जीसस ने लोगों को माफ करने का पाठ पढ़ाया। लोगों ने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया। मगर मरने से पहले उन्होने सबको माफ कर दिया। जीसस फिर से जीवित हुए तो लोगों में नई उम्मीदें जागीं। इस दिन को ईस्टर कहते हैं।
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क्या है अंडे का महत्व?
ईस्टर में अंडे का खास महत्व है क्योंकि, जिस तरह से चिड़िया सबसे पहले अपने घोसले मे अंडा देती है। उसके बाद उसमें से चूजा निकलता है ठीक उसी तरह अंडे को एक शुभ स्मारक माना है और ईस्टर में खास तरीके से इसका इस्तेमाल किया जाता है। कहीं चित्रकारी करके, कहीं दूसरे रूप में सजाकर, इसे गिफ्ट के रूप में एक दूसरे को दिया भी जाता है। यह एक शुभ संकेत होता है जो लोगों को अच्छा जीवन जीने के लिए नए उमंग से भरने का संदेश देता है।
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महिलाओं द्वारा की जाती है प्रार्थना
ईस्टर की आराधना प्रातःकाल में महिलाओं द्वारा की जाती है क्योंकि इसी वक्त यीशु का पुनरुत्थान हुआ था और उन्हें सबसे पहले मरियम मगदलीनी नामक महिला ने देख अन्य महिलाओं को इस बारे में बताया था।इसे सनराइज सर्विस कहते हैं। धर्म विशेषज्ञों के अनुसार पुराने समय में किश्चियन चर्च ईस्टर रविवार को ही पवित्र दिन के रूप में मानते थे। किंतु चौथी सदी से गुड फ्रायडे सहित ईस्टर के पूर्व आने वाले प्रत्येक दिन को पवित्र घोषित किया गया था।
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