नई दिल्ली: हिंदू धर्म का एक अहम पर्व नवरात्रि के बीच आज शुक्रवार को मनाया जा रहा है। हर साल गणगौर पर्व बेहद उल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है। गणगौर रंग बिरंग संस्कृति का अनूठा उत्सव व मारवाड़ियों का प्रमुख त्योहार है। यह आमतौर पर राजस्थान और मध्यप्रदेश का लोकपर्व है लेकिन बुदेलखंड के कई हिस्सों में भी इसे मनाया जाता है जो उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में बंटा हुआ है। गणगौर पर्व चैत्र शुक्ल की तृतीया को मनाया जाता है और इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर नाच गाकर और पूजा करके शिव पार्वती की आराधना करती हैं।
गणगौर पर्व को राजस्थान में मारवाड़ी समाज के लोग 16 दिनों तक एवं मध्यप्रदेश में निमाड़ी समाज के लोग तीन दिनों तक मनाते हैं और बुंदेलखंड में एक दिन मनाया जाता है। वास्तव में गणगौर महिलाओं का ही पर्व है। इस दिन कुंवारी कन्याएं के साथ सुहागिन महिलाएं दोपहर तक उपवास रखती हैं और पूरे विधि विधान से शिव और पार्वती की पूजा करती हैं। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर के लिए जबकि सुहागिनें पति की लंबी उम्र के लिए यह पूजा करती हैं।
महूर्त: गुणगौर का सर्वाथ सिद्धि योग सुबह 6 बजे से 10 बजे तक है जबकि रवि योग 10 बजे से अगले दिन शनिवार को 6 बजे तक है।
कैसे होती है पूजा, क्या है मान्यता: तालाब, नदी या कुएं पर जाकर महिलाएं गणगौर को पानी पिलाती है। इस दिन टेसू के फूलों को पानी में भिगोकर इनका इस्तेमाल किया जाता है। शास्त्रों की मानें तो मां पार्वती ने अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिए तप किया था और इसी तप के प्रभाव से उन्हें भगवान शिव की प्राप्ति हुई थी। इस मौके पर मां पार्वती ने सभी स्त्रियों को भी सौभाग् का वरदान दिया और तभी से गणगौर की पूजा शुरु हुई। पूजा के दौरान व्रत कथा भी होती है जिसमें मां पार्वती का जिक्र आता है।
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